Struggles of Women Workers Low Wages Unsafe Conditions and Lack of Support बोले औरंगाबाद : महिलाओं के कौशल विकास के लिए कार्यशाला का आयोजन हो, Aurangabad Hindi News - Hindustan
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बोले औरंगाबाद : महिलाओं के कौशल विकास के लिए कार्यशाला का आयोजन हो

जिले की महिला श्रमिकों को कम वेतन और असुरक्षित कार्यस्थलों का सामना करना पड़ता है। वे असंगठित क्षेत्र में काम करती हैं, जहां बुनियादी सुविधाओं का अभाव है। आर्थिक संकट और बच्चों की शिक्षा की चिंता उनके...

Newswrap हिन्दुस्तान, औरंगाबादSat, 19 April 2025 11:26 PM
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बोले औरंगाबाद : महिलाओं के कौशल विकास के लिए कार्यशाला का आयोजन हो

जिले की महिला श्रमिकों की जिंदगी संघर्षों से भरी हुई है। इन महिला श्रमिकों का दिन सुबह से लेकर शाम तक बेहद कठिन होता है। उन्हें अत्यधिक मेहनत और कम वेतन पर काम करना पड़ता है। यही महिलाएं हैं जो असंगठित क्षेत्र में काम करती है जहां उन्हें श्रम कानून और सुरक्षा उपायों से पर्याप्त सुरक्षा नहीं मिलती है। महिला मजदूर विभिन्न प्रकार के कामों में लगे रहते हैं। कृषि कार्य, निर्माण कार्य, घरेलू काम या असंगठित क्षेत्र में विभिन्न कार्य करती है। महिला श्रमिक रंजति देवी, सविता देवी, आशा देवी, सुरेखा देवी, शीला देवी, कुसुमारी देवी, राधिका देवी, संगीता देवी, सुनीता देवी सहित अन्य लोगों ने बताया कि हम लोगों को मजदूरी के लिए कई समस्याओं का सामना करना पड़ता है। हमलोगों को कार्य स्थल पर बुनियादी सुविधाएं नहीं मुहैया कराई जाती हैं। कार्यस्थल पर न तो छाया का प्रबंध रहता है और न दवा आदि का इंतजाम किया जाता है। इसके अलावा मजदूरी भी सही समय पर नहीं मिल पाती है। इससे हमलोगों के समक्ष आर्थिक संकट उत्पन्न हो जाता है। उनका कहना है कि महिला श्रमिकों को कई समस्याओं का सामना करना पड़ता है। कम मजदूरी, असुरक्षित कार्यस्थल, सामाजिक सुरक्षा का अभाव और मौसमी रोजगार की समस्या है। जिले के अधिकांश महिला कामगार असंगठित क्षेत्र में काम करते हैं। जहां उन्हें नियमित रोजगार, उचित वेतन और सामाजिक सुरक्षा की गारंटी नहीं होती। कई कार्य स्थल असुरक्षित होते हैं जहां महिला कामगारों को दुर्घटना और बीमारियों का खतरा रहता है। कई महिला कामगार अपने परिवार को छोड़कर दूसरे शहर और राज्यों में पलायन कर रही हैं। कभी-कभी महिला मजदूरों के पास काम नहीं होता है और उन्हें घर पर बैठकर दूसरों से काम ढूंढने को मजबूर होना पड़ता है। महिलाओं को पूरे साल काम नहीं मिलता। बरसात के दिनों में काम की कमी और अधिक हो जाती है। महिला मजदूरों की