Tea Sellers Struggle with Rising Costs and Competition from Branded Stores बोले जमुई: दूध मिले सस्ता, कुल्हड़ की हो उपलब्धता तो रोजगार होगा आसान, Bhagalpur Hindi News - Hindustan
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बोले जमुई: दूध मिले सस्ता, कुल्हड़ की हो उपलब्धता तो रोजगार होगा आसान

चाय विक्रेताओं को कुल्हड़ और चायपत्ती की बढ़ती कीमतों का सामना करना पड़ रहा है, जिससे उनकी आय में कमी आई है। आधुनिक ब्रांडेड चाय दुकानों से प्रतिस्पर्धा और स्थानीय कुम्हारों की घटती संख्या ने उनकी...

Newswrap हिन्दुस्तान, भागलपुरMon, 5 May 2025 01:21 AM
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बोले जमुई: दूध मिले सस्ता, कुल्हड़ की हो उपलब्धता तो रोजगार होगा आसान

चाय विक्रेताओं की परेशानी इंट्रो : शहर हो या गांव सुबह की शुरुआत चाय के बिना अधूरी लगती है। स्टेशन के बाहर, दफ्तर के पास, मोहल्ले की नुक्कड़ पर या किसी चौक-चौराहे पर लगे छोटे-छोटे चाय के ठेले न जाने कितनों की थकान मिटाते हैं। लेकिन जो चाय दुकानदार दूसरों की थकान दूर करते हैं, आज उनकी अपनी जिंदगी कठिनाइयों की भट्टी में तप रही है। कुल्हड़ की किल्लत हो, दूध-चायपत्ती की बढ़ती कीमतें या अस्थायी दुकानों का उजड़ना हर दिन उनके लिए एक नई चुनौती लेकर आता है। वहीं आज के समय में आधुनिक ब्रांडेड चाय दुकानों से प्रतस्पिर्धा की तलवार अलग लटक रही है।

प्रस्तुति : उपेंद्र कुमार यादव जमुई। कुल्हड़ और चायपत्ती की बढ़ती कीमतों से चाय दुकानदार परेशान हैं, जिससे चाय दुकानदारों की आय में कमी हो गई है। कुल्हड़ और चायपत्ती की कीमतें बढ़ने से चाय की लागत बढ़ गई है, जिससे दुकानदारों को चाय बेचने में मुश्किल हो रही है। पिछले कुछ वर्षों में कुल्हड़ का चलन तेजी से बड़ा है। पर्यावरण संरक्षण को लेकर बढ़ती जागरूकता और प्लास्टिक के उपयोग पर रोक ने चाय दुकानदारों को कुल्हड़ की ओर मोड़ा। ग्राहक भी मिट्टी की सोंधी महक वाले कुल्हड़ में चाय पीना अधिक पसंद करते हैं। लेकिन अब यही कुल्हड़ दुकानदारों की परेशानी का कारण बन गया है। कई छोटे दुकानदार बताते हैं कि स्थानीय स्तर पर कुल्हड़ बनाने वाले कुम्हार की संख्या घट गई है। पहले जहां गांव और कस्बों में ही कुल्हड़ प्रयाप्त रूप में मिल जाता था। पहले कुल्हड़ 25 से 50 पैसे में मिला करता था अब लगभग दो से तीन रुपया प्रति कुल्हड़ पड़ जाता है। वो भी प्रयाप्त मात्रा में नहीं मिला पति है। अब कुल्हड़ बाहर से मंगवाना पड़ा रहा है जिसमे यातायात खर्च को जोड़ने पर एक कुल्हड़ 3 से 5 रुपए तक पड़ती है। और चाय जो सामान्य 5 से 10रुपये प्रति कप की चाय बेचने वालों के लिए काफी महंगा सौदा है। कई बार कुल्हड़ टूटकर आते हैं जिसमें नुकसान और बढ़ जाता है। वहीं कुल्हड़ बनाने और चायपत्ती को संसाधित करने की लागत भी बढ़ी है। चाय की लागत बढ़ने से चाय दुकामदारो आमद में कमी हुई। सरकारी स्तर पर यदि स्थानीय कुम्हारों को प्रोत्साहन और प्रशिक्षण दिया जाए तो न सिर्फ कुल्हड़ की कमी दूर होगी बल्कि पारंपरिक रोजगार को भी सहारा मिलेगा। साथ ही सरकार को चाहिए कि वह कच्चे