बोले आरा : नीलगायों से फसल बर्बाद होने पर किसानों को तत्काल मिले मुआवजा
भोजपुर जिले के दक्षिणी इलाके में नीलगायें रबी फसलों को बड़े पैमाने पर नुकसान पहुंचा रही हैं, जिससे किसान परेशान हैं।
भोजपुर जिले के दक्षिणी इलाके में नीलगायें बड़े पैमाने पर रबी फसलों को नुकसान पहुंचा रही हैं। लगातार नुकसान को लेकर किसान काफी परेशान हो चुके हैं। किसानों की व्यथा और दर्द समझने के लिए प्रशासनिक अधिकारी तैयार नहीं हैं। नुकसान पर रोक लगाने के लिए कोई कारगर कदम नहीं उठाये जाने से कुछ इलाकों में कई किसानों ने तो दलहन से लेकर सब्जी तक की खेती छोड़ दी है। खास तौर पर दलहन में मसूर, चना, मटर, खेसारी और अरहर के अलावा गेहूं की फसल भी नीलगायों के चरने, खुर से उखाड़ने या रौंदने से बर्बाद हो रही है। जिला प्रशासन की ओर से तत्काल इस समस्या का निदान चाहते हैं किसान। नीलगायों से भोजपुर जिले के दक्षिणवर्ती इलाके के बधारों में लगी रबी की फसलें बड़े पैमाने पर बर्बाद हो रही हैं। इन फसलों के बर्बाद होने के चलते कई किसानों ने रबी समेत अन्य नगदी फसलों की खेती लगभग बंद कर दी है। नुकसान की वजह से खास तौर पर अरहर, मटर, मसूर, चना, खेसारी के साथ-साथ गेहूं की खेती भी घाटे का सौदा बन गयी है। भदई फसलों में धान की खेती के समय नीलगायों से नुकसान नहीं हो पाता है, लेकिन धान कटते ही नीलगायों का झुंड सक्रिय हो जाता है। झुंड में शामिल नीलगायें गेहूं की फसल को दौड़-दौड़ कर बर्बाद कर देती हैं। रबी फसलों में मसूर, चना, खेसारी और मटर के अलावा अरहर की फसल चर जाती हैं।
नीलगायों के चरने या रौंदने के बाद दुबारा नगदी और रबी फसलों के पौधों की बढ़ोतरी रुक जाती है। हाल के दिनों में पीरो नगर परिषद् क्षेत्र के बरौली, लहराबाद, ओझवलियां में किसानों ने नीलगायों के आतंक से सब्जी की खेती भी छोड़ दी है। अधिक नुकसान कचनथ, नोनार, सेदहां, जेठवार, पचमा, नारायणपुर और कातर में देखने को मिलता है। सब्जी की खेती करने वाले किसान बचाने को रात-दिन मशक्कत करते हैं। नीलगायों की प्रजनन क्षमता कम करने अथवा इनसे हो रही परेशानियों को दूर करने का उपाय न तो किसानों के पास है और न ही अफसरों के पास। प्रभावित गांवों के किसानों ने तरारी, पीरो, चरपोखरी और सहार के सीओ समेत एसडीओ और डीएम से गुहार लगायी, लेकिन नियंत्रण की दिशा में आज तक ठोस पहल नहीं की जा सकी है। तरारी प्रखंड मुख्यालय से सटे तरारी, धर्मपुरा, बिहटा, राजापुर, धोकरहा और अंधारी में भी नीलगायों का आतंक कम नहीं है। सोन के तटवर्ती इलाके में आलू और अन्य सब्जी की खेती करने वाले किसान अक्सर ही नीलगायों के आतंक से परेशान होकर खेती नहीं कर पा रहे हैं। कभी-कभार तो ऐसा हो जाता है कि रैयतों को सब्जी और आलू उत्पादक खेत का किराया दे पाने में अक्षम हो जाते हैं। कचनथ के किसान दिनेश सिंह के अनुसार पिछले साल नीलगायों को भगाने के लिये पारंपरिक उपाय तलाशे गये और भगाया भी गया, लेकिन नीलगाय भगाने के बाद झुंड के झुंड नीलगायें दुबारा आ गयीं और सब्जी की फसलों को बर्बाद कर दिया।