सबसे बड़ी चिंता अपने बच्चों की पढ़ाई लिखाई की रहती है। वह अपने बच्चों का भविष्य बेहतर बनाने के लिए उन्हें अच्छी शिक्षा दिलाना चाहती हैं लेकिन इसके लिए उनके पास पैसे नहीं होते। प्राइवेट स्कूलों की फीस चुकाने के लिए उनका कमाई का पैसा बहुत कम पड़ता है और उन्हें बच्चों को सरकारी स्कूलों में भेजने के अलावा कोई अन्य रास्ता नहीं मिलता। कई महिलाएं अपने बच्चों को पढ़ाने का सपना तो देखती है लेकिन उनके पास उन सपनों को पूरा करने के संसाधन नहीं होते। दिन भर की मेहनत के बावजूद महिलाएं अपने बच्चों के बारे में सही तरीके से देखभाल नहीं कर पाती। बच्चे जब किशोरावस्था में पहुंचते हैं तो कई बार हुए अपनी मां का हाथ बटाने के लिए काम करने लगते हैं। इन महिलाओं के लिए सबसे बड़ी समस्या यह है कि वह बीमार होने पर भी ठीक से इलाज नहीं करवा पाती। अधिकांश महिला मजदूरों के पास आयुष्मान कार्ड नहीं होते और उन्हें सरकारी अस्पतालों में इलाज करना मुमकिन नहीं हो पाता। कई बार उन्हें स्थानीय झोलाछाप डॉक्टर से दवा लेनी पड़ती है। सरकारी अस्पतालों में इलाज करवाने का खौफ इसलिए भी रहता है क्योंकि काम छूटने का डर होता है। इन महिला मजदूरों को जो बेहद गरीब है सरकारी योजनाओं का लाभ नहीं मिलता। काम करने वाली यह महिलाएं आवास योजना जैसी योजनाओं का लाभ प्राप्त करने में असफल रहती है। हालांकि वह पात्र हैं लेकिन उन्हें आवास योजना का लाभ नहीं मिल पाया है। कई महिला मजदूरों को तो झोपड़ी के नीचे रातें गुजारनी पड़ती है और कुछ ने आधे अधूरे छप्पर डालकर अपना घर बना रखा है। उनका कहना है कि सरकार को हम लोग महिला मजदूरों की प्रतिदिन मजदूरी तय करनी चाहिए। इससे वह अपने परिवार का ठीक से भरण पोषण कर सकें। मजदूरी करने वाली महिलाओं को प्रशासन आयुष्मान भारत कार्ड की सुविधा उपलब्ध कारण जिससे यह महिलाएं बीमार होने पर अस्पतालों में जाकर अपनी बीमारी का ठीक से इलाज करा सकें।। इलाज ठीक से होगा तो उन्हें साहूकारों से कर्ज लेना नहीं पड़ेगा। इससे वह कर्ज के जाल में फंसने से बच जाएंगी। उनका कहना है कि सरकारी स्कूल के शिक्षकों को महिला मजदूरों के बच्चों का स्कूल में नामांकन करने को लेकर उनके घर वालों को प्रेरित करना होगा। इससे मजदूरी करने वाली महिलाएं बच्चों का नामांकन स्कूल में कराकर उनको पढ़ने को नियमित का कल भेज सके। मजदूरी करने वाली महिलाओं का सर्वे कराकर उनका आवास योजना का लाभ दिलाया जाए। आवास बनने पर महिलाएं दिन भर मेहनत करने के बाद शाम को खाना खाकर परिजनों के साथ चैन की नींद हो सकेगी। आवास बने से उनके परिवार को सुरक्षा मिलेगी और उनके जीवन शैली में भी बदलाव होगा। महिलाओं को नियमित काम करने के अवसर उपलब्ध कराने होंगे।

