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पूर्व की तरह छुट्टी व पोर्टल में संशोधन मांगे उर्दू शिक्षक

दरभंगा में उर्दू भाषा का विकास हुआ है, लेकिन अब नई पीढ़ी में इसे सीखने की रुचि कम हो रही है। अभिभावक अपने बच्चों को अंग्रेजी माध्यम से पढ़ाने को प्राथमिकता दे रहे हैं। उर्दू शिक्षकों की छुट्टियों में...

Newswrap हिन्दुस्तान, दरभंगाSun, 23 March 2025 12:33 AM
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पूर्व की तरह छुट्टी व पोर्टल में संशोधन मांगे उर्दू शिक्षक

सूबे की दूसरी सरकारी भाषा उर्दू दरभंगा की गंगा-जमुनी आबोहवा में खूब फली-फूली है। मैथिली व हिन्दी के साथ उर्दू का भरपूर विकास हुआ है। शायद यही वजह है कि आज भी जिले के कई उर्दू विद्वानों का नाम लोग अदब से लेते हैं। इसके बावजूद जिले के उर्दू शिक्षक उर्दू भाषा के भविष्य को लेकर चिंतित हैं। उर्दू शिक्षकों की मानें तो नई पीढ़ी में इसे सीखने की दिलचस्पी कम हो गई है। इस कारण विद्यालयों में उर्दू पढ़ने वाले बच्चों की संख्या कम हो रही है। अंग्रेजी शिक्षा का असर : शिक्षक इस स्थिति के लिए अभिभावकों को जिम्मेदार बताते हैं। वे बताते हैं कि अभिभावक बच्चों को सरकारी स्कूलों व मदरसों में उर्दू सीखने के बजाय पब्लिक स्कूलों में अंग्रेजी माध्यम से पढ़ाते हैं। इसके चलते उर्दूभाषी छात्रों की तादात काफी कम हो गई है। शिक्षक शमशाद अली बताते हैं कि बिहार सरकार की नई बहाली के बाद विद्यालयों में उर्दूभाषी शिक्षकों की संख्या बढ़ी है, पर बच्चे गायब हैं। इस स्थिति से उर्दू शिक्षकों में निराशा का माहौल है। इनकी मानें तो उर्दू भाषा सीखने-पढ़ने वाले बच्चे घट रहे हंै। इसके चलते कई विद्यालयों में उर्दू शिक्षकों को पढ़ाने का व्यापक मौका नहीं मिल रहा है। एकाध घंटी पढ़ाने के बाद उर्दूभाषी शिक्षक शिक्षा विभाग के दूसरे कार्यों को विवश होकर संपादित करते हैं। उन्होंने बताया कि फिल्मी गीतों, शेर-शायरियों और सोशल मीडिया पर उर्दू के शब्दों का खूब इस्तेमाल होता है, पर सामान्य बोलचाल से उर्दू गायब हो गई। उर्दू पढ़ने-लिखने वाले अभिभावक बच्चों के अंग्रेजी सीखने पर बल देते हैं। इसका असर सरकारी विद्यालयों पर दिख रहा है। उन्होंने बताया कि यही स्थिति रही तो एक-डेढ़ दशक में उर्दू विद्वानों या जानकारों की किल्लत हो जाएगी।

कम हुई उर्दू शिक्षकों की छुट्टियां: उर्दू शिक्षक सरकारी छुट्टियों में कटौती से भी परेशान और आक्रोशित हैं। शिक्षकों की मानें तो पहले उर्दू शिक्षकों के लिए अलग से अवकाश कैलेंडर जारी होता था। उसमें उर्दूभाषी मुस्लिम समुदाय के पर्व-त्योहारों के मुताबिक छुट्टियां होती थीं। इस वर्ष शिक्षा विभाग ने एकीकृत छुट्टी कैलेंडर प्रकाशित किया है। इससे उर्दू शिक्षकों की छुट्टियां कम गई और उन्हें पर्व-त्योहारों पर भी ड्यूटी करनी पड़ती है। शिक्षिका रजिया खातून, मो. मकसूद आलम, मो. आरिफ आदि बताते हैं कि ईद-बकरीद जैसे महत्वपूर्ण त्योहारों पर पिछले वर्ष भी तीन दिनों की छुट्टी मिली, फिर भी नए कैलेंडर में दोनों त्योहारों के लिए एक दिन की छुट्टी निर्धारित है। उन्होंने कहा कि इससे पहले तीन दिनों की छुट्टी थी जो एक दिन की हो गई है। उन्होंने बताया कि उर्दू शिक्षकों की छुट्टी में कटौती का सिलसिला पिछले साल से शुरू हुआ और आठ छुट्टी समाप्त हो गई। इसके बाद 2025 के एकीकृत कैलेंडर में भी छुट्टी घटी हुई है।

