बोले कटिहार : बच्चों से ज्यादा एप्स याद रहें, तो समझिए शिक्षा व्यवस्था बीमार है
बिहार के सरकारी स्कूलों के शिक्षक अब पढ़ाई के बजाय तकनीकी और प्रशासनिक कार्यों में उलझ गए हैं। 70 प्रतिशत समय गैर-शैक्षणिक कार्यों में गुजरता है। शिक्षकों की समस्याएं बढ़ रही हैं, जैसे समय पर वेतन न...
वो चॉक पकड़ने वाला हाथ अब मोबाइल ऐप में डेटा भर रहा है। जो बच्चों की आंखों में सपने जगाता था, अब आदेशों की भीड़ में खुद अपनी पहचान तलाश रहा है। शिक्षक, जो कभी समाज का दीपक कहलाता था, आज तकनीकी और प्रशासनिक बोझ तले बुझता जा रहा है। पढ़ाने से ज्यादा समय अब उसे फॉर्म भरने, अपलोड करने और रिपोर्ट बनाने में लग रहा है। उसकी आवाज दबा दी गई है, संवेदनाएं अनदेखी कर दी गई हैं। जब शिक्षक ही थक जाएगा, तो पीढ़ियों को दिशा कौन देगा? जिले के शिक्षक गैर शैक्षणिक कार्यों से परेशान हैं। कक्षा में बच्चों को पढ़ाने से इतर इतने काम थोपे गये हैं कि उनमें उलझ से गये हैं। हिन्दुस्तान के साथ संवाद के दौरान जिले के सरकार स्कूलों के शिक्षकों ने अपनी समस्या बताई।
70 प्रतिशत से अधिक समय बीतता है गैर शैक्षणिक काम में
01 सौ से अधिक प्रकार के डेटा हर माह करना पड़ता है अपलोड
10 से अधिक सरकारी ऐप्स पर करनी पड़ती है विभिन्न रिपोर्ट
कंधों पर राष्ट्र निर्माण की जिम्मेदारी, लेकिन हाथों में थमा दिए गए हैं मोबाइल ऐप और विभागीय आदेशों की फेहरिस्त। बिहार के सरकारी स्कूलों में कार्यरत शिक्षक अब सिर्फ किताबों तक सीमित नहीं रहे। बच्चों को पढ़ाने वाला यह शिक्षक आज खुद व्यवस्था के पाठ पढ़ने में उलझा हुआ है। कभी अपार आईडी बनवाने में, तो कभी आधार सुधार कराने में। बैंक खाते खुलवाने से लेकर ई-शिक्षाकोष ऐप पर डाटा भरने तक, शिक्षा अब उसकी प्राथमिक जिम्मेदारी नहीं रह गई।
शिक्षक अब ‘स्कूल’ नहीं, ‘सिस्टम’ चला रहे :
शिक्षक संघ के जिला अध्यक्ष शफ्कूशमा की बातों में पीड़ा साफ झलकती है कि आज शिक्षक से इतना काम लिया जा रहा है कि वह खुद की पहचान भूल गया है। पढ़ाना अब एक छोटा हिस्सा भर रह गया है। कक्षा संचालन, मूल्यांकन, पाठ्यक्रम निर्माण, चेतना सत्र, अभिभावकों से संवाद। यह सब करते हुए जब शिक्षक थककर बैठता है, तो उसे फिर किसी ऐप पर हाजिरी लगानी होती है। हर बच्चे की प्रोफाइल, परीक्षा विवरण, ड्रॉपआउट बच्चों की सूची, बालपंजी संधारण और विभागीय प्रशिक्षण के प्रमाण-पत्र तक ऑनलाइन अपलोड करना भी उसकी ड्यूटी बन चुकी है। सुबह की उपस्थिति से लेकर रात की रिपोर्टिंग तक। शिक्षक अब ‘स्कूल’ नहीं, ‘सिस्टम’ चला रहे हैं।
संघ के महासचिव ने बताई शिक्षकों की पीड़ा
शिक्षक संघ के महासचिव रितेश आनंद कहते हैं कि शिक्षक को डराया-धमकाया जा रहा है। वे अब अपनी जायज बात कहने से भी डरते हैं। जिला शिक्षा कार्यालयों की अफसरशाही और दलाली ने शिक्षकों को बेबस कर दिया है। वे कहते हैं कि लोकतांत्रिक स्वतंत्रता का गला घोंटने वाली व्यवस्था में शिक्षक की आत्मा हर दिन मर रही है। इस सबके बीच शिक्षा हाशिए पर है बाल शिक्षा की गुणवत्ता। बाल शिक्षा की गुणवत्ता गिर रही है, लेकिन शिक्षक के कंधों पर गैर-शैक्षणिक बोझ और बढ़ता जा रहा है। अब