उदारता ही अशांति का समाधान है : मोरारी बापू
राजगीर के कन्वेंशन सेंटर में रामकथा का छठा दिन उदारता ही अशांति का समाधान है : मोरारी बापू उदारता ही अशांति का समाधान है : मोरारी बापू

राजगीर के कन्वेंशन सेंटर में रामकथा का छठा दिन नालंदा विवि के कुलपति-बापू ने जो कहा, आत्मसात करने योग्य फोटो: बापू 01-राजगीर के अंतरराष्ट्रीय कन्वेंशन सेंटर में गुरुवार को रामकथा का वाचन करते विश्व प्रसिद्ध कथावाचक मोरारी बापू। राजगीर, निज संवाददाता। अंतरराष्ट्रीय कन्वेंशन सेंटर में चल रहे 'मानस नालंदा विश्वविद्यालय' रामकथा के छठे दिन गुरुवार को मोरारी बापू ने कहा कि आज संसार में अशांति का एक बड़ा कारण यह है कि हममें उदारता की भारी कमी है। कोई किसी को क्षमा नहीं करता, हर कोई अपनी जिद पर अड़ा है। धर्म, राजनीति और समाज हर क्षेत्र में लोग अपने वचन पर अटल नहीं रहते, जबकि आध्यात्मिक जगत तो वचन पर ही चलता है।
बापू ने कुलपति के 6 लक्षण बताये। उन्होंने कहा कि कुलपति पर बहुत बड़ा दायित्व होता है। पहला और सबसे महत्वपूर्ण लक्षण है उदारता। प्राथमिक स्कूल से लेकर विश्वविद्यालय के कुलपति को उदार होना चाहिए। वे किसी को सुधारने नहीं सबको स्वीकारने आये हैं। बड़ा दिल और विशाल दृष्टिकोण चाहिए। युवा अपने मन की खिड़कियां खुली रखें। प्रेमचंद जैसे लेखकों को पढ़ें ओर अच्छे ग्रंथों से जुड़ें। अपनी पत्नी के साथ पहुंचें नालंदा विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. सचिन चतुर्वेदी ने बापू के प्रति आभार जताया। उन्होंने कहा कि बापू के बताये गये 6 गुण आत्मसात करने लायक हैं। उन्होंने बापू को विश्वविद्यालय परिसर आने का न्यौता दिया। नालंदा की भूमि को किया प्रणाम : उन्होंने अपनी कथा की शुरुआत नालंदा की पावन भूमि को प्रणाम करते हुए की। उन्होंने नालंदा को 'ध्यान भूमि, अहिंसा भूमि, परा-अपरा विद्या की भूमि' और 'शून्य एवं पूर्ण के बीच सेतु बनाने वाली भूमि' की संज्ञा दी। बापू ने कहा कि यह समस्त चेतनाओं को जागृत करने वाली पवन, पावन, तपोवन भूमि है। इसे वे सच्चे मन से प्रणाम करते हैं। उनकी व्यासपीठ हर श्रोता को स्वतंत्रता देती है। कई लोग चिट्ठियों के माध्यम से अपनी जिज्ञासाएं प्रकट करते हैं और यथा समय समाधान भी प्राप्त करते हैं। कुलपति में होने चाहिए ये लक्षण : कुलपति के लिए दूसरा लक्षण उन्होंने माधुर्य को बताया। मूल पुरुष में ऐसी मधुरता होनी चाहिए कि उनके वचन कानों में शहद घोल दें और हमें धन्य कर दें। तीसरा लक्षण सौंदर्य है। बापू ने शारीरिक सुंदरता को ईश्वर का वरदान बताया, लेकिन इस पर जोर दिया कि सुंदरता को शिकारी आंखों से नहीं, बल्कि पूजारी आंखों से देखना चाहिए। उन्होंने अष्टावक्र जी का उदाहरण दिया, जो शारीरिक रूप से सुंदर न होते हुए भी अपने ज्ञान से शोभायमान दिखते थे। चौथा लक्षण गांभीर्य है। इसका अर्थ मुंह चढ़ाकर बैठना नहीं, बल्कि भीतरी गंभीरता है जैसे कैलाशपति महादेव में होती है। पांचवां लक्षण धैर्य है। ऐसी स्थिति जहां सुख-दुख या मान-अपमान किसी को अशांत न कर सके। और छठवां लक्षण शौर्य है। कुलपति में शौर्य होना आवश्यक है। परमात्मा, शास्त्र और प्रेम का सार: उन्होंने कहा कि परम अव्यवस्था का नाम ही परमात्मा है। वहां कोई गणित काम नहीं आता। कब क्या होगा इसका किसी को पता नहीं। अध्यात्म जगत अज्ञात है। बापू ने फिर दोहराया कि शास्त्र जब गुरुमुख हो, तभी आत्मसात होता है। उन्होंने मौन का अर्थ 'मुनीभाव में स्थित हो जाना' बताया। ऐसे मौनी पुरुष आकाश के आधार होते हैं। परम वैरागी दादा गुरु विष्णु देवानंदगिरि महाराज के वचन को याद करते हुए उन्होंने कहा कि प्रेम ही आत्मा का धर्म है। हमें एक-दूसरे से प्रेम करना चाहिए, क्योंकि सबके पास आत्मा है। शिव-पार्वती संवाद से रामकथा: बापू ने रामजन्म की प्रसंगवश झांकी प्रस्तुत की। इसमें शिव पार्वती को कथा सुना रहे हैं। बालक राम के दर्शन हेतु शिवजी ज्योतिषी बनकर अयोध्या पहुंचते हैं। पार्वती भी रूप बदलकर दर्शन करती हैं। राम के गुरु वशिष्ठजी द्वारा नामकरण और विद्या-अर्जन के प्रसंग पर बापू ने कहा कि राम विद्या के साथ सदाचार भी सीखते हैं। माता-पिता, गुरु और अतिथि को प्रणाम करते हैं। इससे आयु, यश, बल और विवेक बढ़ता है। अगर आदमी के पास 'सुविद्' (सुविधा) हो, तो वह परमात्मा तक पहुंचा सकती है। बापू ने वाल्मीकि जी के सिद्धाश्रम और तुलसीदास जी के शुभाश्रम का वर्णन किया। यहां विश्वामित्र जी महाराज दशरथ जी के पास आकर राम और लक्ष्मण को अपने साथ भेजने के लिए कहते हैं ताकि वे विश्व के मित्र बन सकें।
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