शिक्षकों ने बताया कि इसी तरह से शिक्षा विभाग ने डिजिटल हाजिरी के लिए जो ई-शिक्षा कोष एप बनाया है, उसमें उर्दू शिक्षकों का साप्ताहिक अवकाश शुक्रवार दर्ज नहीं है। इससे उर्दू शिक्षक परेशानी झेल रहे हैं। उन्होंने बताया कि उर्दू विद्यालय रविवार को खुले रहते हैं और शुक्रवार को बंद। इस वजह से उर्दू शिक्षक शुक्रवार को हाजिरी नहीं बनाते हैं। एप में सिर्फ सामान्य विद्यालयों की रविवार छुट्टी दर्ज है। इस कारण एप शुक्रवार को उर्दू शिक्षकों को अनुपस्थित बता देता है। साथ ही रविवार को उर्दू शिक्षक डिजिटल उपस्थिति भी दर्ज नहीं करा पा रहे हैं। उन्होंने बताया कि अभी हाल ही में शिक्षा विभाग ने बक्सर जिले में उर्दू शिक्षकों को इसी कारण अनुपस्थित रहने पर कारण बताओ नोटिस जारी कर दिया है। इससे जिले के उर्दू शिक्षकों में भी भय का माहौल है। शिक्षा विभाग को अविलंब इस कमी को दूर करना चाहिए। आयशा परवीन कहती है कि उर्दू उनकी मातृभाषा है। फिर अभिभावक अंग्रेजी भाषा से अपने बच्चों को शिक्षित कर रहे हैं। कहकशां कहती हैं कि उर्दू को रोजगार से जोड़ा जाए, तभी छात्रों की संख्या बढ़ेगी।बता दें कि जिले में उर्दू विद्यालयों की संख्या 250 है, जबकि सौ के करीब मदरसे संचालित हैं। सभी कोटि के उर्दू शिक्षकों की संख्या 2813 है। वहीं, ट्रेंड उर्दू शिक्षकों के अभाव की वजह से सैकड़ों पद रिक्त पड़े हैं।

उर्दू भाषा नहीं, लिपि के जानकारों की हुई कमी

जिले में उर्दूभाषियों की घटती तादाद से उर्दू विद्वान इनकार करते हैं। साहित्यकार व सीएम कॉलेज के प्राचार्य डॉ. मुश्ताक अहमद बताते हैं कि आधुनिक दौर में उर्दू भाषा का तेजी से विकास हुआ है, पर इसकी लिपि जानने वालों की संख्या कम गई है। इसका कारण लोगों की अंग्रेजी व अन्य भाषाओं में बढ़ती दिलचस्पी है। अधिकतर लोग बच्चों को डॉक्टर, इंजीनियर आदि बनाना चाहते हैं। इसके कारण उर्दू पढ़ने वाले छात्र कम हो गए हैं। उन्होंने बताया कि उर्दू भाषा की नस्तालिक लिपि का ज्ञान बेहद जरूरी है। यह फारसी-अरबी लिपि का एक रूप है, जिसे दाएं से बाएं लिखा जाता है। इसकी जानकारी के बिना उर्दू का पूर्ण ज्ञान नहीं हो सकता है। उन्होंने बताया कि अभिभावक बच्चों को आधुनिक जरूरतों के हिसाब से शिक्षा दिलाएं, पर उर्दू भी सिखाएं। इससे पब्लिक स्कूल में पढ़ने वाले बच्चों के अभिभावकों को होम ट्यूशन से उर्दू सिखाने की पहल करनी होगी। उन्होंने बताया कि उर्दू भाषा आधुनिक दौर में रोजगार प्राप्ति का सहज जरिया है। उर्दू से उच्च शिक्षा हासिल करने पर लोग शिक्षक और प्रोफेसर जैसे प्रतिष्ठित पद को प्राप्त कर सकते हैं। अभिभावक बच्चों को उर्दू पढ़ने-लिखने के लिए प्रेरित करें।

बोले जिम्मेदार

उर्दू शिक्षकों की छुट्टी में कटौती और एप की दिक्कतें ऊपर से हैं। इसमें सुधार राज्य सरकार के स्तर से होगा। इसमें जिला स्तर पर कुछ नहीं हो सकता है।

- कृष्णनंद सदा, जिला शिक्षा अधिकारी

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