गांव में ही कुटीर वाला लघु उद्योगों की हो स्थापना

महिला मजदूरों का कहना है कि गांव में काम नहीं है। सरकार को इसके लिए गांव में कुटीर और लघु उद्योग की स्थापना करनी चाहिए ताकि महिला मजदूरों को उनके घर के पास ही काम मिल सके। ऐसा करने से हम लोगों को दो तरह का लाभ होगा। एक तो रोज यातायात पर खर्च होने वाले 50 से 100 रुपए के साथ ही समय की बचत होगी। इसके अलावा अतिरिक्त आमदनी कर पाएंगे। उनका कहना यह भी है कि जो लोग काम करने के लिए बुला कर ले जाते हैं, वे सुरक्षा उपकरणों का प्रबंध नहीं करते। ऐसे में कई बार जख्मी या चोटिल हो जाते हैं। काम कराने वाले प्राथमिक उपचार का भी प्रबंध नहीं रखते हैं, खुद के पैसे से इलाज कराना पड़ता है। इसके अलावा कई महिला मजदूरों ने कहा कि संगठित तौर पर काम नहीं करने के कारण महीने में 10 से 15 दिन ही काम मिल पाता है। इसमें भी जो पैसे मिलते हैं, उनका एक तिहाई हिस्सा रोज शहर में काम खोजने आने में वाहनों के किराए में खर्च हो जाता है। अनीता देवी, मालती देवी, तिल कुमारी देवी आदि ने कहा कि महिलाओं को प्राथमिकता के आधार पर काम उपलब्ध कराना चाहिए। जीविका से जोड़कर महिलाओं को अन्य कार्यों से भी जोड़ा जाना चाहिए। साथ ही कार्य स्थल पर महिलाओं से जुड़ी अन्य सुविधाओं को भी बहाल किया जाना चाहिए। इसके लिए जिला स्तरीय पदाधिकारी को साइट पर भ्रमण करना चाहिए। महिला मजदूरों ने बताया कि सरकारी योजनाओं का पूरा लाभ नहीं मिल पाता है। पेंशन, बीमा, दुर्घटना, सुरक्षा और अन्य योजनाएं केवल कागजों पर सिमट कर रह गई है। महिला मजदूरों को योजनाओं की जानकारी भी नहीं होती और प्रशासन द्वारा उन तक पहुंचाने की पहल नहीं की जाती है। इसके लिए जरूरत हो तो शिविर लगाना चाहिए। संवाद के दौरान महिला श्रमिकों ने बताया कि यदि सरकार ग्रामीण क्षेत्रों में कृषि आधारित उद्योग स्थापित करें तो मजदूर को कम के साथ अच्छे पैसे मिल सकेंगे। इसके साथ ही महिला मजदूरों का पलायन भी रुकेगा। पैसे कमाने के लिए हम लोग दूसरे प्रदेशों की ओर रुख करते हैं जहां असुरक्षित माहौल में काम करते-करते उनके स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ता है।

सुझाव

1. महिला मजदूरों के लिए नियमित तौर पर काम दिलाने के लिए सरकारी स्तर पर रोजगार के प्रबंध होने चाहिए।

2. महिला मजदूरों के बीमा के लिए सरकार के स्तर पर व्यवस्था हो। 50-50 प्रतिशत हिस्सेदारी पर प्रीमियम भरने की सुविधा मिले।

3. कुशल महिला मजदूरों को कुशल बनने के लिए समय-समय पर उनके लिए प्रशिक्षण शिविर का आयोजन किया जाना चाहिए।

4. महिला मजदूरों को सरकारी योजनाओं की जानकारी देने के लिए कई स्तरों पर जागरूकता कार्यक्रम चलाया जाना चाहिए।

5. महिला मजदूरों के बच्चों की शिक्षा के लिए विशेष्य योजनाएं लागू की जाए और श्रमिकों को पेंशन बीमा सुरक्षा का लाभ दिया जाए।

शिकायतें

1. सरकारी योजनाओं का लाभ मजदूर तक नहीं पहुंच रहा है।

2. बढ़ती महंगाई में मजदूरों को न्यूनतम मजदूरी से भी कम भुगतान किया जाता है।

3. मजदूरों के लिए सरकारी अस्पतालों में पर्याप्त चिकित्सा सुविधा नहीं है। इससे उन्हें इलाज में कठिनाई होती है।

4. गांव से औरंगाबाद शहर आने में मजदूरों को अधिक खर्च उठाना पड़ता है।

5. सरकारी योजनाओं की जानकारी नहीं होने से रोजगार की संभावना कम होती जा रही है।

हमारी भी सुनिए

सुना है कि श्रम कार्ड धारकों को सरकार लोन भी देती है। ई-श्रम कार्ड नहीं बनाया गया है। इससे उन्हें परेशानी होती है।

समफूला

सरकार को पलायन को रोकने के लिए कदम उठाना चाहिए। घर में ही रोजगार देना चाहिए। इससे महिलाओं को सहूलियत होगी।

रजन्ति देवी

महिला श्रमिकों के लिए कार्य स्थल पर सुरक्षा उपकरण और सरकारी अस्पतालों में चिकित्साएं सुविधा मिले।

