बावड़ी मेले के दूसरे दिन खरीदारी करने पहुंचे लोग
बैसाखी पर्व पर गंगभेवा बावड़ी मेला शुरू होते ही गरीब मजदूर वर्ग के ग्रामीणों के लिए रोजमर्रा की वस्तुएं सस्ते दामों पर खरीदने का माध्यम बन गया है।

बैसाखी पर्व पर गंगभेवा बावड़ी मेला में लोग जमकर खरीदारी कर रहे हैं। 21 वीं सदी में भी मेले की पौराणिकता बरकरार है। मेले के दूसरे दिन कृषि औजार और घरेलू सजावट का सामान खरीदने पर जोर रहा। काश्तकारों ने जहां खेती में उपयुक्त औजारों की खरीदारी की, वहीं महिलाओं ने चाट-पकौड़ी का आनंद लेने के साथ ही सजने संवरने का सामान खरीदा। बच्चों की पहली पसंद झूले रहे। बावड़ी में बैसाखी पर्व पर मेले की शुरुआत कई दशक पूर्व हुई थी। माना जाता है कि मेले का मुख्य उद्देश्य ग्रामीणों को जरूरत का सामान उपलब्ध करवाना था। रविवार से शुरू हुए इस मेले में विशेषकर गर्मी के मौसम में काम आने वाले मिट्टी के घड़े, बांस के पंखों की दुकानें सज गई हैं। बैसाखी के दिन से ही फसल काटने की शुरुआत की जाती है। लिहाजा फसल काटने वाले औजारों की बिक्री भी बहुतायत में होती है। उत्तर प्रदेश के जिला सहारनपुर के जंजोली, बुबका, शेरपुर, सलेमपुर गांव के कुम्हार मेले में मिट्टी के घड़े, मटका, कछाली, सुराही, गुल्लक बेचने के लिए आए हुए हैं। उनका कहना है कि बैसाखी के बाद तेज गर्मी शुरू होने से मेले में घड़ों की बिक्री सबसे ज्यादा होती है। सेलाकुई के शिल्पी गांव के ग्रामीण मेले में बांस के बने पंखे बेचते हैं। मेले में फसल काटने के औजार बेचने बेहट से लोहार भी यहां पहुंचे हैं। ये लोहार वर्षों से यहां फसल काटने के उपयोग में आने वाले औजार बेच रहे हैं। बावड़ी में लगने वाले इस मेले का ऐतिहासिक व धार्मिक महत्व तो है ही, साथ ही आसपास के क्षेत्र में लगने वाला यह एकमात्र ऐसा मेला है, जहां मौसम के अनुसार लोगों की जरूरत का सामान ही अधिकतर बिकता है। मेले के दूसरे दिन शाम को मौसम कुछ ठंडा होने पर बड़ी संख्या में ग्रामीण पहुंचे।
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