प्रकृति के प्रति श्रद्धा और जागरूकता होनी जरूरी
परमार्थ निकेतन में पर्यावरण संरक्षण गतिविधि की अखिल भारतीय कार्यशाला का आयोजन हुआ। वक्ताओं ने पर्यावरण संरक्षण की महत्ता बताई और सभी उपस्थित लोगों ने इसे लेकर संकल्प लिया। स्वामी चिदानंद सरस्वती ने...

परमार्थ निकेतन में पर्यावरण संरक्षण गतिविधि की अखिल भारतीय कार्यशाला हुई। जिसमें वक्ताओं ने पर्यावरण संरक्षण की महत्ता बताई गई। कार्यक्रम में पर्यावरण संरक्षाण का संकल्प लिया गया। शनिवार को आयोजित कार्यशाला का शुभारंभ परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानंद सरस्वती व पर्यावरण संरक्षण गतिविधि के अखिल भारतीय संयोजक गोपाल आर्य ने किया। स्वामी चिदानन्द सरस्वती ने कहा कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ एक ऐसी प्रेरणादायक संस्था है, जो भारतीय संस्कृति और सनातन मूल्यों की रक्षा के लिये समर्पित है। भारत के पुनर्निर्माण में भी अद्भुत योगदान दे रही है। यह संगठन विगत 100 वर्षों से निःस्वार्थ भाव से समाज के हर वर्ग तक सेवा, संस्कार और स्वाभिमान का संदेश पहुंचा रहा है।
गोपाल आर्य ने कहा कि सनातन संस्कृति में प्रकृति को देवतुल्य माना गया है। वायु को प्राण, जल को जीवन, भूमि को मां और अन्न को देवता के रूप में पूजने की परंपरा रही है। परन्तु आधुनिक जीवनशैली ने इन्हें मात्र उपयोग की वस्तुएं बना दिया है, यहीं से संकट की शुरुआत होती है। उन्होंने कहा कि वैदिक काल में भूमि को माता कहा गया, लेकिन आज हमने उसे केवल प्रॉपर्टी का टुकड़ा मान लिया है। जल, जो जीवन का मूल है, आज केवल नल से बहता पानी बन गया है। अन्न जो देवता था, आज केवल खाने की वस्तु है। यह सोच और व्यवहार हमें हमारी संस्कृति से दूर कर रहे है। अब समय आ गया है कि हम उपयोग से आगे बढ़कर उपासना की ओर लौटें। लोगों में प्रकृति के प्रति संवेदना और श्रद्धा जागृत करना ही आज की सबसे बड़ी आवश्यकता है। तभी पर्यावरण संरक्षण एक जनआंदोलन बन सकता है। इस दौरान सभी उपस्थित लोगों ने पर्यावरण संरक्षण का संकल्प लिया।
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