बोले कटिहार : संसाधन और बाजार मिले तो शहद घोलेगा जीवन में मिठास
कटिहार की महेशपुर गांव में मधुमक्खी पालन ने 20 परिवारों की तकदीर बदल दी है। सूरज कुमार ठाकुर ने 15 साल पहले इस व्यवसाय की शुरुआत की थी। अब उनके पास 500 से अधिक बी-बॉक्स हैं। महिलाएं भी आत्मनिर्भर हो...
कटिहार की उपजाऊ धरती पर जहां कभी सिर्फ परंपरागत खेती होती थी, अब मधुमक्खियों की गुनगुनाहट एक नए बदलाव की कहानी कहती है। गांव की गलियों से निकलकर युवा अब सिर्फ हल ही नहीं, बी-बॉक्स भी संभाल रहे हैं। डंडखोरा पंचायत में महेशपुर के सूरज कुमार ठाकुर जैसे लोग मधुमक्खी पालन को न सिर्फ अपना व्यवसाय बना चुके हैं, बल्कि अपने जैसे कई अन्य परिवारों को भी इस स्वरोजगार से जोड़ चुके हैं। शहद की मिठास अब सिर्फ स्वाद नहीं, एक उम्मीद बन गई है-एक ऐसी राह, जो बेरोजगारी से लड़ने की ताकत देती है। चुनौतियां हैं, पर हौसले भी बुलंद हैं। अगर सरकार और व्यवस्था साथ दे, तो कटिहार की यह गुनगुनाहट पूरे बिहार में एक मिसाल बन सकती है।
20 परिवारों की मधुमक्खी पालन से बदली तकदीर
05 सौ से अधिक बी बाक्स में पालन करता है सूरज
04 प्रखंडों में व्यापक पैमाने पर होता है मधुमक्खी पालन
कटिहार जिले के डंडखोरा प्रखंड के एक छोटे से गांव महेशपुर से निकली मधुर कहानी आज पूरे जिले के लिए प्रेरणा बन रही है। यहां के सूरज कुमार ठाकुर ने 15 साल पहले जब पहली बार मधुमक्खी पालन की शुरुआत की, तब शायद किसी ने नहीं सोचा था कि यह गुनगुनाहट एक दिन गांव की तकदीर बदल देगी। सूरज आज सिर्फ एक मधुमक्खी पालक नहीं, बल्कि एक मार्गदर्शक हैं। उन्होंने अकेले शुरुआत की और आज उनके साथ 20 परिवार इस व्यवसाय से जुड़े हैं। सूरज के पास 500 से अधिक बी-बॉक्स हैं, जिन्हें वे सरसों और लीची के मौसम में खेतों में रखते हैं। एक सीजन में वे 25 किलो से ज्यादा शहद एक बॉक्स से प्राप्त करते हैं, और यही शहद अब उनके जीवन में मिठास घोल रहा है।
महिलाएं हो रही हैं आत्मनिर्भर
महिलाएं जैसे सपना देवी, तेतरी देवी, सोमा ठाकुर और कई अन्य अब इस व्यवसाय में न सिर्फ सहयोग कर रही हैं, बल्कि खुद भी आत्मनिर्भर हो रही हैं। सूरज का कहना है कि यह काम सिर्फ आय का जरिया नहीं है, बल्कि एक जीवनशैली बन चुका है। जहां प्रकृति से जुड़ाव है, परिश्रम है और अपने गांव को बेहतर बनाने की चाह है। हालांकि, चुनौतियां अब भी कम नहीं हैं। बाजार तक सीधी पहुंच न होने के कारण शहद की बिक्री में बिचौलियों का दखल बना हुआ है। उन्हें लीची के शहद के लिए 75 रुपए और सरसों के शहद के लिए 57 रुपए प्रति किलो कीमत मिलती है, जो उनकी मेहनत के मुकाबले बहुत कम है। सूरज और अन्य पालकों की मांग है कि सरकार सीधे खरीद की व्यवस्था करे और स्थानीय स्तर पर शहद मंडी स्थापित की जाए, ताकि उचित मूल्य मिल सके।
बदलाव की कहानी
