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Amalaki Ekadashi 2025 Vrat Katha: राजा मांधाता का ऐसा हुआ कल्याण, आज पढ़ें रंगभरी एकादशी व्रत कथा

  • होलिका दहन से चार दिन पहले आती है आमलकी एकादशी, जो फाल्गुन मास की आखिरी एकादशी है। इसे रंगभरी एकादशी भी कहते हैं। इसके बाद से फाल्गुन का महीना खत्म होकर चैत्र का महीना लगता है।

Anuradha Pandey लाइव हिन्दुस्तानSun, 9 March 2025 09:37 PM
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Amalaki Ekadashi 2025 Vrat Katha: राजा मांधाता का ऐसा हुआ कल्याण, आज पढ़ें रंगभरी एकादशी व्रत कथा

होलिका दहन से चार दिन पहले आती है आमलकी एकादशी, जो फाल्गुन मास की आखिरी एकादशी है। इसे रंगभरी एकादशी भी कहते हैं। इसके बाद से फाल्गुन का महीना खत्म होकर चैत्र का महीना लगता है। इन दिनों कहा जाता है कि भगवान का निवास आवंले में होता है, इसलिए इस दिन आंवले के नीचे बैठकर भगवान की कथा करनी चाहिए। इस दिन आंवला दान करने और आंवला की पूजा करना बहुत फल देता है।

इसकी कथा इस प्रकार है-

त्रेतायुग में एक बार राजा मांधाता ने ऋृषि वशिष्ट जी से अनुरोध किया कि अगर आप मुझ पर प्रसन्न हैं, तो कोई ऐसा व्रत बताएं, जिससे मेरा हर प्रकार से कल्याण हो। उन्होंने कहा, वैसे तो सभी व्रत उत्तम है, लेकिन सबसे उत्तम है, आमलकी एकादशी व्रत। इस व्रत को करने से सभी पापों का नाश होता है। इस व्रत को करने से एक हजार गायों के दान के बराबर फल मिलता है। यहां पढ़ें इस व्रत की कथा-

वैदिक नाम के एक नगर में एक ब्राह्राण, वैश्य, क्षत्रिय और शूद्र चारों का परिवार अच्छे से रहता था। वहां पर सदैव वैद ध्वनि गूंजत थी। उस नगर में चैत्ररथ नाम का चंद्रवंश राजा था। नगर के सभी लोग भगवान विष्णु के परम भक्त थे और भगवान विष्णु के लिए एकादशी व्रत किया करते थे। हर साल की तरह इस साल भी आमलकी एकादशी आई। सभी ने आनंदपूर्वक एकादशी का व्रत किया। राजा प्रजा के साथ मंदिर में आंवले की पूजा सभी नैवेद्यों आदि से किया। मंदिर में सभी ने रात्रि जागरण किया। उस दिन वहां एक दुराचारी और पापी बहेलिया आया। वह जीव हत्या करके अपना घर चलाता था, एक दिन उसे कोई शिकार नहीं मिला। इसलिए उस दिन वह वहां भूखा रहा। भूख के कारण एक मंदिर में चला गया और एकादश व्रत का महात्मय सुनने लगा। रात में उसने कुछ नहीं खाया और घर जाकर भोजन किया। अनजाने में उससे एकादशी का व्रत हो गया। कुछ टाइम बाद उसकी मृत्यु हो गई। एकादशी व्रत के प्रभाव से अगले जन्म में वह राजा विधुरथ के यहां जन्मा। उसका नाम वसुरथ रखा गया। वह सेना के साथ 10 हजार ग्रामों का पालन करने लगा। वह तेज में सूर्य के तरह और कांति में चंद्रमा की तरह था. वह विष्नु भक्त था और दान करना और यज्ञ करना उसका काम था। एक दिन राजा वसुरथ शिकार खेलने गया और रास्ता भटक गया। तभी राजा को आवाज आई कि कुछ मलेच्छ उसे मारने आ रहे हैं, उनका कहना था कि राजा ने उन्हें राज्य से बाहर निकवाया है और अब वो राजा को नहीं छोड़ेगें। इस पर वो अस्त्र लेकर राजा को मारने दौड़े। लेकिन राजा पर उनके अस्त्रों का कोई प्रभाव नहीं हुआ और राजा के शरीर से एक देवी उत्पन्न हुईं और उन्होंने सभी मलेच्छ को मार दिया। इस प्रकार भविष्यवाणी हुई तुम्हारी रक्षा स्वयं भगवान विष्णु ने की है। इस प्रकार उसकी एक दिन क आमलकी एकादशी के व्रत के प्रभाव से सब अच्छा हो गया। जो आमलकी एकादशी का व्रत करते हैं, उनके सभी कार्य पूर्ण होते हैं और ऐसा व्यक्ति अंत में मोक्ष प्राप्त करता है।