बोले कटिहार : युवा कमाने गये परदेस, पैसे के लिए बैंकों में लगती है भीड़
बारसोई अनुमंडल वर्षों से विकास की मुख्यधारा से कट चुका है। यहां की बड़ी आबादी रोजगार की तलाश में पलायन कर चुकी है। जो लोग यहां बचे हैं, वे बैंकिंग समस्याओं से परेशान हैं। केवाइसी की प्रक्रिया धीमी है,...
जिले का बारसोई अनुमंडल वर्षों से विकास की मुख्यधारा से कट चुका है। सड़क, बिजली, शिक्षा, स्वास्थ्य और कृषि जैसी बुनियादी सुविधाओं की भारी कमी के चलते यहां की बड़ी आबादी रोजगार की तलाश में अन्य राज्यों की ओर पलायन कर चुकी है। जो लोग यहीं बसे हुए हैं, वे अब केवाइसी जैसी बैंकिंग समस्या से त्रस्त हैं। सबका पैसा बैंक खाते में ही आता है। छह महीने से बैंक शाखाओं में लंबी कतारें, लिंक फेल और स्टाफ की संवेदनहीनता ने आम जनजीवन को बुरी तरह प्रभावित किया है। प्रशासनिक उदासीनता और तकनीकी लापरवाही ने जनता को निराशा की स्थिति में ला खड़ा किया है। संवाद के दौरान बारसोई के लोगों ने अपनी परेशानी बताई।
02 विधानसभा क्षेत्र से युक्त है बारसोई अनुमंडल
30 प्रतिशत आबादी ने दूसरे राज्यों में किया पलायन
40 केवाईसी का प्रतिदिन औसतन होता है निष्पादन
कटिहार जिले का बारसोई अनुमंडल जैसे विकास से छूट गया इलाका बन गया है। यहां की जनता न सड़क ठीक से देख पाई, न बिजली की स्थायी सुविधा मिली, न शिक्षा-स्वास्थ्य में सुधार हुआ। अब बैंकिंग अव्यवस्था ने भी जीवन दूभर कर दिया है। महीनों से लोग अपने खातों का केवाइसी कराने के लिए सुबह से शाम तक लाइन में खड़े रहते हैं, पर हर दिन मायूसी लेकर लौटते हैं। लिंक फेल, स्टाफ का रूखा व्यवहार और तकनीकी अराजकता आम हो गई है। यह संकट सिर्फ बैंक तक सीमित नहीं, बल्कि सिस्टम की असफलता का प्रतीक बन गया है।
बुनियादी सुविधाओं का है अभाव :
दो विधानसभा क्षेत्रों और चार प्रखंडों से मिलकर बना बारसोई अनुमंडल वर्षों से बुनियादी सुविधाओं के अभाव में जूझ रहा है। सड़क, बिजली, शिक्षा, कृषि और उद्योग जैसे जरूरी क्षेत्रों की अनदेखी के कारण यहां की बड़ी आबादी रोजगार के लिए अन्य राज्यों में पलायन कर चुकी है। लेकिन अब जो लोग यहीं रह गए हैं, उनके लिए भी जीवन आसान नहीं है। इन दिनों यहां की जनता बैंकिंग व्यवस्था की गंभीर लापरवाही का शिकार हो रही है। केवाइसी को लेकर उत्पन्न संकट ने गरीबों, किसानों, मजदूरों और बुजुर्गों की कमर तोड़ दी है।
सुबह 7:00 से ही लग जाती है लंबी कतार :
हर दिन सुबह 7 बजे से ही लोग बैंक शाखाओं के सामने लंबी कतारों में खड़े नजर आते हैं, सिर्फ इस उम्मीद में कि उनका केवाइसी हो जाएगा और वे अपने खाते से पैसे निकाल सकेंगे। लेकिन रोजाना सैकड़ों की भीड़ में महज 30 से 40 लोगों का ही केवाइसी हो पाता है। बाकी लोग शाम तक इंतजार के बाद मायूस होकर लौटने को मजबूर हो जाते हैं। यह सिलसिला पिछले छह महीने से लगातार जारी है।
तकनीकी खामियां होती हैं उजागर:
