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बोले काशीः जीएसटी तंत्र में सेल्स टैक्स बॉर मांग रहा अधिकार

Varanasi News - वाराणसी में जीएसटी लागू होने के बाद सेल्स टैक्स वकीलों की भूमिका कम हो गई है। अब उनकी भूमिका नोटिस और पेनाल्टी के खिलाफ अपील तक सीमित रह गई है। वकील बताते हैं कि जीएसटी में कई विसंगतियां बनी हुई हैं...

Newswrap हिन्दुस्तान, वाराणसीMon, 11 Nov 2024 04:08 PM
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बोले काशीः जीएसटी तंत्र में सेल्स टैक्स बॉर मांग रहा अधिकार

वाराणसी। ‘एक राष्ट्र-एक कर की अवधारणा के साथ लागू जीएसटी के तंत्र में सेल्स टैक्स के वकीलों की भूमिका नगण्य हो गई है। इसके चलते वकील ‘वर्कलेस होते जा रहे हैं। उनकी भूमिका नोटिस और पेनाल्टी के खिलाफ अपील कराने तक सिमट गई है। फिर, स्टेट जीएसटी के अफसर उनकी सुनते भी हैं, सेंट्रल जीएसटी के अफसर उन्हें नजरअंदाज करते हैं। वे कहीं अधिक अव्यावहारिक हैं। इन वकीलों का कहना है कि अनेक संशोधनों के बाद भी जीएसटी में कई विसंगतियां हैं। उनके रहते ‘एक राष्ट्र-एक कर की अवधारणा मजूबत नहीं हो सकती। बनारस का सेल्स टैक्स बार टैक्स व्यवस्था से जुड़े वकीलों का प्रदेश में सबसे बड़ा एसोसिएशन है। सात सौ सदस्य संख्या प्रदेश में ऐसे किसी संगठन की नहीं है। सेल्स टैक्स बार एसोसिएशन पहले वाणिज्यकर, अब राज्यकर एवं केन्द्रीय राज्यकर विभाग और व्यापारियों, उद्यमियों के बीच एक सेतु माना जाता रहा है। मगर जीएसटी लागू होने के बाद उस ‘सेतु को अब खुद की प्रासंगिकता बनाए रखने के लिए जद्दोजहद करनी पड़ रही है। एसोसिएशन के पदाधिकारियों एवं सदस्यों ने ‘हिन्दुस्तान के साथ चर्चा में सुगम व्यापार, सहज कर वसूली, व्यापारियों की दिक्कतों, विभागीय कार्यशैली से जुड़े मुद्दों पर फोकस किया। एसोसिएशन के वर्तमान अध्यक्ष प्रमोदराम त्रिपाठी, पूर्व अध्यक्ष शरदचंद्र त्रिपाठी, गंगेश पांडेय और अजय श्रीवास्तव ने चर्चा की शुरुआत में कहा कि राज्य एवं सेंट्रल जीएसटी के अधिकारियों को विशेष शक्ति और अधिकार मिले हैं, उनका उचित और संतुलित उपयोग हो तो बहुत सी समस्याएं पैदा ही न हों।

पंजीकरण में कोई भूमिका नहीं

जीएसटी में व्यापारियों के पंजीकरण समेत सभी प्रक्रियाएं ऑनलाइन होती हैं। कोई व्यापारी कहीं से भी ऑनलाइन पंजीकरण करा लेता है। उसका वेरीफिकेशन नहीं होता। पहले ऐसा नहीं था। अधिवक्ता की छानबीन, पुष्टि एवं संतुष्टि के बाद ही पहले पंजीकरण प्रक्रिया आगे बढ़ती थी। पूर्व अध्यक्ष शरद त्रिपाठी, बार के महामंत्री रामकृष्ण ने कहा- ‘तब अधिवक्ता का वकालतनामा लगता था। वह एक तरह से व्यापारी की ओनरशिप ले लेता था। व्यापारी पर संदेह की गुंजाइश नहीं होती थी। अब ऐसा नहीं है। उन्होंने कहा कि बिना वेरीफिकेशन वाले फर्जी पंजीकरण के मामले और गलत ढंग से इनपुट टैक्स क्रेडिट लेने की शिकायतें बढ़ी हैं। पूर्व सचिव विनयकांत मिश्र ने कहा कि इसी कारण करापवंचन के भी कई मामले सामने आते हैं।