तरारी निवासी लोकेश सिंह का कहना है कि वन विभाग से भी नीलगायों पर नियंत्रण के लिये अनुरोध किया गया, लेकिन अब तक हल नहीं निकल पाया है। वन विभाग के अधिकारी दिखावे के लिए क्षेत्र में एक-दो दिन चौकसी करते हैं, लेकिन वास्तविक हल नहीं निकल पा रहा है। क्षेत्र में वन विभाग की ओर से वनपाल और वन कर्मियों की तैनाती की गयी है, लेकिन किसानों को सहयोग करने की बजाय वन कर्मी लकड़ी काट कर बेचने के लिये ले जाने वाले ट्रैक्टर के पीछे घूमते रहते हैं।
प्रजनन पर नियंत्रण नहीं, नीलगायों की लगातार बढ़ रही संख्या
भोजपुर जिले के दक्षिणी इलाकों में बसर करने वाली नीलगायों की प्रजनन क्षमता पर नियंत्रण नहीं किये जाने से इनकी संख्या लगातार बढ़ रही है। किसानों के अनुसार पिछले पांच सालों में नीलगायों की संख्या काफी बढ़ी है और दलहन फसलों के साथ गेहूं की फसल की बर्बादी भी बढ़ी है। पीड़ित किसानों ने नीलगायों पर नियंत्रण के लिए वन विभाग के अधिकारियों से मिलने का फैसला लिया है। कचनथ, नोनार, जेठवार, अंधारी और धोकरहा के किसानों ने जिला प्रशासन से भी नीलगायों पर नियंत्रण की गुहार लगायी है।
नीलगायों से हो रहे नुकसान को रोकने के लिये सभी नियम बेकार
नीलगायों से हो रहे नुकसान को रोकने के लिये बनाये गये सरकारी नियम और कायदे बेकार साबित हो रहे हैं। फसल नुकसान होने पर अफसर और कर्मचारी एक-दूसरे पर मामले को छोड़कर पल्ला झाड़ लेते हैं। सब्जी और दलहन फसल के उत्पादक किसानों की फसलों की सुरक्षा का कोई उपाय सरकारी स्तर पर नहीं किया जा रहा है। साथ ही फसलों का नुकसान होने पर मुआवजा से लेकर बीमा तक के प्रावधान को फाइलों में बंद कर रखा जा रहा है। वर्षों से नुकसान सह रहे किसानों ने सरकारी रवैये से तंग आकर भोजपुर जिले के दक्षिणी इलाके में दलहन की फसलों और सब्जी उत्पादन कम कर दिया है। अधिकतर गांवों के सब्जी उत्पादक या तो खेती छोड़ चुके हैं या नीलगाय से बचाकर खेती करने के लिए दूसरे जगहों की तलाश कर रहे हैं।
जटिल प्रक्रिया के चलते नही हो पाती है नीलगायों की शूटिंग
जटिल प्रक्रिया के चलते नीलगायों की शूटिंग भी नहीं हो पाती है। नीलगायों से परेशानी होने पर जिला वन क्षेत्र पदाधिकारी के यहां आवेदन देना पड़ता है। प्रभावित किसानों के आवेदन पर डीएफओ मामले की जांच अधिकारियों से कराते हैं और उपद्रवी नीलगायों की पहचान की जाती है। पहचान के बाद सरकार से अनुमति लेकर शूटिंग का समय तय किया जाता है। शूटिंग के प्रस्ताव को संबंधित पंचायत के पास भेजा जाता है। पंचायत से प्रस्ताव पारित होने पर मुखिया और वन विभाग के अफसर की मौजूदगी में शूटिंग की जाती है। शूटिंग के लिए यूपी के बनारस से शूटर मंगाये जाते हैं। भोजपुर और बक्सर वन क्षेत्र के बक्सर में पिछले साल 15 की संख्या में नीलगायों की शूटिंग की गई थी। इसके बाद से किसानों के बहुतेरे आवेदन आये और मामले की जांच चल रही है। वहीं कुछ आस्थावान किसान नीलगायों की शूटिंग भी नहीं चाहते, जिसके चलते आवेदन नहीं दे पाते।
शिकायतें
नीलगायों से नुकसान के बाद फसलों का मुआवजा नहीं मिलता है
फसलों की बीमा का भी लाभ नीलगायों से हुई क्षति में नहीं मिलता है
नीलगायों से फसलों की सुरक्षा को लेकर सरकार की ओर से निरोधात्मक उपाय नहीं किये जाते