सविता देवी

विभाग या प्रशासन को निशुल्क स्वास्थ्य जांच शिविर का आयोजन समय-समय पर करना चाहिए। महिलाओं को जानकारी नहीं मिल पाती है।

लक्ष्मीनिया देवी

सरकार भवन निर्माण कामगारों का उचित मानदेय निर्धारित करें। सरकारी कार्य में उन्हें काम नहीं मिल पाता है।

आशा देवी

महिला मजदूरों को न्यूनतम मजदूरी से भी कम भुगतान किया जाता है जिससे जीवन यापन कठिन हो गया है।

सुरेखा देवी

बच्चों के शिक्षा के लिए आर्थिक मदद बेटी की शादी में सहायता मिलती तो परिवार को लाभ पहुंचता। उनकी समस्या सुनने वाला कोई है।

शीला देवी

गांव से शहर आने में मजदूरों को अधिक खर्च उठाना पड़ता है। मजदूरी का बड़ा हिस्सा सफर में ही चला जाता है।

सविता देवी

महिला मजदूरों के बच्चों की शिक्षा के लिए विशेष योजनाएं लागू की जाए और पेंशन बीमा का लाभ दिया जाए।

कुसुमारी देवी

सरकारी योजनाओं का लाभ नहीं मिल पाता है। पेंशन बीमा या श्रम कार्ड सहित योजनाएं केवल कागजों पर सिमट कर रह गई है।

राधिका देवी

कठिन परिश्रम के बावजूद अपेक्षित मजदूरी या नियमित काम नहीं मिलता। बहुत परेशानी होती है।

संगीता देवी

किसी भी कार्य स्थल पर ना तो दवा की व्यवस्था होती है और ना हमारे साथ आए दूध मुंहे बच्चों को देखभाल का कोई प्रबंध किया जाता है। खुले में ही बच्चों को रखकर काम करना मजबूरी है।

सुनीता देवी

महिला मजदूरों को जीविका से जोड़कर काम दिया जाए। महिलाओं को प्राथमिकता के आधार पर काम उपलब्ध कराना चाहिए।

देवंती देवी

सरकार गरीबों के कल्याण को योजनाएं चल रही है। उनका लाभ हम जैसे गरीबों को नहीं मिलता। अपात्र सुविधाओं का लाभ उठा रहे हैं।

सोना देवी

आयुष्मान कार्ड बनवाने के वायदे कई लोगों ने किया लेकिन कार्ड नहीं बना। गरीबों की कोई नहीं सुनता। गरीबों को तो मेहनत करके ही पेट भरना पड़ता है।

अनीता देवी

जहां-तहां मजदूरी कर किसी तरह परिवार का भरण पोषण कर लेते हैं लेकिन बीमारी का इलाज नहीं कर पाते हैं। प्रशासन मजदूरी करने वाली महिलाओं को आयुष्मान कार्ड और आवास की सुविधा उपलब्ध कराए।

सतबरवा देवी

बीमा नहीं होने से कभी काम के दौरान दुर्घटना का शिकार होने पर इलाज से लेकर अन्य खर्च का प्रबंध खुद वहन करना पड़ता है। सरकार की ओर से भी सामाजिक सुरक्षा योजना के तहत कोई व्यवस्था नहीं की गई है।

मालती देवी

घर के आस-पास कोई उद्योग धंधा नहीं होने से आसानी से काम नहीं मिल पाता है। काम की तलाश में लंबी दूरी तय करना पड़ता है फिर भी निश्चित नहीं रहता।

सविता देवी

सरकार की ओर से चलाई जाने वाली योजनाओं की जानकारी दी जानी चाहिए। मजदूरों को देनी चाहिए साथ ही उनसे आवेदन लेकर लाभ दिलाने की भी पहल होनी चाहिए।

मालती देवी

मनरेगा में अब काफी कम मजदूरी मिल रही है। काम भी घर से काफी दूर दिया जाता है। एक दिन की मजदूरी 245 रुपए है। इसमें से साइट पर आने-जाने में ही एक चौथाई राशि चली जाती है। ऐसे में घर परिवार चलाने में परेशानी होती है।

तिल कुमारी देवी

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