Tehri Dam Displaced Families Await Land Rights for 43 Years बोले हरिद्वार : टिहरी बांध विस्थापितों को 43 साल बाद भी नहीं मिला भूमिधरी का अधिकार, Haridwar Hindi News - Hindustan
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बोले हरिद्वार : टिहरी बांध विस्थापितों को 43 साल बाद भी नहीं मिला भूमिधरी का अधिकार

टिहरी बांध परियोजना के तहत विस्थापित 440 परिवारों को 43 वर्षों से भूमिधरी का अधिकार नहीं मिला है। प्रशासन की लापरवाही के कारण ये परिवार सरकारी योजनाओं का लाभ नहीं ले पा रहे हैं। उन्होंने कई बार...

Newswrap हिन्दुस्तान, हरिद्वारThu, 17 April 2025 08:46 PM
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बोले हरिद्वार : टिहरी बांध विस्थापितों को 43 साल बाद भी नहीं मिला भूमिधरी का अधिकार

टिहरी बांध परियोबोलेजना के अंतर्गत वर्ष 1982 में टिहरी से विस्थापित किए गए करीब 440 परिवारों को पथरी क्षेत्र में बसाया गया है। विकास के लिए लोगों ने अपनी पुश्तैनी जमीन और घर मकान छोड़ दिए। सरकार ने तब इन्हें पुनर्वास और आवश्यक सुविधाएं उपलब्ध कराने का आश्वासन दिया था। अब 43 वर्षों के लंबे इंतजार के बाद भी ये परिवार भूमिधरी के अधिकार से वंचित हैं। पथरी क्षेत्र से सचिन कुमार की रिपोर्ट...

आरोप है कि भूमिधरी का अधिकारी न मिलने से इन परिवारों के करीब चार हजार लोगों को सरकारी योजनाओं और सुविधाओं का लाभ नहीं मिल पा रहा है। इसके लिए उन्होंने कई बार धरने प्रदर्शन और ज्ञापन दिए। राजधानी देहरादून में भी जाकर आंदोलन भी किया लेकिन प्रशासन इन परिवारों को भूमिधरी का अधिकारी नहीं दे रहा है। उत्तराखंड राज्य गठन से पहले साल 1982 में देश की सबसे बड़ी टिहरी बांध परियोजना आई थी। वहां के मूल निवासियों ने राष्ट्र निर्माण और देश के विकास के लिए अपना सब कुछ छोड़ने का फैसला लिया। हरिद्वार के पथरी क्षेत्र में जंगल काटकर यहां टिहरी के 440 परिवारों को बसाया गया। हिन्दुस्तान की टीम से बातचीत के दौरान टिहरी विस्थापित क्षेत्र के लोगों ने बताया कि तत्कालीन सरकार ने सभी लोगों से वादा किया था कि उन्हें हर सुविधा से युक्त पुनर्वास क्षेत्र में बसाया जाएगा। वहां उन्हें जमीन का वैध अधिकार भी दिया जाएगा।

वादों के मुताबिक टिहरी क्षेत्र में रहने वाले लोग अपना घर और खेत खलिहान छोड़कर हरिद्वार आ गए। हरिद्वार के पथरी क्षेत्र में जंगल को काटकर उन्हें जमीन दी गई। लेकिन आज 43 वर्षों के बाद भी पथरी क्षेत्र में बसे करीब 440 परिवारों को भूमिधरी का अधिकार नहीं मिल पाया है। भूमिधरी का अधिकार न मिलने के कारण उन्हें सरकारी योजनाओं का लाभ नहीं मिल पा रहा है। उन्हें किसान ऋण, किसान क्रेडिट कार्ड और किसान सम्मान निधि जैसी तमाम सरकारी योजनाओं का लाभ नहीं मिलता है। प्रधानमंत्री आवास योजना का लाभ नहीं मिलता। उनके नाम जमीन नहीं है तो मकान बनाने के लिए बैंक से लोन नहीं मिलता। समाज कल्याण विभाग की पेंशन योजनाओं का लाभ नहीं मिलता।