तकनीकी खामियां जैसे बार-बार लिंक फेल होना, सर्वर डाउन रहना आम हो चुकी है। इन वजहों से कामकाज घंटों ठप रहता है, और लोगों को कई दिनों तक लगातार आना पड़ता है। दुखद पहलू यह है कि बैंक शाखा प्रबंधकों का व्यवहार भी असंवेदनशील बना हुआ है। कतार में खड़े बुजुर्ग, महिलाएं और दिव्यांगजन तक सम्मान और सहानुभूति से वंचित हैं। लोगों का कहना है कि अधिकारी ठीक से बात तक नहीं करते। एक स्थानीय किसान विनोद यादव बताते हैं कि तीन दिन से आ रहा हूं। पैसा नहीं निकाल पा रहा। घर में दवा के पैसे भी नहीं हैं। बैंक वाले हर दिन नया बहाना दे देते हैं। इसी तरह फूलो देवी, जो करीब 60 किलोमीटर दूर से आई थीं, कहती हैं, सुनाई नहीं देता, समझ भी नहीं आता बैंक में क्या कह रहे हैं। कोई मदद नहीं करता। जब एक तरफ क्षेत्र विकास की बुनियादी सुविधाओं से कोसों दूर है, वहीं दूसरी ओर बैंकिंग संकट ने आम लोगों की मुश्किलों को कई गुना बढ़ा दिया है। पलायन, बेरोजगारी, और अब बैंकिंग अव्यवस्था, बारसोई की जनता तिहरी मार झेल रही है। अगर प्रशासन और बैंक प्रबंधन समय रहते गंभीरता से कार्रवाई नहीं करता, तो यह संकट बड़ा जनाक्रोश बन सकता है।
शिकायत
1. लिंक फेल और तकनीकी खराबी के कारण घंटों लाइन में खड़े रहने के बावजूद केवाइसी नहीं हो पाता।
2. बैंक कर्मचारियों का व्यवहार असंवेदनशील है, लाभार्थियों से ठीक से बात नहीं की जाती।
3. केवाइसी प्रक्रिया धीमी है। प्रतिदिन केवल 30-40 लाभार्थियों का ही काम हो पाता है।
4. बैंक में पर्याप्त स्टाफ की कमी है, जिससे कार्यभार बढ़ता है और जनता को परेशानी होती है।
5. दूरदराज से आने वाले लोगों को दिनभर इंतजार करने के बाद भी बिना काम के लौटना पड़ता है।
सुझाव
1. केवाइसी शिविरों का आयोजन पंचायत स्तर पर किया जाए ताकि भीड़ बंटे और प्रक्रिया तेज हो।
2. बैंक में अतिरिक्त स्टाफ की अस्थायी नियुक्ति की जाए, विशेषकर केवाइसी कार्य के लिए।
3. ऑनलाइन स्लॉट बुकिंग की सुविधा मिले, जिससे लोग तय समय पर आकर अपना काम करा सकें।
4. बुजुर्गों और दिव्यांगों के लिए अलग काउंटर की व्यवस्था की जाए।
5. बैंक कर्मचारियों को व्यवहार सुधार प्रशिक्षण दिया जाए ताकि वे संवेदनशील और सहयोगी बने।
इनकी भी सुनें
मैं तीन दिन से बैंक जा रहा हूं, लेकिन केवाइसी नहीं हो पा रहा। कोई सुनने वाला नहीं है। घर में बीमार मां के लिए पैसे चाहिए, पर बैंक वाले हर बार टाल देते हैं। अब समझ नहीं आ रहा क्या करें।
-हसन रजा
बिजली नहीं रहती, सड़कें टूटी हैं और अब बैंक में घंटों खड़े रहकर भी केवाइसी नहीं हो रहा। हम औरतें घर छोड़कर आते हैं और लौटते हैं खाली हाथ। बहुत परेशान हैं हम लोग।
-रीना दास
मैं खेती करता हूं। न तो सिंचाई का साधन है, न खाद समय पर मिलता है। अब बैंक का यह झंझट भी आ गया। केवाइसी नहीं हुआ तो पैसे नहीं निकलते। हर तरफ बेबसी है।
-दीपक राय
बैंक में सुबह से लाइन में लगते हैं, लेकिन दोपहर तक लिंक फेल हो जाता है। केवाइसी नहीं होने से राशन भी नहीं ले पा रहे। सरकार को ध्यान देना चाहिए।
-मंगल कुमार राय
कब तक सब्र करें? न पढ़ाई सही से हो रही है, न इलाज का पैसा निकाल पा रहे हैं। केवाइसी के नाम पर हम जैसे गरीबों को रुलाया जा रहा है।
-शाह अजमतुल्लाह
मैं रोज देखता हूं, महिलाएं-बुजुर्ग सब लाइन में खड़े हैं। लेकिन बैंक के लोग बदतमीजी से बात करते हैं। कोई जवाबदेही नहीं है। यह अन्याय है।
-अजय दास
बैंक में केवाइसी के लिए जा रहा हूं तो बोलते हैं लिंक नहीं है। दूसरी जगह जाओ तो कहते हैं कि भीड़ बहुत है। क्या गरीब आदमी का कोई हक नहीं?
