सतघरा गांव में सड़क नहीं बनने से ग्रामीणों को हो रही परेशानी
बोले बांकाबोले बांका प्रस्तुति- विपिन कुमार सिंह बारिश के दिनों में कच्ची सड़क पर चलना हो जाता है मुश्किल दो पंचायतों में बंटा है सतघरा गांव

अमरपुर (बांका), निज संवाददाता। अमरपुर प्रखंड का सतघरा गांव जहां एक सौ से ज्यादा घर हैं तथा यहां की आबादी भी ढाई हजार से ज्यादा है। पहले इस गांव के लोग एक साथ ही रहते थे लेकिन पंचायती राज व्यवस्था शुरू होने के बाद राजनीतिक कारणों से इस गांव को दो भागों में बांट दिया गया। जिससे सतघरा गांव का एक टोला भीखनपुर पंचायत के वार्ड नंबर एक तथा दूसरा टोला सुल्तानपुर पंचायत के वार्ड नंबर 14 में चला गया। इस गांव के दो भागों में बंटने के बाद इस गांव के लोग सिर्फ वोट देने का काम करते रहे। इसमें एक टोले का स्कूल एवं मतदान केंद्र गांव से करीब एक किलोमीटर दूर गांव से बाहर है तो सुल्तानपुर पंचायत के सतघरा गांव के बच्चे पढ़ाई के लिए बाइपास के किनारे सुरिहारी स्कूल में पढ़ने आते हैं तो वयस्क लोग वोट करने भट्ठीचक गांव जाते हैं। यानि कि पंचायतों का परिसीमन इस प्रकार किया गया है कि एक ही टोले के लोग दो भागों में बंट कर रह गए हैं। ऐसे में पंचायत प्रतिनिधि हों या विधायक अथवा सांसद किसी ने भी इस गांव के विकास पर ध्यान नहीं दिया। इसका नतीजा यह है कि यहां ना तो सड़क की सुविधा है ना ही पेयजल की। स्वास्थ्य सुविधा भी नगण्य है। गांव के लोगों ने कहा कि ऐसा लगता है कि देश विकास की ओर भले ही अग्रसर हो गया हो लेकिन उनके गांव में ऐसा कुछ भी नजर नहीं आता है। ग्रामीणों ने बताया कि वर्ष 2009 में इस गांव में मोरम डाल कर सड़क बनाने का काम शुरू किया गया था लेकिन कुछ दूर काम कर इसे बंद कर दिया गया। जिससे गांव तक सड़क पर मोरम नहीं डाला जा सका तथा गांव की सड़क मिट्टी की ही रह गई। जबकि गांव के मुहाने से दूसरे छोर तक की दूरी करीब एक डेढ़ किलोमीटर है। इस सड़क को मुख्यमंत्री ग्राम सड़क संपर्क योजना से बनाया जा सकता है। गांव के बुजुर्गों ने बताया कि उन लोगों ने गांव की सड़क कैसे बनाई जाती है यह आज तक नहीं देखा है। मिट्टी की सड़क होने का सबसे अधिक खामियाजा बारिश के दिनों में भुगतना पड़ता है। हल्की बारिश होते ही पूरे गांव की सड़क कीचड़मय हो जाती है। बारिश होने के बाद इस गांव की ओर से कोई भी व्यक्ति आने-जाने से परहेज करते हैं। जबकि गांव के लोगों का तो जीना मुहाल हो जाता है। घर से निकलते ही कीचड़ उनके पांव को चूमती है। बारिश के समय में बाइक या अन्य वाहन तो दूर लोग पांव में चप्पल जूते तक पहन कर बाहर नहीं निकल सकते हैं। बारिश का मौसम समाप्त होने पर लोग राहत की सांस तो लेते हैं। लेकिन सड़क पर बने बड़े-बड़े गड्ढे में चलना मुश्किल हो जाता है। ग्रामीणों ने बताया कि किसी के बीमार पड़ने पर उन लोगों को एंबुलेंस की सहायता भी