उन्होंने आरोप लगाया कि यह प्रशासन की एक बड़ी लापरवाही है जो आज तक उन्हें उनका अधिकार नहीं दिया जा रहा है। बैंक अकाउंट खोलने से लेकर कृषि लोन लेने और बच्चों के शैक्षिक दस्तावेज बनाने तक, हर जगह उन्हें जमीन की मालिकी से जुड़े दस्तावेज मांगे जाते हैं, जो उनके पास नहीं हैं। बुजुर्गों ने बताया कि उनकी दो पीढ़ी विस्थापित क्षेत्र में गुजर गई। यहां उनकी तीसरी पीढ़ी रह रही है। उन्होंने कई बार शासन प्रशासन को पत्र लिखे, धरने प्रदर्शन किए। यहां तक कि आंदोलन भी करने के बावजूद उन्हें भूमिधरी का अधिकार नहीं दिया जा रहा है। उन्होंने मांग की है कि उन्हें भूमिधरी का अधिकार दिया जाए ताकि वे भी सरकारी योजनाओं की पात्रता प्राप्त कर सकें।

सुझाव

1. राज्य सरकार को टिहरी विस्थापितों की समस्याओं का तत्काल समाधान करना चाहिए।

2. भूमिधरी अधिकार प्रदान करने की प्रक्रिया को सरल बनाकर लाभार्थियों को उनका हक जल्द से जलेद दिलाना चाहिए।

3. प्रत्येक प्रभावित परिवार का सर्वेक्षण कर उन्हें सरकारी योजनाओं का लाभ दिलाना जाना चाहिए।

4. प्रशासन को आगे आकर जब तक भूमिधरी अधिकार न मिले, तब तक अंतरिम दस्तावेज़ देकर लाभ पहुंचाया जाए।

5. आरक्षित भूमि को अनारक्षित करने के लिए तत्काल प्रभावी कदम उठाए जाएं।

शिकायतें

1. 43 वर्षों के लंबे इंतजार के बाद भी टिहरी विस्थापितों को भूमिधरी का अधिकार नहीं दिया गया।

2. योजनाओं का लाभ कागजी औपचारिकताओं के चलते इन लोगों को नहीं मिल पा रहा है।

3. कई बार ज्ञापन, धरना प्रदर्शन और आंदोलन करने के बावजूद भी शासन-प्रशासन ने गंभीरता नहीं दिखाई।

4. नौकरी, शिक्षा, स्वास्थ्य, बैंकिंग और आवास योजनाओं में दस्तावेजों के अभाव में विस्थापितों को लगातार परेशानी का सामना करना पड़ रहा है।

5. हर सरकार ने सिर्फ वादे किए, लेकिन आज तक किसी भी सरकार ने विस्थापितों की इस समस्या का स्थायी समाधान नहीं किया।

बिना जमीन के किसान अधिकारों से वंचित

पथरी क्षेत्र में बसे टिहरी विस्थापितों को रहने के अलावा खेती के लिए भी जमीनें दी गई थी। लोगों के पास खेती की जमीन तो है लेकिन मालिकाना हक नहीं है। नतीजा यह है कि किसान क्रेडिट कार्ड, किसान सम्मान निधि, कृषि लोन जैसी योजनाएं इनके लिए सपना बन गई हैं। जमीन उनके नाम नहीं होने से बैंक से लोन नहीं मिलता, जिससे खेती को आधुनिक बनाने में रुकावट आती है। किसान होने के बावजूद वे किसान नहीं माने जाते। यह स्थिति न सिर्फ आर्थिक संकट पैदा करती है बल्कि उनके सपनों को पूरा करने में रुकावट पैदा करती है। लोगों ने बताया कि वो खेतों में खूब मेहनत करते हैं लेकिन पुरानी गेहूं चावल और गन्ने की खेती से ज्यादा आमदनी नहीं होती। आधुनिक खेती के लिए पैसों की आवश्यकता होती है। लेकिन भूमिधरी का अधिकार न होने के कारण उन्हें कृषि योजनाएं और बैंक ऋण नहीं मिलता। यदि उन्हें भी अन्य किसानों की तर्ज पर सरकारी योजनाओं का लाभ मिल जाए तो वो भी आधुनिक खेती करके ज्यादा मुनाफा कमा सकेंगे।

पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने दिया था धरना

टिहरी विस्थापितों को भूमिधरी का अधिकार तो नहीं मिल पाया लेकिन अधिकारों के नाम पर राजनीति जरूर की गई। पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने वर्ष 2021 में टिहरी विस्थापितों के साथ देहरादून में धरना दिया। स्थानीय विधायक अनुपमा रावत ने भी इस मुद्दे को विधानसभा में उठाया था लेकिन कोई समाधान नहीं हो पाया। लोगों का कहना है कि 1982 से लेकर अब तक कई सरकारी आई। ना तो पहले उत्तर प्रदेश की सरकारों ने उन्हें हक दिलाया और ना ही उत्तराखंड राज्य बनने के बाद किसी सरकार ने उनकी समस्या का समाधान किया। सभी राजनीतिक दलों की सरकारें केवल उन्हें आश्वासन ही देती आ रही हैं। भूमिधर का अधिकार नहीं दिया जा रहा है।

तीसरी पीढ़ी को हक मिलने का इंतजार

टिहरी विस्थापितों ने बताया कि वर्ष 1982 में टिहरी बांध परियोजना के चलते लोग विस्थापित होने को तैयार हो गए। पथरी क्षेत्र में आज उनकी तीसरी पीढ़ी रह रही है। वहां बसे 440 परिवार आज भी भूमिधरी अधिकार से वंचित हैं। सरकार ने पुनर्वास और मूलभूत सुविधाओं के वादे तो किए लेकिन हकीकत में कुछ नहीं बदला। खेती करने के बावजूद किसान योजनाओं का लाभ नहीं मिल रहा। किसान सम्मान निधि, पेंशन, आवास और शिक्षा जैसी सुविधाओं से भी ये परिवार दूर हैं। दस्तावेजों की कमी के चलते बैंक से लोन और शैक्षिक लाभ भी नहीं मिल पा रहे। कई बार आंदोलन और ज्ञापन दिए गए, पर अधिकार अब भी अधूरे हैं। उन्हें लगता है कि उनकी तीसरी पीढ़ी भी भूमिधरी का अधिकार पाने के लिए संघर्ष करती रहेगी।

राष्ट्र निर्माण के लिए दिया था बलिदान

टिहरी विस्थापित क्षेत्र में रहने वाले बुजुर्गों ने बताया कि जब सरकार ने टिहरी बांध परियोजना बनाई थी और उनसे संपर्क किया था तब वहां रहने वाले लोगों ने इसका विरोध किया था। लोग परियोजना के समर्थन में थे लेकिन अपना घरबार छोड़ने को तैयार नहीं थे। लेकिन यह परियोजना देश की एक बड़ी विद्युत परियोजना थी इसलिए राष्ट्र निर्माण के लिए टिहरी के लोग अपना घर छोड़ने के लिए तैयार हो गए थे। हजारों परिवारों ने अपना घर मकान और जमीन छोड़ दी। उत्तराखंड के अलग अलग इलाकों में लोगों को बसाया गया। लेकिन पथरी क्षेत्र में रहने वाले लोगों को भूमिधरी का अधिकार नहीं मिल पाया। साल 1982 से लेकर आज तक सभी परिवार और परिवारों से जुड़े लोग अपनी एक सूत्रीय मांग की लड़ाई लड़ रहे हैं। उन्हें बार-बार ब्लॉक और तहसील के चक्कर लगाने पड़ते हैं, लेकिन समाधान नहीं मिलता।

कोरे आश्वासन और वादाखिलाफी का आरोप

टिहरी विस्थापितों ने बताया कि विस्थापन के समय सरकार ने उनसे वादा किया था कि विस्थापितों को सभी मूलभूत सुविधाएं दी जाएंगी लेकिन ज़मीनी हकीकत अलग है। बैंक लोन, किसान सम्मान निधि और किसानों से जुड़े ऋण और आवास योजना जैसी स्कीमें कागज़ों में ही रह गई हैं। ज़मीन के दस्तावेज न होने से 43 वर्षों परेशानी झेल रहे हैं। इस बीच कई सरकारें आईं और चली गईं, लेकिन किसी ने समस्या का स्थायी हल नहीं निकाला। टिहरी विस्थापित खुद को उपेक्षित महसूस करते हैं। शासन-प्रशासन की निष्क्रियता ने इन्हें आज भी संघर्ष में बनाए रखा है।