नीलगायों की प्रजनन क्षमता पर रोक नहीं लग रही है, जिससे संख्या लगातार बढ़ रही है
नीलगायों की शूटिंग प्रक्रिया में कई तरह की दिक्कतों से इसे अमल में लाने में मुश्किलें
सुझाव
नीलगायों से फसलों की क्षति होने पर मुआवजे का भुगतान किसानों के बीच किया जाए।
नीलगाय प्रभावित इलाकों में गेहूं, दलहनी और नगदी फसलों का बीमा कराया जाए।
वन विभाग और पशु विभाग की ओर से नीलगायों की प्रजनन क्षमता कम करने को ठोस कदम उठाये जाएं।
नीलगायों की सुरक्षा के लिए खास क्षेत्र को प्रतिबंधित किया जाये और अन्य इलाके में भ्रमण करने से रोका जाए।
सोन के तटवर्ती इलाकों में नीलगायों के झुंड के आवासन और पालन की व्यवस्था की जाये।
दर्द उभरा
नीलगायों से हो रहे नुकसान को रोकने के लिये सरकारी स्तर पर पीरो, तरारी और चरपोखरी के साथ-साथ सहार के गांवों में व्यवस्था बनायी जाए। आवेदन के बाद भी रोकने को लेकर उत्साहजनक प्रयास नहीं हो पा रहे हैं।
अरविंद सिंह
सब्जी और दलहन फसल के उत्पादकों का बीमा कराया जाये ताकि नीलगायों से नुकसान होने पर बीमा की राशि मिल सके। बीमा के आकलन को लेकर किसानों की कमेटी में निर्णय लिया जाये। साथ ही रकम भी तय की जाये।
हरेराम सिंह
दलहन और सब्जी की फसल उगाने वाले किसानों की फसलों की सुरक्षा के लिये सरकारी स्तर पर फसलों को घेरने के संसाधन उपलब्ध कराये जाएं। पारम्परिक साधनों के आलावा वैज्ञानिक संसाधन भी मुहैया कराये जाएं। फिर आपसी सहयोग को बढ़ावा दिया जाये।
सुरेन्द्र सिंह
दस-दस किसानों का संगठन बनाकर गांव-गांव में नीलगायों से हो रहे नुकसान से बचाव को लेकर किसानों को ट्रेंड किया जाए। सहयोग के लिए किसानों को आवश्यक सहयोग देंगे और बचाव के उपाय बताए जायें।
हरेकृष्ण सिंह
नीलगायों की प्रजनन क्षमता रोकने और नीलगायों के आवासन पर रोक लगाने की दिशा में सरकारी स्तर पर सार्थक पहल की जाए। नर नीलगाय की पहचान कर शूटिंग की जाये और पंचायतों को साधन संपन्न बनाया जाये।
मकरध्वज सिंह
नीलगायों के लिए सोन नदी के तटवर्ती इलाकों में सुरक्षित क्षेत्र बनाया जाए और उनके रहन-सहन के लायक संरचना विकसित किया जाए ताकि किसानों का बचाव हो सके। नीलगायों से बचाव को लेकर घेराबंदी करने का साधन दिया जाये।
संजय सिंह
रबी, दलहन और सब्जी की फसलों को नीलगायों से नष्ट होने पर आपदा प्रबंधन विभाग की ओर से किसानों को मुआवजा देने की परंपरा शुरू की जाए। मुआवजे को लेकर पंचायतों को अधिकतम सम्पन्न बनाया जाये और राजस्व कर्मियों को जांच की जिम्मेवारी सौंपी जाये।
प्यारेलाल सिंह
धान की फसल कटते ही गांव - गांव से नीलगायों को सुरक्षित क्षेत्र में पहुंचाने और क्षेत्र में ही रोकने के उपाए किए जाएं। गेहूं और दलहन फसलों की सुरक्षा को लेकर वन विभाग के कर्मियों की तैनाती गांव-गांव में की जाय और नीलगायों को भगाने के उपाय पर ट्रेनिंग दी जाये।
जगदीश सिंह
वन विभाग और पशुपालन विभाग की टीम को नीलगाय प्रभावित इलाकों में तैनात किया जाए और फसलों की क्षति को रोकने की व्यवस्था की जाए। वनों के क्षेत्र पदाधिकारी को पोस्टिंग वाले मुख्यालय में रहने को निर्देशित किया जाये ताकि समय-समय पर भगाने की दिशा में काम हो सके।
