मेष संक्रांति आज, स्नान-दान व उपासना से मिलती है सुख समृद्धि
Santkabir-nagar News - मेष राशि की संक्रांति (सतुवा संक्रांति) का हिन्दू धर्म में बड़ा महत्व है। इस दिन स्नान, दान और उपासना से श्रद्धालुओं को सुख-समृद्धि मिलती है। सूर्य का मीन से मेष राशि में प्रवेश होने पर नए सौर वर्ष का...

पौली, हिन्दुस्तान संवाद। मेष राशि की संक्रांति (सतुवा संक्रांति)का सनातन धर्म में बड़ा महत्व है। इस दिन स्नान-दान और उपासना से श्रद्धालुओं को सुख-समृद्धि मिलती है। वहीं एक माह से चल रहा खरमास समाप्त होने से फिर मांगलिक कार्य शुरू हो जाते हैं। उक्त बातें शिव मन्दिर पौली में आचार्य पं. गौतम मुनि चतुर्वेदी ने मेष संक्रांति का महत्व बताते हुए कही। उन्होंने बताया कि वैसे प्रत्येक माह मे संक्रांति पड़ती है। सभी संक्रांति पर स्नान-दान का महत्व है। फिर भी वर्ष की दो संक्रांति अधिक महत्वपूर्ण है। मकर राशि की संक्रांति (खिचड़ी) और मेष राशि कि संक्रांति (सतुवा) के नाम से जानी जाती है। जब सूर्य मीन राशि से मेष राशि में प्रवेश करते हैं तब मेष संक्रांति पड़ती है।
आचार्य पं. महेश ने बताया कि पंचांग के अनुसार इस वर्ष सोमवार 14अप्रैल को प्रातः 3 बजकर 30 मिनट पर सूर्य मीन राशि से मेष राशि में प्रवेश करेंगे। उदया तिथि के अनुसार इसी दिन मेष राशि कि संक्रांति (सतुवा) का त्योहार मनाया जाएगा।
क्या है मेष संक्रांति का महत्व- आर्चार्य प० कृपा शंकर पान्डेय ने बताया कि सनातन धर्म में चन्द्र वर्ष और सौर वर्ष दोनों वर्ष की मान्यता है। सौर वर्ष के अनुसार जब सूर्य मीन राशि से मेष राशि मे प्रवेश करते है तो उसी दिन से सौर वर्ष का पहला माह शुरू होता है। मेष राशि की संक्रांति का दिन नव सौर वर्ष के पहले दिन के रूप मनाया जाता है। अध्यात्मिक दृष्टि से यह पर्व बड़ महत्वपूर्ण है। मेष संक्रांति को आत्मिक विकास और भीतरी परिवर्तन के लिए अत्यंत शुभ माना जाता है। इस दौरान सूर्य की ऊर्जा प्रबल होती है, जिससे ध्यान, पूजा, स्नान और दान-पुण्य जैसे कर्मों को करने का विशेष महत्व बताया गया है। इस दिन गंगा, यमुना या गोदावरी जैसी पवित्र नदियों में स्नान करना अत्यंत शुभ माना जाता है। यदि संभव न हो, तो घर पर स्नान के जल में गंगा जल मिलाकर स्नान करें। ऐसा करने से शरीर और मन की शुद्धि मानी जाती है।
इसके बाद स्वच्छ वस्त्र धारण कर एक तांबे के पात्र में जल, लाल पुष्प, गुड़, रोली और अक्षत लेकर सूर्य को अर्घ्य दें। इसके बाद ‘ॐ सूर्याय नमः जैसे मंत्रों का उच्चारण करें। साथ ही सूर्य चालीसा या आदित्य हृदय स्तोत्र का पाठ भी किया जा सकता है। पूजा के स्थान को दीप, धूप और पुष्पों से सजाएं और सूर्य देव को भोग लगाकर प्रसाद सभी में बांटें।
इस दिन क्यों खाया जाता है सतुवा :
यह पर्व प्रकृति से भी जुड़ा हुआ है। सूर्य के मेष राशि में प्रवेश के साथ-साथ प्रकृति में गर्मी बढ़ जाती है। सतुआ संक्रांति पर सत्तू खाने की परंपरा का मुख्य कारण है इसका पौष्टिक और शरीर को ठंडा रखने वाला गुण, जो गर्मी के मौसम में लू और गर्मी से बचाता है। यह पर्व गर्मी के आगमन का प्रतीक है, और सत्तू इस मौसम में शरीर को ऊर्जा प्रदान करने के लिए एक लोकप्रिय और पारंपरिक भोजन है।
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