शिक्षकों की है समय पर वेतन, सेवा पुस्तिका का रखरखाव व तकनीकी झंझटों से मुक्ति, सहायक शिक्षक का दर्जा और गांवों में शिक्षक कॉलोनी की व्यवस्था। शिक्षक सिर्फ पाठ्यक्रम नहीं पढ़ाता, वह नागरिकता, संवेदनशीलता और सोचने की ताकत सिखाता है। लेकिन जब वही शिक्षक व्यवस्था से हारने लगे, तो समझिए कि समाज की जड़ें हिल रही हैं। अब वक्त है उन्हें बोझ से मुक्त कर फिर से मशाल थमाने का, जिससे वे न सिर्फ कक्षा, बल्कि पूरे समाज को रोशन कर सकें।
शिकायत
1. शिक्षण कार्य छोड़कर गैर-शैक्षणिक कार्यों का अत्यधिक बोझ डाला जा रहा है।
2. समय पर वेतन भुगतान न होना और सेवा पुस्तिका में लापरवाही से परेशानी हो रही है।
3. ई-शिक्षा कोष, यू-डाइस जैसे तकनीकी प्लेटफॉर्म पर लगातार डाटा अपडेट का दबाव बढ़ा है।
4. विभागीय अफसरों द्वारा धमकी और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर रोक लगाई जाती है।
5. जिला शिक्षा कार्यालयों में व्याप्त भ्रष्टाचार और दलाली से उत्पीड़न हो रहा है।
सुझाव
1. शिक्षकों को गैर-शैक्षणिक और तकनीकी कार्यों से मुक्त किया जाए।
2. समय पर वेतन भुगतान और सेवा पुस्तिका का नियमित संधारण सुनिश्चित हो।
3. सहायक शिक्षक का दर्जा देकर तदनुसार सेवा शर्तें लागू की जाएं।
4. ग्रामीण क्षेत्रों में शिक्षक कॉलोनी का निर्माण किया जाए।
5. स्कूलों और शिक्षकों की लोकतांत्रिक स्वायत्तता को सुरक्षित रखा जाए।
इनकी भी सुनें
शिक्षक अब सिर्फ चॉक और डस्टर नहीं, डेटा और दस्तावेज के गुलाम बनते जा रहे हैं। हम बच्चों के भविष्य को संवारने आए थे, लेकिन अब खुद अस्तित्व बचाने की लड़ाई में फंसे हैं। स्कूलों को स्कूल ही रहने दें, उन्हें मिनी ऑफिस में न बदलें।
-संजय कुमार
शिक्षा एक सेवा है, लेकिन आज यह एक बोझ बन चुकी है। कागजों और ऐप्स की दुनिया में असली ज्ञान कहीं खो गया है। शिक्षक की गरिमा, उसका आत्मविश्वास और रचनात्मकता लगातार कुचली जा रही है। हमें फिर से शिक्षण के मूल उद्देश्य की ओर लौटना होगा।
-अरुण कुमार मिश्रा
बच्चों की मुस्कुराहटें अब कम दिखती हैं क्योंकि शिक्षक तनाव में हैं। हर दिन कोई नया आदेश, नई रिपोर्ट, नया डाटा भरना। यह सिलसिला थमता नहीं। अगर शिक्षक ही निराश होंगे, तो बच्चों को आशा कौन देगा? हमें शिक्षण कार्य को सम्मान देना होगा।
- अमित आलोक
शिक्षक की भूमिका सिर्फ पढ़ाने की नहीं, एक भावनात्मक जुड़ाव की भी होती है। लेकिन अब हमें कंप्यूटर ऑपरेटर बना दिया गया है। बच्चों से हमारा समय और रिश्ता धीरे-धीरे टूट रहा है। यह शिक्षा नहीं, एक तकनीकी प्रयोग बनती जा रही है।
-निहारिका कुमारी
एक शिक्षक के दिन की शुरुआत अब कक्षा से नहीं, उपस्थिति ऐप से होती है। और अंत होता है रिपोर्ट फाइल करते हुए। बच्चों की शरारतें और जिज्ञासा अब फॉर्मेटेड उत्तरों में बदल रही हैं। हमें इस तंत्र से आजादी चाहिए ताकि हम फिर से शिक्षक बन सकें।
-मंजू कुमारी
शिक्षक अब स्कूल में सबसे अधिक व्यस्त व्यक्ति हैं, लेकिन शिक्षा में सबसे कम उपयोग हो पा रहे हैं। विभागीय आदेशों की बाढ़ ने हमारी सृजनात्मकता खत्म कर दी है। हर शिक्षक एक कोना खोज रहा है जहां वह बस पढ़ा सके, कुछ नया कर सके।
