राहुल सांकृत्यायन का लोक वैश्विक : प्रो. ओमप्रकाश
Varanasi News - वाराणसी में महापंडित राहुल सांकृत्यायन की 132वीं जयंती पर संगोष्ठी का आयोजन किया गया। प्रो. ओमप्रकाश सिंह ने उनके लोक वैश्विक दृष्टिकोण और साहित्यिक योगदान पर प्रकाश डाला। अन्य विशेषज्ञों ने...

वाराणसी, मुख्य संवाददाता। राहुल सांकृत्यायन का लोक वैश्विक है। वह विश्व के अनेक देशों में रहे। वहां की धर्म-संस्कृति और परंपराओं के बारे में विस्तार से लिखा। खासतौर पर भारतीय लोक को उन्होंने अपने साहित्य में जिस प्रकार सजाया है वह बहुत से लेखकों के लिए ईर्ष्या का विषय है।
ये बातें जेएनयू के प्रो. ओमप्रकाश सिंह ने कहीं। वह बुधवार को महापंडित राहुल सांकृत्यायन की 132वीं जयंती पर आयोजित संगोष्ठी को संबोधित कर रहे थे। महापंडित राहुल सांकृत्यायन शोध एवं अध्ययन केंद्र की ओर से नागरी नाटक मंडली के न्यास हॉल में हुई संगोष्ठी में प्रो. सिंह ने कहा कि गहन अध्ययन से ही सांस्कृत्यायन के लोक दर्शन को समझा जा सकता है।
विशिष्ट अतिथि सुरेंद्र प्रताप ने कहा कि राहुल सांकृत्यायन के कई रूप हैं। वह साहित्यकार होने के साथ इतिहासविद, समाजशास्त्री, यायावर, कथाकार, आलोचक, अनुवादक और राजनीतिक भी हैं। वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. मुक्ता ने कहा कि राहुलजी की जीवन दृष्टि मौलिक है। अपना पक्ष रखने के लिए वह जोखिम उठाते हैं और अपने परंपरागत व्यक्तित्व का अतिक्रमण भी करते हैं। डॉ. रामसुधार सिंह ने कहा राहुल सांकृत्यायन के पांडित्य का आधार लोक मानस की वह भावभूमि है जिसने उनके व्यक्तित्व को अपराजेय बनाया था।
प्रो. श्रद्धानंद ने कहा कि सांकृत्यायन के बहुमुखी व्यक्तित्व की निर्मिति यायावरी वृत्ति से हुई। प्रयागराज के डॉ. ओमप्रकाश ने कहा कि वह विलक्षण प्रतिभा से संपन्न थे। वैष्णव वेदांती केदारनाथ पांडेय ने अपने कृतित्व से राहुल के नाम से प्रसिद्धि प्राप्त की। बीज वक्तव्य में प्रो. अवधेश प्रधान ने कहा कि राहुल सांकृत्यायन की लोकप्रियता गांधीजी की लोकप्रियता से कम नहीं थी।
अध्यक्षता करते हुए मंगलोर की प्रो. नागरत्ना एन. राव ने कहा कि हिन्दी में यात्रा साहित्य के पितामह के रूप में प्रख्यात महापंडित राहुल सांकृत्यायन का साहित्य युगांतरकारी है। शोधार्थी उज्ज्वल कुमार सिंह, प्रो. रचना शर्मा, प्रो कमलेश वर्मा आदि ने भी विचार रखे। आगतों का स्वागत संस्था की सचिव डॉ. संगीता श्रीवास्तव ने किया। इस अवसर पर डॉ. अशोक सिंह, प्रो. मंजुला चतुर्वेदी, कवींद्र नारायण, डॉ. अत्रि भारद्वाज, धर्मेंद्र गुप्त ‘साहिल, शिवकुमार ‘पराग, शांति स्वरूप सिन्हा, अरविंद भटनागर, सुनील कुमार, डॉ सुधा पांडेय, डॉ शुभा श्रीवास्तव आदि रहीं।
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