बोले लोग-

कई योजनाएं ऐसी हैं जिनमें जमीन के कागज मांगते हैं। हमारे पास जमीन के कागज नहीं हैं। भूमिधरी का अधिकार मिल जाए तो हमें परेशान नहीं होना पड़ेगा। -जोत सिंह चौहान

यहां मेहनत करके खेती तो कर रहे हैं, लेकिन किसान होने के बावजूद हमें किसी सरकारी योजना का लाभ नहीं मिलता। सिर्फ इसलिए क्योंकि हमारे पास भूमिधरी के कागज नहीं हैं। -भगवान सिंह

बच्चों की पढ़ाई के लिए बैंक लोन और स्कॉलरशिप तक नहीं मिलती। बैंक वाले लोन देने को मना कर देते हैं क्योंकि निवास और जमीन से जुड़े दस्तावेज ही पूरे नहीं हैं। -धनपाल चौहान

टिहरी से अपना घर बार और जमीन छोड़े हुए 43 साल हो गए लेकिन आज भी हम खुद को विस्थापित ही महसूस करते हैं। सरकार हमें टिहरी से उजाड़कर नई जगह बसाकर भूल गई। -राम सिंह रावत

कई बार धरना प्रदर्शन किया, ज्ञापन दिए, देहरादून तक गए लेकिन सिर्फ आश्वासन ही मिले। हम लोगों ने आंदोलन तक किए लेकिन हमें अपना हक आज तक नहीं मिला। -तेजपाल चौहान

किसान सम्मान निधि, बैंक ऋण, किसानों से संबंधित अन्य योजनाओं का लाभ नहीं मिलता। कइयों के घर का सपना भी अधूरा रह गया है। इसी कारण हम योजनाओं से वंचित रह जाते हैं। -बालम सिंह

हमारे बुजुर्ग, महिलाएं पेंशन के हकदार हैं, लेकिन दस्तावेज पूरे न होने के कारण वो भी वंचित हैं। जल्द से जल्द हमें भूमिधरी का अधिकार मिलना चाहिए। -तोता सिंह

अगर हमारे पास भूमिधरी के कागज होते तो हम भी आत्मनिर्भर होते। कितनी सरकारें आई और चली गई। हर सरकार वादे तो करती है लेकिन वादों को पूरा किसी सरकार ने नहीं किया। -अंकित चौहान

हमसे कहा गया था कि हमें वैध जमीन का अधिकार मिलेगा, लेकिन हर बार सिर्फ झूठे वादे किए गए। आरक्षित भूमि बताकर हमारी मांग पूरी नहीं की जा रही है। -सतीश डंगवाल

कई पीढ़ियां संघर्ष में गुजर गईं, लेकिन हमारा संघर्ष खत्म नहीं हुआ। लगता है कि संघर्ष में पूरा जीवन बीत जाएगा। वर्तमान शासन और प्रशासन हमें हमारा हक दिलाए। -असार सिंह

युवाओं की पढ़ाई लिखाई पूरी करने के बाद नौकरियों में भी दस्तावेज की कमी आड़े आ जाती है। यह केवल प्रशासन की लापरवाही नहीं बल्कि सभी टिहरी विस्थापितों की उपेक्षा है। -जगत सिंह थलवाल

हमारी दो पीढ़ी निकल गई है और अब तीसरी पीढ़ी पथरी क्षेत्र में रह रही है। उम्मीद नहीं लगती कि तीसरी पीढ़ी को भी भूमिधरी का अधिकार मिल पाएगा। -सुरेंद्र सिंह रावत

बोले जिम्मेदार

जिलाधिकारी हरिद्वार कर्मेंद्र सिंह का कहना है कि टिहरी विस्थापितों को जो भूमि दी गई थी वो वन आरक्षित भूमि है। आरक्षित भूमि को अनारक्षित करने का अधिकार शासन को है। इसके लिए शासन को पत्र लिखा जाएगा और समस्या का स्थाई समाधान किया जाएगा।

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