-पूनम कुमारी
हम शिक्षक सिर्फ तन से नहीं, मन से भी जुड़ते हैं बच्चों से। लेकिन आज उस भावनात्मक जुड़ाव को विभागीय बोझ ने काट दिया है। जब बच्चों के नाम से ज्यादा ऐप्स के नाम याद रहने लगें, तो समझिए शिक्षा व्यवस्था बीमार है।
-ज्योति कुमारी
शिक्षा का उद्देश्य आत्मा को स्पर्श करना था, अब बस स्क्रीन को छूना रह गया है। अपार आईडी से लेकर एफ एल एन ट्रेनिंग तक, हम शिक्षकों की प्राथमिकता शिक्षा नहीं रही। सबसे दुखद यह है कि इस सिस्टम में न शिक्षक की सुनवाई है, न बच्चे की।
-संजय कुमार रजक
शिक्षक समाज का मार्गदर्शक होता है, लेकिन आज वह खुद रास्ता खोज रहा है। इतनी सारी रिपोर्ट, दस्तावेज और मीटिंग में हम खो से गए हैं। प्रशासन को चाहिए कि वह शिक्षकों को फिर से शिक्षण कार्य में लौटाए, ताकि बच्चे सही दिशा में बढ़ सकें।
-कृष्ण प्रसाद कौशिक
हर हफ्ते कोई नया सरकारी आदेश आता है और हमें फिर से अपनी दिनचर्या बदलनी पड़ती है। पढ़ाने का समय घटता जा रहा है, और हम थकते जा रहे हैं। हम बदलाव से नहीं डरते, पर जब वह शिक्षा को ही निगल जाए, तब प्रश्न उठते हैं।
-कुमार त्रिपाठी
मैं हर दिन स्कूल आती हूं बच्चों के चेहरों पर खुशी देखने, लेकिन जब खुद पर बोझ महसूस होता है, तो वह खुशी अधूरी लगती है। हम सिर्फ कर्मचारी नहीं हैं, हम गढ़ने वाले हैं। हमें उस भूमिका को निभाने का अधिकार दिया जाना चाहिए।
-श्रीकांत यादव
शिक्षक होना कभी गौरव का विषय था, आज वह एक ‘ऑफिस असिस्टेंट’ जैसी भूमिका बन गई है। मुझे अपने विषय से प्रेम है, पर अब समय नहीं बचता। मूल्यांकन, डाटा अपलोड, ट्रैकिंग, शिक्षा पीछे रह गई है। यह हमारी जिम्मेदारी नहीं, बंधन बन गया है।
-शिरोमती कश्यप
हमने पढ़ाना चुना था, फॉर्म भरना नहीं। जब हर दिन किसी नए पोर्टल में लॉगिन करना प्राथमिक काम हो जाए, तो बच्चों की सीखने की प्रक्रिया बाधित होती है। शिक्षक की गरिमा बहाल होनी चाहिए, वरना समाज का भविष्य अधर में लटक जाएगा।
-रंजना देवी
एक शिक्षक का सपना होता है कि वह बच्चों के जीवन में बदलाव लाए। लेकिन आज हम खुद विभागीय आदेशों के बोझ में बदल गए हैं। शिक्षकों को नौकर नहीं, राष्ट्र निर्माता के रूप में देखा जाए। हमें फिर से अपना खोया आत्मसम्मान चाहिए।
-कुमारी अर्चना श्री
एक महिला शिक्षक के रूप में मुझे दोहरी चुनौती झेलनी पड़ती है। घर की जिम्मेदारी और स्कूल का प्रशासनिक बोझ। जब हर दिन नया ऐप, नया डेटा और नई मीटिंग हो, तो कक्षा में पढ़ाने का मन कैसे लगे? हमें फिर से शिक्षा को प्राथमिकता बनाना होगा।
-सैबुर रहमान
शिक्षा सिर्फ नौकरी नहीं, एक समर्पण है। लेकिन अब ऐसा लगता है जैसे हम केवल विभागीय लक्ष्यों को पूरा करने वाली मशीनें बन गए हैं। न बच्चों से समय मिलता है, न खुद से। हमें उस शिक्षा व्यवस्था की वापसी चाहिए जिसमें शिक्षक केंद्र में हो।
-आरती कुमारी
एक शिक्षक हर दिन बच्चों के भविष्य को गढ़ता है, लेकिन आज वह खुद असुरक्षित और उपेक्षित महसूस करता है। लगातार बढ़ता कार्यभार, वेतन में देरी और डर का माहौल हमें तोड़ रहा है। हमें भरोसा चाहिए, सम्मान चाहिए, और सबसे जरूरी... पढ़ाने का समय चाहिए।
-मो नजीबुर रहमान