आईटीसी गणना में चूक

सेल्स टैक्स के अधिवक्ताओं का कहना है कि इनपुट टैक्स क्रेडिट या आईटीसी की गणना व्यापारियों के लिए मुश्किलें पैदा कर रही है। क्योंकि गणना वे लोग करते हैं जो इस फील्ड के विशेषज्ञ नहीं होते। अधिवक्ताओं को इस अधिकार से भी वंचित कर दिया गया है। पूर्व अध्यक्ष अजय श्रीवास्तव ने ध्यान दिलाया कि आईटीसी के दावों में त्रुटियां मनमाने ढंग से कार्रवाई का आधार बन रही हैं। छोटी-सी चूक के चलते व्यापारियों का शोषण शुरू हो जाता है। इससे उनमें डर और असुरक्षा का माहौल बना रहता है। व्यापारियों पर दावा खुद जमा करने का भी दबाव बनाया जाता है।

रिटर्न संशोधन पर कठोर रुख

उद्यमियों, व्यापारियों को सबसे बड़ी दिक्कत टैक्स रिटर्न फाइल करने में आती है। जीएसटी अधिनियम में गलतियां सुधारने का मौका नहीं दिया गया है। इसका नकारात्मक पहलू यह है कि रिटर्न तैयार करने में छोटी गलती पर व्यापारियों को नोटिस जारी कर दिए जाते हैं, पेनाल्टी लगा दी जाती है। पूर्व सचिव विनयकांत मिश्रा, पूर्व संयुक्त सचिव सुमित जायसवाल ने बताया कि करदाताओं को संशोधन में एक बार सुधार का मौका मिलने से उनमें वित्तीय अनुशासन के भाव पैदा होंगे। वे बार-बार गलतियां नहीं करेंगे। मगर विभागीय अधिकारी इसी आधार पर कठोर रुख अपना लेते हैं। व्यापारियों का भयादोहन शुरू हो जाता है।

बनारस का माल, चेन्नई में अपील

पूर्व अध्यक्ष शरदचंद्र त्रिपाठी, अधिवक्ता वीरेन्द्र सिंह, राघवेन्द्र तिवारी, पूर्व उपाध्यक्ष श्रवण कुमार ने जीएसटी अधिनियम की एक बड़ी विसंगति की ओर ध्यान दिलाया। उदाहरण दिया कि बनारस से भेजा गया कोई माल यदि किसी कारण से चेन्नई, बेंगलुरु या अहमदाबाद में पकड़ अथवा सीज कर दिया जाता है तो उसके लिए अपील और जिरह भी वहीं करनी पड़ती है। इस स्थिति में बड़े और सक्षम उद्यमी या व्यापारी तो चेन्नई या दूरस्थ शहर में कानूनी प्रक्रिया का खर्च वहन कर लेंगे लेकिन मध्यम और छोटे व्यापारी वहन नहीं कर पाते। उन्हें हानि झेलनी पड़ती है। बार अध्यक्ष प्रमोदराम त्रिपाठी ने कहा कि इस विसंगति का उद्यम, व्यवसाय पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। लंबे समय से यह मांग की जा रही है कि जहां से माल भेजा गया है, वहीं कानूनी प्रक्रिया चले।

सुप्रीम आदेश से निडर एसआईबी का भूत

राज्यकर विभाग का स्पेशल इन्वेस्टिगेटिंग विंग (एसआईबी), सचल दल इन दिनों व्यापारियों के लिए भूत बन गया है। सेल्स टैक्स के अधिवक्ताओं ने प्रमाण के साथ कहा कि एसआईबी के प्रत्येक अधिकारी को राजस्व वसूली का टारगेट दिया गया है। ई-वे बिल उनका मुख्य हथियार बन गया है। वे कहीं भी भेजे गए या कहीं से मंगाए गए माल का ई वे बिल मांगते हैं। कई बार मालवाहक के चालक को वह बिल नहीं मिल पाता जबकि माल के इन्वायस पर ई वे बिल का नंबर ऑटोमैटिक अंकित हो जाता है। सचिव रामकृष्ण ने कहा कि सचल दल के सदस्य इन्वायस पर अंकित नंबर को देखते तक नहीं और माल को जब्त कर लेते हैं या मनमाने ढंग से पेनाल्टी लगा देते हैं। यह कार्रवाई बलपूर्वक होती है लेकिन सचल दल अपनी रिपोर्ट लगाता है कि व्यापारी या उद्यमी ने स्वेच्छा से पेनाल्टी दी है।