कटिहार के इस गांव की यह कहानी केवल एक व्यवसाय की नहीं, बल्कि हौसले, समर्पण और बदलाव की कहानी है। मधुमक्खी पालन ने न केवल सूरज और उनके साथियों को आर्थिक रूप से मजबूत किया, बल्कि गांव को आत्मनिर्भरता की राह पर भी अग्रसर किया है। यह साबित करता है कि अगर सही मार्गदर्शन, तकनीक और समर्थन मिले, तो गांव की गुनगुनाहट देश की समृद्धि में बदल सकती है।
शिकायतें
1. शहद का उचित मूल्य नहीं मिल पाता, जिससे किसानों को बिचौलियों के जरिए कम कीमत पर माल बेचना पड़ता है।
2. कई मधुमक्खी पालक सरकारी योजनाओं और लाभों से अनजान हैं क्योंकि उन्हें समय पर जानकारी नहीं मिल पाती।
3. नए मधुमक्खी पालकों को प्रशिक्षण न मिलने के कारण वे गलत तरीके अपनाते हैं जिससे उत्पादन और गुणवत्ता पर असर पड़ता है।
4. वर्षा, गर्मी या कीटनाशकों के छिड़काव से मधुमक्खियों की मौत हो जाती है, लेकिन इसकी भरपाई के लिए कोई राहत नहीं मिलती।
5. मधुमक्खी पालकों के लिए कोई मजबूत स्थानीय संघ या सहकारी संस्था नहीं है, जिससे वे सामूहिक रूप से अपने हितों की रक्षा कर सके।
सुझाव:
1. शहद की सीधी खरीद के लिए स्थानीय मंडियों की स्थापना की जाए ताकि किसानों को उचित मूल्य मिल सके और बिचौलियों की भूमिका खत्म हो।
2. किसानों को आधुनिक मधुमक्खी पालन तकनीक, बीमारियों की रोकथाम और शुद्ध शहद उत्पादन की जानकारी देने के लिए जिला स्तर पर नियमित प्रशिक्षण शिविर लगाए जाएं।
3. मधुमक्खी पालकों को गुणवत्तापूर्ण बी-बॉक्स, सुरक्षात्मक पोशाक और प्रोसेसिंग इक्विपमेंट पर सरकारी सब्सिडी दी जाए।
4. शहद की मार्केटिंग और बिक्री बढ़ाने के लिए स्थानीय स्तर पर ब्रांडिंग और आकर्षक पैकेजिंग की सुविधा मुहैया कराई जाए।
5. मधुमक्खी पालकों को आसान शर्तों पर ऋण उपलब्ध कराया जाए ताकि वे अपने व्यवसाय का विस्तार कर सके।
इनकी भी सुनें
मधुमक्खी पालन ने मुझे घर बैठे आमदनी का जरिया दिया। अब बच्चों की पढ़ाई और घर का खर्च आसानी से चल रहा है। लेकिन अगर सरकार से सीधे मदद मिले तो और बेहतर होगा।
-सपना देवी
शुरुआत में डर था, लेकिन सूरज जी के साथ जुड़कर आत्मविश्वास आया। आज खुद शहद निकालती हूं। अगर बाजार अच्छा मिले तो और भी महिलाएं जुड़ सकती हैं।
-रंजु देवी
हमारे गांव की महिलाएं अब खुद कमा रही हैं, ये गर्व की बात है। लेकिन काम के दौरान सुरक्षा उपकरण नहीं मिलने से कई बार दिक्कतें होती हैं।
-सोमा ठाकुर
यह काम प्रकृति से जुड़ा हुआ है, और दिल से किया जाए तो अच्छी आमदनी होती है। लेकिन बी-बॉक्स की कीमत बहुत ज्यादा है, इसमें सहयोग जरूरी है।
-तेतरी देवी
15 साल से इस काम से जुड़ा हूं। मेहनत तो बहुत है, लेकिन बाजार में शहद का सही मूल्य नहीं मिलने से नुकसान झेलना पड़ता है।
-प्रदीप कुमार ठाकुर
गांव में बेरोजगारी के बीच मधुमक्खी पालन आशा की किरण बना है। लेकिन सही प्रशिक्षण और बीमा की व्यवस्था हो तो जोखिम कम हो सकता है।
-कृष्णदेव कुमार मंडल