हर आदेश अब एक परीक्षा है। बच्चे तो अब भी कक्षा में आते हैं, उम्मीदों के साथ, पर शिक्षक खुद को असहाय पाता है। हमने शिक्षा को पवित्र समझा, पर व्यवस्था ने इसे एक बोझ बना दिया। हमें फिर से वो भरोसा चाहिए।
-तेज नारायण सिंह
मुझे लगता है शिक्षक अब ‘समस्या सुलझाने वाला’ बन गया है, जो शिक्षा के इतर हर काम करता है। बैंक से लेकर सर्वे तक, हर जगह हमारी ड्यूटी लगती है। शिक्षा तब ही बेहतर होगी जब शिक्षक को सिर्फ शिक्षण तक सीमित रखा जाए।
-उदय शंकर सिंह
हर शिक्षक एक रोशनी का स्रोत होता है, लेकिन जब उस पर तकनीकी और प्रशासनिक पर्दे डाले जाएं, तो वह रोशनी मद्धम हो जाती है। हमें तकनीक नहीं चाहिए, जो शिक्षा को निगल जाए। हमें वह माहौल चाहिए जहाँ शिक्षा और शिक्षक दोनों फलें-फूलें।
-विभा कुमारी
बोले जिम्मेदार
शिक्षकों की भूमिका शिक्षा में केंद्रीय है और हम उनके योगदान को अत्यंत सम्मान के साथ देखते हैं। विभाग का प्रयास है कि गैर-शैक्षणिक कार्यों का बोझ न्यूनतम रखा जाए और तकनीकी प्लेटफॉर्म्स को उनके लिए सरल बनाया जाए। वेतन भुगतान में आ रही दिक्कतों को प्राथमिकता से सुलझाया जा रहा है। सेवा पुस्तिका संधारण और अन्य प्रशासनिक प्रक्रियाओं में पारदर्शिता लाने के लिए कार्ययोजना बन रही है। यदि किसी शिक्षक को असुविधा होती है, तो वह सीधे जिला कार्यालय में संपर्क कर सकता है। हम शिक्षकों के साथ संवाद बनाकर शिक्षा व्यवस्था को और बेहतर बनाने के लिए प्रतिबद्ध हैं।
-अमित कुमार, जिला शिक्षा पदाधिकारी, कटिहार
बोले कटिहार असर
ई-शिक्षाकोष में सुधार की डीईओ ने की पहल
कटिहार, हिन्दुस्तान प्रतिनिधि। ई-शिक्षाकोष पोर्टल की तकनीकी खामियों से परेशान शिक्षकों की समस्याएं लगातार बढ़ती जा रही हैं। समय पर स्कूल पहुंचने के बावजूद हजारों शिक्षक पोर्टल पर उपस्थिति दर्ज नहीं कर पा रहे हैं। लोकेशन त्रुटियों, नेटवर्क फेल और ऐप क्रैश जैसी दिक्कतें आम हो गई हैं। शिक्षक मोबाइल से स्क्रीनशॉट लेकर उपस्थिति साबित करने की कोशिश कर रहे हैं, ताकि अनुपस्थिति का ठप्पा न लगे। इससे न केवल शिक्षक मानसिक रूप से परेशान हैं, बल्कि शिक्षण कार्य भी प्रभावित हो रहा है। हिन्दुस्तान ने 21 जनवरी को 'बोले कटिहार' अभियान के तहत यह मुद्दा प्रमुखता से उठाया था। अब जिला शिक्षा पदाधिकारी अमित कुमार ने स्वतः संज्ञान लेते हुए सभी बीईओ को तकनीकी खामियों पर फीडबैक लेने और सुधार की अनुशंसा करने को कहा है। डीईओ ने स्पष्ट किया कि तकनीकी गड़बड़ी के कारण किसी भी शिक्षक के साथ अन्याय नहीं होने दिया जाएगा। वहीं शिक्षक संगठनों ने मांग की है कि जब तक तकनीकी सुधार पूरी तरह नहीं हो जाता, तब तक वैकल्पिक व्यवस्था लागू की जाए, जिससे शिक्षकों को अनावश्यक दंड और मानसिक दबाव से राहत मिल सके। ग्रामीण क्षेत्रों में नेटवर्क की खराब स्थिति से पोर्टल तक पहुंचना ही बड़ी चुनौती बनी हुई है। शिक्षकों को उम्मीद है कि अब विभाग कोई ठोस कदम उठाएगा और डिजिटल व्यवस्था को शिक्षक हितैषी बनाने के लिए जरूरी संसाधनों को मजबूत करेगा। सभी की निगाहें अब विभागीय कार्रवाई और स्थायी समाधान पर टिकी हैं।
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