-मो. इब्राहिम
हम युवा हैं, लेकिन बेरोजगार हैं। गांव में कोई उद्योग नहीं, रोजगार नहीं। बैंक में भी इतनी परेशानी है कि मन टूटने लगता है।
-धोनी कुमार दास
शिक्षा की हालत खराब है। स्कूल में शिक्षक नहीं हैं। अब बैंक की परेशानी ने बच्चों के लिए किताबें खरीदना भी मुश्किल कर दिया है।
-नदीम हैदर
हम पानी के लिए मीलों चलकर जाते हैं। सड़कें खराब हैं। बैंक में तो बस भगवान भरोसे सब कुछ है। अब तो सोचते हैं गांव छोड़कर कहीं और बस जाएं।
-सन मोहम्मद
बुजुर्ग हूं, चलने में दिक्कत होती है। फिर भी बैंक जाना पड़ता है। लेकिन वहां कोई मदद नहीं करता। घंटों इंतजार कर लौटना पड़ता है।
-शमीमा खातून
पेयजल की हालत बदतर है। हैंडपंप का पानी गंदा आता है। ऊपर से केवाइसी नहीं हो रहा तो टंकी से पानी भी नहीं खरीद सकते। क्या करें?
-नूर मोहम्मद
शासन-प्रशासन सब चुप है। जनता परेशानी में है, लेकिन कोई सुनने वाला नहीं। यह लोकतंत्र नहीं, लाचारगी की व्यवस्था है।
-हामिदुल
मैं वार्ड सदस्य हूं, लेकिन जब खुद मेरे परिवार का केवाइसी नहीं हो पा रहा तो आम जनता का क्या हाल होगा! जल्द कार्रवाई होनी चाहिए।
-राजीव कुमार दास
हम महिलाएं घर से दूर आकर बैंक में घंटों लाइन में खड़े रहते हैं। कुछ भी तय नहीं है। बच्चों को भी छोड़ना पड़ता है। यह व्यवस्था नहीं, अन्याय है।
-रेजिया खात
शहर की तरह गांव में सुविधाएं नहीं हैं। और जो हैं, वो भी ठीक से नहीं चलती। बैंक की ये हालत देख रोना आता है।
-मालेका बेगम
मस्जिद से एलान होता है कि बैंक आओ केवाइसी कराओ, लेकिन जब जाते हैं तो लिंक फेल होता है। लोग थक हार गए हैं।
-हाफिज एहसान अली
मैंने दो बार बैंक जाकर कोशिश की। लाइन में मारा-मारी होती है। कोई व्यवस्था नहीं। लगता है जैसे हम लोग इंसान नहीं हैं।
-इकरामुल हक
बोले जिम्मेदार
प्रखंड प्रशासन को केवाइसी से संबंधित समस्या की जानकारी मिली है। हमने बैंकों से बात कर जल्द समाधान के निर्देश दिए हैं। भीड़ को नियंत्रित करने और प्रक्रिया को तेज करने के लिए पंचायत स्तर पर केवाइसी कैंप लगाने की योजना बनाई जा रही है। साथ ही बैंकों को अतिरिक्त स्टाफ की मांग जिला स्तर पर भेजी गई है। लिंक या तकनीकी खामी की जानकारी भी उच्चाधिकारियों को दी गई है। हमारी प्राथमिकता है कि किसी भी लाभार्थी को अपने पैसे या सेवाओं से वंचित न रहना पड़े। समस्या का शीघ्र समाधान कराया जाएगा।
-हरिओम शरण, प्रखंड विकास पदाधिकारी, बारसोई
बोले कटिहार फॉलोअप
नहीं बदली कटिहार की मलिन बस्तियों की सूरत
कटिहार, हिन्दुस्तान प्रतिनिधि। जिले की फलका और कुरसेला की मलिन बस्तियों में बुनियादी सुविधाओं की घोर कमी पर 20 अप्रैल को हिन्दुस्तान में प्रकाशित खबर के बाद भी स्थिति में कोई खास सुधार नहीं हुआ है। प्रशासनिक टीमों ने मौके पर आकर निरीक्षण जरूर किया, लेकिन अब तक ठोस पहल नजर नहीं आई है। फलका के दलित टोला और कुरसेला की बस्ती में रहने वाले लोगों का कहना है कि अधिकारियों ने आश्वासन दिया था कि शौचालय, पानी और आवास की व्यवस्था जल्द की जाएगी, लेकिन हफ्ते भर से ज्यादा बीतने के बाद भी काम शुरू नहीं हुआ है। राशन कार्ड और आधार जैसे ज़रूरी दस्तावेजों के लिए अब भी लोगों को दलालों के चक्कर काटने पड़ रहे हैं। महिलाओं को खुले में नहाने-शौच के लिए मजबूर होना पड़ता है। बारिश की एक हल्की फुहार में ही गलियां कीचड़ में तब्दील हो जाती हैं। हर घर नल जल और स्वच्छ भारत अभियान के बोर्ड लगे हैं, लेकिन ज़मीनी सच्चाई इसके उलट है। स्थानीय सामाजिक कार्यकर्ताओं ने प्रशासन से मांग की है कि इन बस्तियों को विशेष पुनर्वास योजना के तहत प्राथमिकता दी जाए। जब तक इन परिवारों को मूलभूत सुविधाएं नहीं मिलतीं, तब तक विकास के दावे अधूरे ही रहेंगे।
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