10 अप्रैल को महावीर स्वामी जयन्ती, पढ़ें भगवान महावीर से जुड़ी यह कहानी
- जैन धर्म के चौबीसवें तीर्थंकर भगवान महावीर ने युवावस्था में ही संन्यास धारण कर विश्व को करुणा रूपी नए धर्म से परिचित कराया। स्थूल, सूक्ष्म, त्रस, स्थावर सब जीवों पर करुणापूर्ण हृदय लिए प्रभु की ध्यान साधना तथा तपस्या अविराम बढ़ रही थी।

Mahavir Swami Jayanti: जैन धर्म के चौबीसवें तीर्थंकर भगवान महावीर ने युवावस्था में ही संन्यास धारण कर विश्व को करुणा रूपी नए धर्म से परिचित कराया।
स्थूल, सूक्ष्म, त्रस, स्थावर सब जीवों पर करुणापूर्ण हृदय लिए प्रभु की ध्यान साधना तथा तपस्या अविराम बढ़ रही थी। संगम नामक एक देव महावीर की इस करुणा, शांति के संबंध में शंकालु थे। उन्हें लगता था कि इनकी ये करुणा अनुकूलताओं के रहते ही बहती है। यदि स्थितियां प्रतिकूल हो जाएं तो इनकी करुणा का जलाशय सूख जाएगा। वह नहीं जानता था कि महावीर के लिए करुणा एक सहज स्फुरणा थी, कोई परिस्थितजन्य घटना नहीं। विकारों के हेतु विद्यमान होने पर भी जिनके चित्त में विकार पैदा नहीं होते, वही धीर और वीर होते हैं। महावीर दो दिन के उपवास के बाद भिक्षा लेने नगर में गए। संगम देव ने ऐसा वातावरण बना दिया कि महावीर भोजन नहीं ले पाए और वे वापिस अपने एकांत स्थल पर आकर ध्यान लीन हो गए। उसने उस रात महावीर को भिन्न-भिन्न ढंग से चौदह प्रकार के असह्य कष्ट दिए। महावीर समतापूर्वक प्रत्येक अत्याचार को देखते रहे। न यह सोचा कि वह ऐसा क्यों कर रहा है और न ही यह कि ये अत्याचार रुक जाए तो अच्छा होगा। इस तरह संगम देव केवल एक दिन के लिए नहीं, छह महीने तक महावीर को सताते रहे। उन्हें आहार-पानी लाने नहीं दिया। इतना ही नहीं संगम देव लोगों में जाकर महावीर के बारे में झूठ फैलाते, उन्हें चोर बताते, पर महावीर मन से पूर्ण निराकुल और प्रतिक्रियाविहीन बने रहते। छह माह बाद संगम देव ने माफी मांगी और कहा कि अब मैं आपको परेशान नहीं करूंगा। और यह भी कितनी गजब बात थी कि जो महावीर छह माह तक परेशान नहीं हुए थे, आज उनके हृदय में एक परेशानी थी। हृदय से वह परेशानी महावीर के नयनों में उतर आई। दोनों आंखें नम हो गईं। आंखों से टपकते आंसू देखने के लिए छह महीने तक प्रतीक्षारत संगम देव के लिए यह अप्रत्याशित था। वह सोच रहा था कि क्यों आज कष्ट मुक्ति के क्षणों में महावीर अश्रुयुक्त हैं। संगम को यह पहेली समझ नहीं आई। जिसे महावीर ने इस तरह सुलझाया। वह बोले, ‘संगम तेरे कारण मेरे जन्मों के कर्म कट गए, पर मेरे कारण तूने जन्म-जन्मों के कर्म बांध लिए। जब ये कर्म उदय में आएंगे, तब तुझे पीड़ा होगी। उस पीड़ा से मेरा हृदय करुणा से भीग गया और आंखें गीली हो गईं। मेरे आंसू दर्द के नहीं, करुणा के हैं।’
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