नहीं मिल पाती है। एंबुलेंस गांव के बाहर बाइपास के किनारे तक ही आता है, किसी तरह मरीज को बाइपास तक ले जाना पड़ता है। ग्रामीणों ने बताया कि गांव में सड़क नहीं होने से उनके गांव को पिछड़ा गांव कह कर रिश्तेदार भी यहां आने से कतराते हैं। यहां तक कि बच्चे इस गड्ढे वाली सड़क से ही प्रतिदिन स्कूल जाते हैं जिससे उनके गिर कर चोटिल होने की संभावना बनी रहती है। ग्रामीणों ने बताया कि गांव में पेयजल की सुविधा दोनों पंचायतों में से किसी ने भी नहीं की है। भीखनपुर पंचायत के हिस्से में एक चापाकल है लेकिन उसका पानी सड़क पर निकलने के कारण सूखे मौसम में भी सड़क पर कीचड़ जम जाता है इस वजह से उस चापाकल को बंद ही रखा जाता है। जबकि सुल्तानपुर पंचायत के हिस्से के सतघरा में एक चापाकल है जो पिछले कई दिनों से खराब पड़ा हुआ है। इस पंचायत के लोगों ने कहा कि सभी गांव टोले में सोलर लाइट लगाई गई है लेकिन उनके टोले को इस सुविधा से भी वंचित रखा गया है। दोनों टोलों के लोगों ने बताया कि इस गांव में विधायक या सांसद की बात तो दूर दोनों पंचायतों के मुखिया भी उनका हाल जानने कभी नहीं आते हैं। वो लोग अपना दुखड़ा सुनाएं तो किसे। गांव में नाले की भी समस्या है। यहां 2021-22 में जिला पार्षद द्वारा ढक्कनदार नाले का निर्माण कराया गया था जिसमें अधिकांश जगहों पर ढक्कन देखने को नहीं मिला। नाले के पानी की निकासी की समस्या के कारण नाले में गंदा पानी जमा रहता है। इस गांव में दो पंचायतों के दो-दो वार्ड होने के बावजूद यहां नल-जल योजना का लाभ नहीं मिल रहा है। ग्रामीणों ने कहा कि राज्य सरकार हर घर को नल का जल देने का दावा करती है तो इस गांव के लोग क्या राज्य से बाहर हैं। यदि नहीं तो पंचायत प्रतिनिधियों की इस मनमानी पर अधिकारी अंकुश क्यों नहीं लगा रहे हैं। सतघरा गांव को जिस तरह से उपेक्षित कर दिया गया है उससे ऐसा लगता है कि पंचायत प्रतिनिधि के साथ साथ अधिकारी भी इस गांव का विकास नहीं चाहते हैं। ग्रामीणों ने बताया कि क्षेत्र के पूर्व विधायक स्व जनार्दन मांझी कभी-कभी उनके गांव आते थे, उन्होंने गांव में मूलभूत सुविधाएं उपलब्ध कराने का आश्वासन दिया था। लेकिन उनके जाने के बाद किसी की नजर इस गांव पर नहीं पड़ी जिससे यह गांव पूरी तरह उपेक्षित है। गांव के कई लोग तो सड़क एवं पानी की सुविधा की आस लिए गुजर गए, आज की पीढ़ी भी अधिकारियों एवं प्रतिनिधियों के उपेक्षा की शिकार है, पता नहीं आने वाली पीढ़ी भी इस गांव में पक्की सड़क, पानी आदि की सुविधाएं देख सकेंगी या नहीं। बीडीओ प्रतीक राज ने कहा कि प्रत्येक गांव में विकास की योजनाएं चल रही हैं, सतघरा में भी कई विकास योजनाएं चलीं हैं। इसके बावजूद वहां कोई काम नहीं हो सका है तो मैं खुद इसकी जांच कर विकास योजनाएं चलाने का प्रयास करूंगा।
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