मैंने यह काम तब शुरू किया जब कुछ समझ नहीं आता था। आज 500 बी-बॉक्स हैं, और 20 परिवारों को रोजगार मिला है। सरकार सहयोग करे तो यह आंदोलन बन सकता है।
-सूरज कुमार ठाकुर
हम मधुमक्खी पालक दिन-रात मेहनत करते हैं, लेकिन मुनाफा बिचौलियों के हाथ चला जाता है। अगर सरकार खुद शहद खरीदे तो बड़ा बदलाव आ सकता है।
-मोहन कुमार मंडल
शहद शुद्ध होता है, मेहनत से तैयार होता है। लेकिन नामी कंपनियों का ब्रांड हमारी मेहनत को पीछे कर देता है। हमें भी ब्रांडिंग की सुविधा चाहिए।
-बिनोद कुमार मंडल
मधुमक्खी पालन से मेरा आत्मविश्वास बढ़ा है। लेकिन प्राकृतिक आपदाओं से बचाव के लिए बीमा योजना जरूरी है।
-अखिलेश कुमार
हम गांव में रहकर भी अच्छी आमदनी कर सकते हैं, ये मधुमक्खी पालन ने सिखाया। अगर मार्केट से जुड़ जाएं तो और फायदा हो सकता है।
-मनीष कुमार
सरसों और लीची के मौसम में अच्छी आमदनी होती है, पर बाकी समय काम कम रहता है। पूरे साल काम बना रहे इसके लिए योजनाएं बननी चाहिए।
-सोनू कुमार
शहद बेचने में सबसे ज्यादा परेशानी बाजार तक पहुंचने में होती है। हम चाहते हैं सरकार गांव में शहद संग्रह केंद्र खोले।
-बिक्रम कुमार रजक
कम उम्र में ही इस काम से जुड़ा हूं। अब महसूस होता है कि स्वरोजगार गांव में भी संभव है, बस सही मार्गदर्शन जरूरी है।
-करण कुमार मंडल
हमारे गांव में कई लोग इस काम से जुड़े हैं, लेकिन अगर समूह बनाकर काम किया जाए तो ज्यादा लाभ मिलेगा।
-वकील ठाकुर
मधुमक्खी पालन पर्यावरण और आमदनी दोनों के लिए अच्छा है। लेकिन मौसम की मार से काफी नुकसान होता है, इसके लिए वैज्ञानिक मदद की जरूरत है।
-ब्रहमदेव मंडल
शहद का काम अब हमारे गांव की पहचान बन रहा है। सरकार प्रचार करे तो दूसरे जिलों तक हमारा शहद पहुंच सकता है।
-पप्पू कुमार मंडल
हमारी मेहनत तभी सफल होगी जब हमें मार्केटिंग का सही प्लेटफॉर्म मिलेगा। इसके लिए सरकारी हस्तक्षेप जरूरी है।
-अजीत कुमार ठाकुर
सरकार की योजनाएं सिर्फ कागजों में हैं। अगर सही तरीके से लागू हों तो गांव के युवा शहर छोड़कर यहीं काम करना पसंद करेंगे।
-कुन्दन कुमार मंडल
मधुमक्खी पालन ने मेरी जिंदगी बदल दी, लेकिन हम तकनीकी रूप से अभी भी पिछड़े हैं। प्रशिक्षण और अपडेटेड तकनीक की ज़रूरत है।
-प्रदीप कुमार मंडल
बोले जिम्मेदार
कटिहार में मधुमक्खी पालन को आत्मनिर्भरता का साधन बनाने की दिशा में विभाग लगातार प्रयासरत है। किसानों को तकनीकी प्रशिक्षण, बी-बॉक्स वितरण और विपणन की जानकारी दी जा रही है। लेकिन सीमित संसाधनों और जानकारी के अभाव में सभी तक योजनाओं का लाभ नहीं पहुंच पाता। हम प्रयास कर रहे हैं कि प्रत्येक प्रखंड में नियमित शिविर लगाकर जागरूकता बढ़ाई जाए। साथ ही, हम राज्य सरकार से मांग करेंगे कि शहद की खरीद के लिए स्थानीय मंडी की व्यवस्था की जाए ताकि मधुमक्खी पालकों को उचित मूल्य मिल सके।
-मिथिलेश कुमार, जिला कृषि पदाधिकारी, कटिहार
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