पं.साजन के स्वरों ने सजाया सुरों का संसार
Varanasi News - वाराणसी में संकटमोचन संगीत समारोह के 102वें संस्करण का समापन हुआ। पं. साजन मिश्र ने अद्भुत सुरों से श्रोताओं को मंत्रमुग्ध किया। उन्होंने भैरव और भैरवी रागों की प्रस्तुति से दर्शकों का दिल जीत लिया।...

वाराणसी, मुख्य संवाददाता। कहने को तो संकटमोचन संगीत समारोह के 102वें संस्करण की समापन निशा थी लेकिन मंगलवार सुबह की सूर्य पहली किरण के साथ पं. साजन मिश्र ने सुरों के अद्भुत संसार का सृजन किया। स्वरांश की सहभागिता से उन्होंने रुद्रावतार हनुमान का सुर शृंगार कर श्रोताओं को साल भर के लिए विदाई दी।
भैरव थाट के बेहद कठिन राग की अदायगी जिस सरलता से पं. साजन मिश्र ने की वह दूसरे के वश की बात नहीं। भैरव और भैरवी के मिश्रण में दोनों रागों का स्वतंत्र अस्तित्व बनाए रखना उनकी साधना का ही प्रतिफल रहा। पूर्वांग में राग भैरव की ठसक दिखी तो उत्तांग में भैरवी के स्वर नर्तन करते प्रतीत हुए। वादी स्वर म और संवादी स्वर स जहां खिल कर सामने आए वहीं रे, ध और नी की कोमलता लाजवाब रही। विलंबित एक ताल में बंदिश ‘प्रभु गुण गाओ के बाद उन्होंने तीन ताल में निबद्ध बंदिश ‘मनवा भलजे हरिनाम से अपनी प्रस्तुति को विस्तार दिया।
इसके बाद उन्होंने भगवान शंकर की स्तुति करने के बाद ‘काशी के बसइया सुनाकर श्रोताओं की फरमाइश पूरी की। इस फरमाइश के दौरान उन्होंने यह सिद्ध कर दिया कि संगीत साधना का विषय है। इसे चमत्कृत करने के लिए कभी नहीं गाना चाहिए। गायन की इस प्रस्तुति में उनके पुत्र स्वरांश मिश्र ने पिता का भरपूर साथ दिया। उनके साथ तबला पर डीडी किसान और डीडी उर्दू के निदेशक राजकुमार नाहर, संवादिनी पर काशी के वरिष्ठ कलाकार पं. धर्मनाथ मिश्र एवं सारंगी पर काशी के युवा विनायक सहाय ने संगत की।
बांसुरी पर राग परेमश्वरी के स्वर वातावारण में तैर गए
पं.साजन मिश्र की प्रस्तुति से पूर्व मैहर घराने के सुपरिचित कलाकार भारत रत्न पं. रविशंकर के शिष्य पद्मश्री रोनू मजुमदार ने अपने पुत्र ऋषिकेश मजुमदार के साथ बांसुरी पर जुगलबंदी की। उन्होंने पं. रविशंकर द्वारा सृजित राग परमेश्वरी के सुर लगाए। रात्रि के अंतिम प्रहर में उन्होंने दिन के दूसरे प्रहर के राग का चयन शुरुआत में सुधि श्रोताओं को कुछ अटपटा लगा लेकिन जब बांसुरी पर राग परमेश्वरी के सुर लगने शुरू हुए तो समय की अनुभूति राग के स्वरूप के अनुसार होने लगी। बनारस में जन्मे रोनू मजुमदार बनारस घराने के दो युवा तबला वादकों के साथ बैठे थे तो उसका असर भी वादन के दौरान दिखा। पं. संजू सहाय की कार्यशाला से अपनी पहचान बनाने वाले अंशुल प्रताप सिंह और पं. किशन महाराज की परंपरा के ध्वजवाहक पं. कुमार बोस के पुत्र रोहित बोस मुख्य कलाकार के साथ ताल से ताल मिला कर आगे बढ़ते प्रतीत हुए। रोनू मजुमदार ने वादन की शुरुआत ताल धमार में आलाप से की। इसके बाद तीन ताल में बंदिश ‘मातेश्वरी परमेश्वरी का सधा हुआ वादन किया। अंत में पहाड़ी धुन से उन्होंने वादन को विराम दिया।
इंदौर घराने की परंपरा का किया निर्वाह
इससे पूर्व संगीत समारोह के उत्तरार्द्ध की शुरुआत उस्ताद अमीर खान साहब की परंपरा की गायिकी से हुआ। उनके प्रशिष्य पं. सुरेश गंधर्व ने संकटमोचन के दरबार में राग आभोगी से हाजिरी लगाई। मध्यरात्रि के बाद के राग का स्वरूप उन्होंने बड़ी खूबी से निखारा। आरोही अवरोही स्वरों में सटीक तालमेल उनकी गायिका की विशेष खासियत रही। विलंबित ख्याल में बंदिश को उन्होंने इंदौर घराने की परंपरा के अनुरूप लयकारी के साथ पेश किया। ताल के साथ संतुलन बनाते हुए उन्होंने गमक और तान का बेहतरीन काम दिखाया। हुंफित और गुंफित तानें जिस स्पष्टता के साथ उन्होंने ली वह बेमिसाल रही। हरियाणा के झज्जर के मूल निवासी सुरेश गंधर्व की गायिकी में हरियाणवी लोक संगीत का पुट भी मिला। गायिकी में यह खूबी उनके पिता चंद्रभान आर्य की देन है जो स्वयं एक सिद्धकंठ लोक गायक थे। उनके साथ तबला पर पंकज राय, हारमोनियम पर मोहित साहनी, सारंगी पर मनीषा यादव ने संगत की।
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