वरिष्ठ अधिवक्ता एसपी शुक्ला, पूर्व अध्यक्ष शरद त्रिपाठी ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट और राज्यों के हाईकोर्ट ने हाल के कई फैसलों में तकनीकी आधार पर रास्ते में माल रोकने या जब्त करने पर रोक लगाई है। जब्त माल वापस कराए गए हैं लेकिन बनारस में कोर्ट के फैसलों का सम्मान या डर नहीं दिखता। अधिवक्ताओं ने ध्यान दिलाया कि एसआईबी की मनमानी के भी दुष्परिणाम हाल के चुनावों में सरकार को झेलने पड़े हैं।

बनारस में ट्रिब्यूनल का इंतजार

सेल्स टैक्स के अधिवक्ताओं को बनारस में अपीलीय ट्रिब्यूनल बेंच का इंतजार है। यूपी में बनारस के अलावा लखनऊ और मेरठ में ट्रिब्यूनल की स्थापना की घोषणा सन-2017 में ही हुई है लेकिन इस दिशा में ठोस पहल अब तक नहीं हो सकी है। अध्यक्ष प्रमोदराम त्रिपाठी ने कहा कि किसी मामले में स्थानीय स्तर पर अपर आयुक्त ग्रेड-दो के न्यायालय में प्रथम अपील में हुए निर्णय से व्यापारी संतुष्ट नहीं है उसे सीधे हाईकोर्ट जाना पड़ता है क्योंकि अब तक ट्रिब्यूनल का गठन नहीं हुआ है। इससे समय के साथ अपीलकर्ता का अतिरिक्त धन भी व्यय होता है।

स्पष्ट हों राज्य और सेंट्रल के अधिकार क्षेत्र

सेल्स टैक्स के अधिवक्ता राज्यकर के अधिकारियों से तो कुल मिलाकर संतुष्ट दिखते हैं जबकि सेंट्रल जीएसटी से असंतुष्ट। उनके मुताबिक सेंट्रल जीएसटी के अधिकारी व्यावहारिक नहीं हो पाते। वे सिर्फ प्रावधान की दुहाई देते हैं। फिर, जिस प्रकरण में राज्यकर के अधिकारी जांच और कर चुके होते हैं, उसी की सेंट्रल जीएसटी विभाग की जांच करता है। इससे व्यापारी का दोहरा मानसिक और आर्थिक शोषण होता है। इसलिए दोनों के क्षेत्राधिकार के स्पष्ट निर्धारण की लंबे समय से मांग की जा रही है।

सुझाव :

1. जीएसटी में पंजीयन के लिए आवेदन के एक हफ्ते के अंदर ही संबंधित जांच-पड़ताल होनी चाहिए। इससे 30 दिनों के अंदर पंजीयन में व्यापारी-उद्यमी को राहत मिलेगी

2. कर निर्धारण वर्ष 2017-18, 18-19 और 19-20 की इनपुट टैक्स क्रेडिट के लंबित मामलों का जल्द समाधान होना चाहिए। क्योंकि उन मामलों में क्रेता या विक्रेता व्यापारी की चूक नहीं है।

3. बनारस में अपीलीय ट्रिब्यूनल की जल्द से जल्द स्थापना की जाय। इससे व्यापारियों के समय, धन की बचत होगी।

4. माल जब्ती से संबंधित प्रकरण का निपटारा उसी जिले में होना चाहिए जहां व्यापारी पंजीकृत हो। इससे व्यापारियों को भाषाई, आर्थिक और मानसिक परेशानियां नहीं झेलनी पड़ेंगी।

5. दो करोड़ रुपयों तक के टर्नओवर करने वाले व्यापारियों को जीएसटी रिटर्न दाखिल करने की नोटिस भेजने पर रोक लगाने के लिए स्पष्ट प्रावधान बने

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