विधायक समेत दो की तीन-तीन महीने की सजा बरकरार
लहेरियासराय में विशेष न्यायाधीश ने भाजपा विधायक मिश्रीलाल यादव और अन्य अभियुक्तों की पुनर्विचार याचिका पर सुनवाई की। 21 फरवरी को दिए गए आदेश को बरकरार रखते हुए, विधायक को आंशिक दोषी करार दिया गया।...

लहेरियासराय। एमएलए-एमपी कोर्ट के विशेष न्यायाधीश सह तृतीय अपर सत्र न्यायाधीश ने शुक्रवार को अलीनगर से भाजपा विधायक मिश्रीलाल यादव समेत दो अभियुक्तों की पुनर्विचार याचिका पर दोनों पक्षों की ओर से सुनवाई के बाद अधीनस्थ न्यायालय की ओर से गत 21 फरवरी को पारित आदेश को बरकरार रखने का आदेश दिया है। साथ ही कोर्ट ने मामले के सूचक उमेश मिश्र की ओर से दायर पुनर्विचार याचिका की सुनवाई के बाद धारा 506 के तहत आंशिक दोषी करार दिया है। इसकी अगली सुनवाई व निर्णय के लिए आगामी 27 मई की तारीख निर्धारित की गई है। बता दें कि इस मामले में उक्त न्यायालय में दोनों पक्षों की ओर से दायर पुनर्विचार याचिका पर गत 22 मई को सुनवाई हुई थी।
इसमें न्यायालय ने विधायक श्री यादव व सुरेश यादव को न्यायिक हिरासत में भेजने का आदेश दिया था तथा निर्णय के लिए शुक्रवार की तिथि निर्धारित की थी। गौरतलब है कि विधायक मिश्रीलाल यादव के विरुद्ध मामले के सूचक केवटी थाने के समैला निवासी उमेश मिश्र ने कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दायर की थी। इसमें उन्होंने कहा था कि एमपी-एमएलए कोर्ट के तत्कालीन विशेष न्यायाधीश करुणानिधि प्रसाद आर्य के न्यायालय में अभियोजन पक्ष की ओर से सूचक व अन्य गवाहों ने अपनी गवाही में धमकी देने की बात कही थी, पर दफा 506 के तहत अभियुक्तों को दोषी करार नहीं दिया गया। इसलिए इस पुनर्विचार याचिका पर सुनवाई कर अभियुक्तों के विरुद्ध उचित आदेश पारित किया जाए। अपीलीय न्यायालय तृतीय जिला अपर सत्र न्यायाधीश ने शुक्रवार को दोनों पक्षों की ओर से सुनवाई के बाद अभियुक्तों को आंशिक दोषी पाते हुए अगली सुनवाई व निर्णय के लिए 27 मई की तिथि निर्धारित की है। इसके बाद दोनों अभियुक्तों को पुन: न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया। मालूम हो कि कोर्ट ने मारपीट के छह साल पुराने इस मामले में गत 21 फरवरी को दोनों को धारा 323 के तहत तीन-तीन माह कैद और पांच-पांच सौ रुपये अर्थदंड की सजा सुनाई थी। इस पर पुनर्विचार याचिका दायर की गई थी। कोर्ट ने इस याचिका पर सुनवाई के बाद दोनों अभियुक्तों को अधीनस्थ न्यायालय की ओर से सुनायी गयी तीन-तीन महीने कैद की सजा को बरकरार रखा है।
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