माल की कीमतों को नियंत्रित करने के लिए कदम उठाए और वह परिवहन लागत को कम करने के लिए कदम उठाए। चाय सामग्री हो गया महंगा : चाय की सबसे आवश्यक सामग्री दूध है लेकिन दूध के दामों में हुई बेतहाशा वृद्धि ने छोटे दुकानदारों को परेशान कर रखा है लोकल दूध अब पहले जैसा सहज उपलब्ध नहीं है। ग्रामीण क्षेत्र से आने वाले दूध की आपूर्ति घट गई है। और शहरों में सुधा, पारस, अमूल, मेघा जैसे ब्रांड दूध के सहारे ही काम चलाना पड़ रहा है। जिसकी कीमत 50 से 70 रुपये प्रति लीटर तक पहुंच चुकी है। दुकानदारों का कहना है कि अगर 5 रुपये में एक कप चाय बेचनी है तो उसमें इस्तेमाल होने वाले दूध, चायपत्ती, चीनी, कुल्हड़ का योग लागत की बराबर बैठती है ऐसे में मुनाफा तो दूर लागत निकालना भी मुश्किल हो जाता है। कुछ दुकानदार दूध में पानी मिलाकर खर्च बचाते हैं लेकिन इससे स्वाद और ग्राहकों की संख्या पर असर पड़ता है। सरकार अगर खुदरा चाय विक्त्रेताओं के लिए ठोक दूध वितरण की कोई योजना ले तो स्थिति थोड़ी सुधर सकती है। अच्छी क्वालिटी की नहीं मिलती चपाती : महंगाई की मार चपाती पर भी पड़ी है पिछले एक साल में चाय पत्ती की कीमत में लगभग 30 से 40 प्रतिशत तक बढ़ोतरी हुई है अच्छी क्वालिटी की चाय पत्ती अब 300 से 400 रुपये प्रति किलो मिलती है। इससे दुकानदारों की परेशानी और बढ़ गई है। सस्ती चाय पत्तियों में रंग तो आता है लेकिन स्वाद और सुगंध गायब हो मिलती है। ग्राहक भी इसे तुरंत पकड़ लेते है उजड़ती बस्तियां टूटती उम्मीदें: चाय की अधिकांश दुकानें स्थाई नहीं होती सड़क किनारे झोपड़ी या ठेले पर चाय बेचने वाले दुकानदार रोजी—रोटी के लिए हर रोज संघर्ष करते हैं। शहरों में अतिक्रमण हटाओ अभियान जब भी चलता है सबसे पहले चाय की दुकान पर ही कार्रवाई होती है। ब्रांडेड चाय दुकान से बढ़ती होड़: पिछले कुछ वर्षों में शहरों में कई ब्रांडेड चाय स्टाल खुल गए हैं इनका आकर्षक लुक एक जैसा स्वाद हाइजीनिक माहौल और डिजिटल पेमेंट जैसे सुविधा ग्राहकों को अपनी और खींचती है छोटे चाय दुकानदार के लिए इससे मुकाबला करना मुश्किल हो रहा है। कुल्हड़ की मांग बढ़ी पर आपूर्ति कम हो रही है : शहरों और कस्बों में चाय दुकानदार इन दिनों कुल्लड़ की भारी कमी से जूझ रहे हैं। पारंपरिक मिट्टी के प्यालों की मांग तो बढ़ी है, लेकिन स्थानीय कुम्हारों की घटती संख्या और कच्चे माल की महंगाई ने आपूर्ति पर ब्रेक लगा दिया है। ऐसे में उम्मीद की किरण बनकर उभरी है केंद्र सरकार की प्रधानमंत्री वश्विकर्मा योजना, जिसके तहत पारंपरिक कारीगरों को आर्थिक और तकनीकी सहायता देने का प्रावधान है। चाय दुकानदारों का कहना है कि ग्राहक अब प्लास्टिक या कागज के कप की जगह कुल्लड़ में चाय पीना ज्यादा पसंद कर रहे हैं, जिससे कुल्लड़ की मांग कई गुना बढ़ गई है। लेकिन बाजार में कुल्लड़ मिलना मुश्किल होता जा रहा है। उन्हें मजबूर होकर दूसरे जिलों से कुल्लड़ मंगाना पड़ता है, जिससे उनकी लागत काफी बढ़ जाती है। इस समस्या का स्थायी समाधान स्थानीय कुम्हारों को फिर से सक्रिय करना हो सकता है। विशेषज्ञों का मानना है कि पीएम वश्विकर्मा योजना के अंतर्गत