यूपी में वक्फ संपत्तियों पर विवाद ही विवाद, लटके पड़े हैं 65 हजार से ज्यादा मामले
- यूपी में वक्फ संपत्तियों संख्या और मालिकाना हक पर विवाद ही विवाद है। ट्रिब्यूनल में संपत्ति के मालिकाना हक को लेकर 65 हजार से ज्यादा मामले लटके पड़े हैं। यूपी में 58 हजार ऐसी संपत्तियां बताई जा रही हैं जो वक्फ बोर्ड में वक्फ के तौर पर दर्ज हैं।

उत्तर प्रदेश में वक्फ संपत्तियों की संख्या कितनी है और मालिकाना हक किसके पास है इसे लेकर विवाद ही विवाद हैं। एक ओर प्रदेश का राजस्व विभाग दावा करता है कि संपत्तियों की संख्या 2966 है जबकि सुन्नी व शिया वक्फ बोर्डों का दावा है कि उनकी संपत्ति की संख्या 1.32 लाख से ज्यादा है। वहीं ट्रिब्यूनल में संपत्ति के मालिकाना हक को लेकर 65 हजार से ज्यादा मामले लटके पड़े हैं। इलाहाबाद कोर्ट की दोनों पीठों में सौ से ज्यादा मामले विचाराधीन हैं। वहीं प्रदेश में तकरीबन 58 हजार ऐसी संपत्तियां बताई जा रही हैं जो वक्फ बोर्ड में वक्फ के तौर पर दर्ज हैं जबकि राजस्व विभाग के रिकार्ड में सार्वजनिक उपयोग की श्रेणी में हैं।
वर्ष 1976 में प्रदेश सरकार ने वक्फ के सर्वे के लिए बोर्ड का गठन किया था। वर्ष 1988 में इसकी रिपोर्ट सरकारी गजट में प्रकाशित की गई थी जिसके मुताबिक शिया व सुन्नी वक्फ की कुल संख्या 1,32,140 है। इनमें से शिया वक्फ 7,785 हैं जबकि सुन्नी वक्फ की संख्या 1,24,355 है। हालांकि, वक्फ मैनेजमेंट सिस्टम ऑफ इंडिया (वामसी) पर आंकड़े 2.37 लाख हैं। सबसे ज्यादा वक्फ संपत्तियां यूपी में हैं। लिहाजा केंद्र सरकार के नए कानून का असर भी सबसे ज्यादा उत्तर प्रदेश पर ही पड़ेगा। सुन्नी वक्फ बोर्ड की सबसे ज्यादा मुरादाबाद में 10,386 संपत्तियां हैं जबकि शिया वक्फ बोर्ड की सबसे ज्यादा 3603 संपत्तियां लखनऊ में हैं। वक्फ संपत्तियों के स्वामित्व को लेकर परस्पर विरोधी दावे हो रहे हैं। वक्फ बोर्ड जहां संपत्तियों को अपना बताता है, वहीं उत्तर प्रदेश सरकार इन्हें सरकारी जमीन बता रही है। यह भी पेचीदा स्थिति है।
सबसे ज्यादा विवाद मुतवल्ली को लेकर
कब्जेदारी और अन्य हेरफेर के इतर यूपी में वक्फ को लेकर सबसे ज्यादा विवाद मुतवल्ली को लेकर हैं। एक मुतवल्ली पर वक्फ की संपत्तियों का गैरवाजिब इस्तेमाल का आरोप आम है। ज्यादातर मामले ट्रिब्यूनल में सुने जा रहे हैं। संपत्तियों के बेचने, उस पर कब्जा होने देने आदि के भी मामले हैं। वक्फ बोर्ड, वक्फ संपत्तियों का मालिक नहीं, बल्कि देख-रेख करने का जिम्मेदार होता है।
सरकार और वक्फ बोर्डों के अपने दावे
वक्फ संपत्तियों के स्वामित्व को लेकर परस्पर विरोधी दावे हो रहे हैं। वक्फ बोर्ड जहां इन संपत्तियों को अपना बताता है, वहीं उत्तर प्रदेश सरकार इन्हें सरकारी जमीन बता रही है। यह भी प्रदेश में वक्फ संपत्तियों को लेकर एक पेचीदा स्थिति है। सूत्र बताते हैं कि वक्फ सम्पत्तियों को लेकर सबसे ज्यादा दिक्कतें वक्फ संपत्तियों का नामांतरण नहीं होने से पैदा हुई हैं। वक्फ बोर्ड के रिकार्ड में तो वक्फ के रूप में सम्पत्तियां दर्ज कर ली गईं, लेकिन इनका समय पर नामांतरण नहीं कराया गया है। प्रदेश में अब तक तकरीबन 58 हजार ऐसी संपत्तियों बताई जा रही हैं, जो वक्फ बोर्ड में वक्फ के तौर पर दर्ज हैं जबकि राजस्व विभाग के रिकार्ड में सार्वजनिक उपयोग की श्रेणी में दर्ज हैं। इन संपत्तियों का कुल रकबा तकरीबन 12 हजार एकड़ बताया जा रहा है।
कुछ अहम विवादित मामले
- साल 2005 में सुन्नी वक्फ बोर्ड ने ताजमहल के वक्फ संपत्ति होने का नोटिफेकशन जारी कर दिया था। इससे विवाद खड़ा हो गया था। इससे वक्फ बोर्ड और भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण आमने-सामने आ गए थे।
- लखनऊ के सआदतगंज में साल 2016 में शिया वक्फ बोर्ड ने शिवालय की संपत्ति को वक्फ संपत्ति घोषित कर दिया था। बाद में जांच में पाया गया कि 1864 के राजस्व खाते में जमीन शिवालय के नाम है, जिसके बाद इसे अलग किया गया। कपूरथला की जामा मस्जिद की जमीन को लेकर भी विवाद हुआ था।
- वाराणसी के यूपी कॉलेज को भी 2018 में वक्फ संपत्ति घोषित करने का नोटिफिकेशन जारी हुआ था। विवाद गहराया तब जाकर यह स्पष्ट किया गया था कि इस नोटिस को साल 2021 में बोर्ड निरस्त कर चुका है।
- साल 2018 में ताजमहल के अलावा आगरा किला, फतेहपुर सीकरी, सिकंदरा आदि स्मारकों पर भी उत्तर प्रदेश वक्फ विकास निगम लिमिटेड के तत्कालीन निदेशक गुलाम मोहम्मद ने दावा करते हुए इसका आय का एक हिस्सा बोर्ड को दिए जाने की मांग की थी। इसपर भी काफी विवाद हुआ था।