चंदन सिंह, बरौली
नीलगाय सहित अन्य जंगली और गैर पालतू पशुओं पर रोक लगाने के लिए विभाग के अधिकारियों को सक्रिय किया जाए ताकि नुकसान से बचाया जा सके। वन विभाग के कार्यालय का पता और फोन नम्बर सार्वजनिक किये जायें। फिर कार्यशाला का भी आयोजन हो।
तेजनारायण सिंह
दलहन फसल और सब्जी की फसल उगाने वाले किसानों को प्रोत्साहित करने के लिये फसलों को घेरने का मुफ्त संसाधन उपलब्ध कराया जाए। बीमा रहने से नुकसान होने पर किसानों की परेशानी खत्म हो पाएगी। फिर नुकसान का चिंता नहीं रह पायेगा।
सचितानंद ठाकुर
नगदी फसल के नष्ट होने पर वाजिब कीमत किसानों को सरकारी स्तर पर आकलन कर दी जाए और किसानों की सुरक्षा को लेकर उपाए किए जाएं। राजस्व कर्मियों और पंचायतों को मुआवजे के लिए अधिकार सम्पन्न बनाया जाये।
सोनू सिंह
घास काटने और फसल काटने गयी महिलाओं और बच्चों को भी अक्सर ही नीलगायों से खतरा बना रहता है। कभी-कभार तो ऐसा होता है कि नीलगायों का झुंड जख्मी भी कर देता है। ज़ख्मी किसानों को नजदीक के अस्पतालों में इलाज और मुफ्त दवा की व्यवस्था हो।
अभय सिंह
फसल नुकसान और बचाव को लेकर चिंतित किसानों का क्लब बनाकर पारंपरिक तरिके से फसलों की बचाव की व्यवस्था की जाए। घेराबंदी से लेकर नीलगायों को भगाने की प्रक्रिया शुरू हो पाए, तभी किसान बगैर डर के नीलगायों से फसल की सुरक्षा कर सकेंगे।
अनिल कुमार सिंह
रबी फसल के नुकसान और नीलगाय प्रभावित क्षेत्रों का सर्वे कराकर फसलों की सुरक्षा के तत्काल उपाए किये जाएं और रबी फसलों का बचाव किया जाए। पंचायतों को नीलगाय से फसल का नुकसान होने पर सुरक्षा का प्रबंध करने की जिम्मेवारी दी जाये।
रंजन सिंह
कृषि उपकरण की तरह फसलों के बचाव को लेकर उपकरणों पर अनुदान दिया जाए और अधिकतम सुरक्षा की व्यवस्था हो। सुरक्षा के लिए वन बिभाग को जागरूक करने की दिशा में अभियान चलाने को निर्देशित किया जाये।
दिनेश सिंह
खेत में काम करने वाले किसानों, महिलाओं और बच्चों के जख्मी होने पर इलाज की व्यवस्था सरकारी अस्पतालों में करायी जाए और खर्च सरकार वहन करें। नीलगायों से अक्सर ही खेत मे काम करने वाले किसान जख्मी ही जाते हैं।
धीरेन्द्र सिंह उर्फ धीरू सिंह
नीलगायों के आवासन को लेकर क्षेत्र में सुरक्षित जोन बनाया जाए और नीलगायों के रहने लायक फसल की व्यवस्था कर किसानों को सुरक्षित किया जाए। सोन नदी का तटवर्ती इलाका नीलगायों के लिए काफी सुंदर और सुरक्षित साबित होगा।
अंकित राणा
किराये पर खेत लेकर खेती करने वाले किसानों की फसल का नुकसान नीलगायों से होने पर तत्काल मुआवजा दिया जाए और भरण पोषण की व्यवस्था की जाए। किराए पर खेती करने वाले किसानों का अलग पंजीयन हो और खेती-बारी के नुकसान की भरपाई हो सके।
कृष्णा राम
किसान क्लबों का गठन कर फसलों के बचाव के पारंपरिक तरीके और संसाधन उपलब्ध कराये जाएं ताकि किसानों की फसल का नुकसान से बचाव हो सके। किसान क्लबों का पंजीयन कर वन विभाग को जोड़ा जाए, जिससे किसानों को सहूलियत मिल सके।
रवि राम
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