कुम्हारों को 15,000 रुपए का टूलकिट, 1 लाख तक का सस्ते ब्याज पर ऋण और तकनीकी प्रशक्षिण मिलता है। अगर जिला प्रशासन उन्हें चह्निति कर इस योजना से जोड़ दे, तो स्थानीय कुल्लड़ उत्पादन न सर्फि बढ़ेगा, बल्कि रोजगार भी सृजित होगा। चाय ही नहीं गर्मी के दिनों में लस्सी व फालूदा भी लोग कुल्लड़ में पीना पसंद करते हैं। कुल्हड़ की यह बढ़ती मांग कुम्हारों के लिए संजीवनी के समान है। यदि जिला प्रशासन या गैर सरकारी संस्थानें कुम्हारों को प्रशक्षिण व मदद मुहैया कराए तो वे फिर से खड़े हो सकते हैं। खादी विभाग के माध्यम से रेल मंत्री रहते हुए लालू प्रसाद ने इस पर पहल की थी। लेकिन, उनके रेल मंत्री पद से हटते ही यह योजना ठंडे बस्ते में डाल दी गई। जिले के कुम्हारों को यदि सही मार्गदर्शन मिले तो वे इस मांग को पूरी कर सकते हैं। यह स्वरोजगार का बेहतर विकल्प बन सकता है। शिकायत : हम हर दिन डर के साये में दुकान चलाते हैं। जब भी अतक्रिमण हटाओ अभियान आता है, सबसे पहले हमारी दुकानें उजाड़ दी जाती हैं। कहीं बैठकर चैन से चाय बेचने की जगह तक नहीं मिलती। दूध और चायपत्ती की कीमतें हर महीने बढ़ रही हैं, लेकिन ग्राहक उसी पुराने रेट पर चाय चाहता है। ऐसे में मुनाफा तो दूर, नुकसान झेलना पड़ रहा है। ग्राहकों को कुल्लड़ में चाय चाहिए, लेकिन लोकल मार्केट में कुल्लड़ मिलना मुश्किल हो गया है। बाहर से मंगवाने पर महंगा पड़ता है और आधे कुल्लड़ टूट जाते हैं। हम भी मेहनत करके रोज कमाने वाले लोग हैं, लेकिन सरकार की कोई योजना हम तक नहीं पहुंचती। न कोई पहचान पत्र, न कोई स्वास्थ्य या बीमा सुविधा। अब हर नुक्कड़ पर ब्रांडेड चाय की दुकान खुल रही है। उनके पास सब कुछ है। एसी, सुंदर ग्लास, कार्ड पेमेंट। सुझाव नगर परिषद या पंचायतें शहर में तय स्थानों पर चाय जोन बना सकती हैं, जहां साफ—सुथरे, छोटे—छोटे स्टॉल देकर दुकानदारों को कानूनी संरक्षण मिले। छोटे दुकानदारों को थोक दर पर दूध देने के लिए सरकारी या सहकारी डेयरी केंद्र शुरू किए जा सकते हैं, जिससे लागत में कमी आए। मिट्टी के बर्तनों को बनाने के लिए सरकार पीएम वश्विकर्मा जैसी योजनाओं से कुम्हारों को जोड़कर स्थानीय आपूर्ति बढ़ा सकती है। जैसे स्ट्रीट वेंडर एक्ट के तहत सब्जी वालों को पहचान मिलती है, वैसे ही चाय दुकानदारों को पहचान पत्र और सरकारी योजनाओं का लाभ मिलना चाहिए। जिला उद्योग केंद्र या स्टार्टअप हब छोटे दुकानदारों को साफ—सफाई, ग्राहकों से व्यवहार और कम लागत में ब्रांडिंग का प्रशक्षिण देकर उन्हें सक्षम बना सकते। हमारी भी सुनें रोज सुबह चार बजे उठते हैं, दूध लाते हैं, पानी भरते हैं, फिर चाय की तैयारी शुरू होती है। लेकिन अब तो दूध इतना महंगा हो गया है कि मुनाफा लगभग खत्म हो गया है। - मिट्ठू कुमार हमारा ठेला इसी मोड़ पर लगा है। बिजली का कनेक्शन नहीं है, पानी के लिए रोज भटकना पड़ता है। फिर भी सुबह 6 बजे से रात 10 बजे तक खड़े रहते हैं। — विकास कुमार 10 लीटर दूध इस्तेमाल करते हैं। पहले जो दूध 40 रुपए में मिल जाता था, अब 60 रुपए तक हो गया है। ऐसे में चाय का रेट बढ़ाने की कोशिश करो तो ग्राहक नाराज हो जाता है। -प्रकाश