पं.अजय चक्रवर्ती के गायन ने किया सम्मोहित
Varanasi News - संकटमोचन संगीत समारोह के 102वें संस्करण की दूसरी संध्या में पं. अजय चक्रवर्ती ने गायन से श्रोताओं को मंत्रमुग्ध किया। उनकी प्रस्तुति में गुरु की याद और राग यमन का प्रभाव देखने को मिला। चेन्नई की...

वाराणसी, मुख्य संवाददाता। संगीत के संस्कार का जीवंत उदाहरण संकटमोचन संगीत समारोह के 102वें संस्करण की दूसरी संध्या में गुरुवार को दिखा। घाट-घाट के पानी की तर्ज पर घराने-घराने के चलन को स्वर से सुर में बदलने का हुनर रखने वाले पं. अजय चक्रवर्ती ने विद्यार्थी भाव से गायन में गंधार लगाया। स्वरों की आकृति और विस्तार दोनों की गहराई इतनी कि श्रोता सम्मोहित होकर सुनते रहे।
संकटमोचन दरबार में गुरुवार को हाजिरी लगाने के लिए उन्होंने खासतौर से अपने गुरु पं. ज्ञानप्रकाश घोष द्वारा बनाई गई बंदिश को चुना। वह चाहते तो कोई और बंदिश भी चुन सकते थे लेकिन यह उनका विद्यार्थी भाव ही था जिसने उन्हें रुद्रावतार के दरबार में अपने गुरु का स्मरण करने की प्रेरणा दी। गुरु बंदिश ‘जग में कछु काम नर नारियन के नाहीं में राग यमन का स्वरूप शत प्रतिशत साकार हुआ। कल्याण थाट के इस राग ने अपने स्वभाव के अनुरूप श्रोताओं को शांत और स्थिर रखा।
दीर्घा में बैठे वयोवृद्ध अनुभवी रसिक रहे हों अथवा रामेश्वर मठ से आए प्रथम प्रवेशी श्रोता। मध्य प्रदेश के सींधी जिले से आए किशोरवय संगीत प्रशिक्षु सृजन मिश्र और श्लोक तिवारी ही क्यों न रहे हों। सभी पर राग का प्रभाव समान रूप से दिखा। सातों स्वर का प्रयोग किए जाने वाले इस संपूर्ण राग ने श्रवण आस को पूर्णता प्रदान की। उन्होंने सादरा ‘चंद्रमा ललाट पर सोहे भुजंग गर, सिर जटाजूट धर, कर डमरू बाजे से गायन को विस्तार दिया। अंत में तराना सुना कर तृप्त किया। इसके बाद वह मंच से विदा लेना चाहते थे लेकिन महंत प्रो. विश्वम्भरनाथ मिश्र के अनुरोध पर ठुमरी ‘का करूं सजनी आए न बालम सुना कर श्रोताओं का दिल जीत लिया।
भरतनाट्यम से मां गंगा के प्रति कृतज्ञता व्यक्त की
इससे पहले दूसरी संध्या की शुरुआत चेन्नई की लावण्या शंकर के भरतनाट्यम नृत्य से हुई। उन्होंने भगवान शिव को समर्पित ‘मल्लारी से अपनी प्रस्तुति का आरंभ किया। ‘नाम रामायण के माध्यम से प्रतीकात्मक रूप से सातों कांड की कथा को नृत्यमय अभिव्यक्ति दी। बालकांड से उत्तरकांड के प्रतिनिधि प्रसंग नृत्य अभिनय से दर्शकों तक स्पष्ट रूप से पहुंचे। अपने नृत्य का समापन उन्होंने ‘काशी पधारीं गंगा शीर्षक से विशेष नृत्य रचना के माध्यम से किया। काशी में उल्टी प्रवाहित होकर भी जन-जन के पाप स्वयं में समाहित करके सभी को हल्का और मुक्त कर देने के लिए मां गंगा के प्रति उन्होंने कृतज्ञता इस प्रस्तुति से व्यक्त की।
सितार के तारों ने झंकृत किया श्रोता मन
यूं तो शास्त्रीय संगीत के अपने नियम कायदे होते हैं। उन्हीं के आलोक में इसका निर्वाह होता है। प्रस्तुति क्रम का निर्धारण भी इसी कायदे का हिस्सा है। कलाकारों की प्रस्तुति का क्रम कनिष्ठता से वरिष्ठता की ओर बढ़ता है। इस समारोह में इसका हमेशा ध्यान रखा जाता रहा है लेकिन परिस्थिति विशेष में छूट का लाभ इस वर्ष देना पड़ा। वरिष्ठ कलाकार पं. अजय चक्रवर्ती के बाद कनिष्ठ कलाकार बनारस के प्रो. राजेश शाह को सितार वादन के लिए आमंत्रित किया गया। बीते चार दशकों से श्रोता दीर्घा में सुनने के बाद वह पहली बार सितार के साथ मंच पर आए बीएचयू के प्रो. राजेश शाह ने राग झिंझोटी की अवतारणा की। रात्रि के दूसरे प्रहर में बजाए गए पूर्वांग प्रधान राग में खमाज के थाट की ठाठ दिखी। निचले सप्तक का पूर्वांग अपनी विशेष छाप श्रोताओं पर छोड़ गया। संपूर्ण जाति के सातों स्वर सितार की झनकार में अपने स्वतंत्र अस्तित्व की अनुभूति कराते रहे। वादी गंधार और संवादी धैवत का संतुलन प्रशंसनीय रहा। जयपुर के सेनिया घराने के कलाकार प्रो. शाह ने विलंबित लय त्रिताल में और द्रुत गत बजाने के बाद घराने की परंपरानुसार आलापचारी में आदर्श प्रस्तुत किया। उनके साथ तबला पर रजनीश तिवारी ने संगत की।
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