रजक हम रोजाना 200 से ज्यादा कुल्लड़ का इस्तेमाल करते है लेकिन अब लोकल बाजार में मिलना मुश्किल हो गया है। पहले 1.50 से 2 रूपए में एक कुल्लड़ मिल जाता था। -नीतीश कुमार हम पहले स्थानीय डेयरी से कच्चा दूध खरीदते थे जो सस्ता और ताजा होता था। लेकिन अब वे लोग होटल वालों को ज्यादा रेट पर बेचने लगे है। मजबूरी में सुधा या पैकेट वाला दूध लेना पड़ता है। - शिबू ठाकुर मैने जब चाय की दुकान शुरू की थी, तब शुरूआत में काफी घबराहट थी। क्या कमाई होगी, लेकिन अब रोज 500-600 रुपए कमा लेता हूं। -गोपाल सिंह अच्छी क्वालिटी की चायपत्ती और उचित मूल्य पर कुल्लड़ हमारी सबसे बड़ी जरूरत है। इसमें जिला प्रशासन का सरकार कोई मदद कर सके ता हम और बेहतर सेवा दे सकते है। - अजय कुमार हमारे इलाके में कोई कुम्हार है, जो पहले कुल्लड़ बनाते थे। अब ईट-भट्ठों में मजदूरी करते है। कहते है अब कोई कुल्लड़ नहीं खरीदता, घाटा हो जाता है। - रोहित साह जब ज्यादा ग्राहक आते है, लेकिन उसी वक्त बिजली चली जाती है और पंखा बंद हो जाता है। गर्मी से ग्राहक भी परेशान हो जाते है और जल्दी उठ जाते है। सरकार ऐसे दुकानदारों को सोलर किट दे तो बड़ी मदद होगी। - क्षैतिज कुमार मैं पिछले कई साल से बाजार में चाय बेच रहा हूं। दिन में सैकड़ों लोग चाय पीते है, लेकिन बाजार में पीने के पानी की व्यवस्था नहीं है और न ही कूड़ादान ही है। -वरूण कुमार चाय की दुकान के साथ-साथ मैं नमकीन और पान-मसाले का छोटा स्टॉल भी लगाता हूं। इससे थोड़ी ज्यादा कमाई हो जाती है। चाय में वह मुनाफा नहीं है। - रामप्रसाद कुमार साह कई चाय दुकानदारों के पास आज भी डिजिटल पेमेंट की व्यवस्था नहीं है। लेाग 10 रूपए भी पेटीएम या गुगल पे से देना पसंद कर रहे है। साइबर अपराध के चलते डिजिटल पेमेंट को अपनाने में डर भी लगता है। -चंदन कुमार बारिश में सबसे ज्यादा दिक्कत होती है। पानी निकासी की व्यवस्था नहीं होने से परेशानी होती है। पूरी दुकान गीली हो जाती है, सामान खराब हो जाता है। ग्राहक भी नहीं आते है। - रणवीर दास सरकार ने हमे कभी छोटा व्यापारी नहीं माना। हम न व्यापारी सूची में आते है न हमे किसी योजना का लाभ मिलता है। अगर कोई दुर्घटना हो जाए तो बीमा भी नहीं है। -नागेश्वर यादव यू-टयूब पर चाय वालों को ऐसे दिखाया जाता है कि हमल रोज का 50-60 हजार रूपए कताते है। सारे खर्चे काट दे तो 10 रूपए के चाय पर मुश्किल से 2-3 रूपए बचता है। - शंभू कुमार चायपत्ती की क्वालिटी अब बहुत खराब हो गई है। पहले जो चायपत्ती 200 रूपए प्रति किलो मिलती थी, अब उसकी कीमत 300 रूपए हो गई है। क्वालिटी में कोई अंतर नहीं है। -चाईल्ड उड सरकार की कई योजनाएं है जिसमें छोटे से लेकर बड़े व्यवसायियों तक को लोन देने का प्रावधान है। इसमें अनुदान भी दिया जाता है। इसके अलावा मुख्यमंत्री उद्यमी योजना के तहत सरकार सहायता दे रही है। इसके अलावा पीएमईजीपी योजना के तहत भी लाभ ले सकते हैं। पोर्टल पर आवेदन कभी भी कर सकते हैं। इसमें अनुदान भी देने का प्रावधान है। मितेश कुमार शाण्डिल महाप्रबंधक, जमुई जिला उद्योग केंद्र

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