जाति जनगणना की पहली परीक्षा बिहार में, विधानसभा चुनाव में नीतीश और बीजेपी को होगा फायदा?
केंद्र सरकार के जाति जनगणना कराने के फैसले की पहली परीक्षा बिहार में होगी। राज्य में इस साल होने वाले विधासनभा चुनाव में एनडीए और महागठबंधन में किसको इसका फायदा पहुंचेगा, यह देखना दिलचस्प होगा।

केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार के देश भर में जाति जनगणना कराने के फैसले से बिहार का सियासी पारा गर्माया हुआ है। बिहार में इस साल अक्टूबर-नवंबर में विधानसभा चुनाव होने हैं। इससे पहले सत्ताधारी और विपक्षी दलों के नेताओं में जाति जनगणना का श्रेय लूटने की होड़ मच गई है। मोदी सरकार की जाति जनगणना के फैसले की पहली परीक्षा बिहार में होगी। आगामी विधानसभा चुनाव में इसका जनता के बीच क्या असर रहेगा, मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की पार्टी जनता दल यूनाइटेड (जेडीयू) और सहयोगी भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) को इसका फायदा मिलेगा या नहीं, यह इलेक्शन रिजल्ट आने के बाद साफ होगा।
जाति जनगणना बिहार के नेताओं के लिए लंबे समय से मुद्दा रहा है। अगस्त 2021 में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नेतृत्व में बीजेपी, जेडीयू, आरजेडी, लेफ्ट पार्टियां, हम, लोजपा, वीआईपी सभी पार्टियों के नेता का एक सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात की थी। सभी ने जनगणना के साथ जाति गणना कराने की मांग की थी।
हालांकि, जब केंद्र सरकार ने उसमें रुचि नहीं दिखाई तो बिहार की नीतीश सरकार ने अपने स्तर पर जाति आधारित सर्वे कराने का फैसला लिया। अक्टूबर 2023 में जब जातिगत सर्वे के आंकड़े सामने आए तो तत्कालीन महागठबंधन सरकार ने ओबीसी, ईबीसी और एससी-एसटी के आरक्षण की सीमा को 50 प्रतिशत से बढ़ाकर 65 फीसदी कराने के प्रस्ताव विधानसभा से पारित कराया गया। इसके अलावा ईडब्ल्यूएस के लिए 10 प्रतिशत कोटा अलग से रखा गया।
जून 2024 में पटना हाई कोर्ट ने नीतीश सरकार द्वारा आरक्षण सीमा को बढ़ाने के फैसले पर रोक लगा दी। अदालत ने इस फैसले को गैर संवैधानिक करार दिया। इसके बाद बिहार सरकार ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया और पटना हाई कोर्ट के आदेश को चुनौती दी। हालांकि, सरकार को शीर्ष अदालत से भी राहत नहीं मिली। सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के आदेश पर स्टे लगाने से इनकार कर दिया।
अब केंद्र सरकार ने देशभर में जनगणना के साथ-साथ जातियों की गिनती करने की घोषणा की है। विशेषज्ञों का मानना है कि इस साल के अंत में होने वाले बिहार विधानसभा चुनाव में केंद्र के इस फैसले का क्या प्रभाव होगा, यह देखना दिलचस्प होगा। क्योंकि सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों ही जाति जनगणना के मुद्दे का फायदा उठाने की कोशिश करेंगे। इसकी शुरुआत क्रेडिट वॉर के जरिए हो चुकी है।
एएन सिन्हा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल स्टडीज के पूर्व निदेशक डीएम दिवाकर ने कहा कि बिहार में जातिगत जनगणना का मुद्दा खूब छाया रहेगा। क्योंकि बिहार से ही देश भर में जाति ज नगणना कराने की मांग उठी। हालांकि, तथ्य यह भी है कि एनडीए सरकार के कार्यकाल में ही जातियों की गिनती कराने का फैसला हो पाया।
उन्होंने कहा कि आरजेडी जाति जनगणना पर बीजेपी के अस्पष्ट रुख के बावजूद इसे पिछले लोकसभा चुनाव में भुना नहीं पाई थी। मगर अब केंद्र सरकार ने जाति जनगणना कराने का फैसला कर दिया है तो आगामी विधानसभा चुनाव में इसका व्यापक असर देखने को मिलेगा। पहलगाम आतंकी हमले के बाद बदले माहौल, सुप्रीम कोर्ट के आरक्षण पर सख्त रवैये और बीजेपी के लिए चुनौती बने बिहार के बदलते समीकरणों के बीच जाति जनगणना के फैसले ने नई सोशल इंजीनियरिंग में योगदान दिया है।
दिवाकर ने कहा कि जाति जनगणना का फैसला एनडीए के लिए कुछ हद तक फायदेमंद हो सकता है। नीतीश कुमार की इसमें भूमिका महत्वपूर्ण रही है, जेडीयू को आगामी चुनाव में मजबूती मिल सकती है। हालांकि, आरजेडी और कांग्रेस भी इसका श्रेय अपने नेताओं को दे रही है। इससे बीजेपी पर कितना प्रभाव पड़ेगा, इसका नतीजों के बाद ही पता चल पाएगा।
टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंस के प्रोपेसर रहे पुष्पेंद्र का कहना है कि बिहार चुनाव में एनडीए को जाति जनगणना का कुछ खास लाभ नहीं होने वाला है। क्योंकि राज्य में पहले ही जाति आधारित सर्वे हो चुका है। जाति जनगणना की अभी घोषणा ही हुई है, सर्वे नहीं किया गया है। ऐसे में विपक्ष पूछेगा कि इस गणना के बाद पिछड़ों को क्या सामाजिक और आर्थिक लाभ मिलेगा।
सामाजिक विश्लेषक एनके चौधरी ने कहा कि बीजेपी का यह निर्णय लगातार बदल रही परिस्थिति और राजनीतिक माहौल के बीच आया है। इससे अगले एक दशक तक दूरगामी परिणाम देखने को मिल सकते हैं। जाति गणना ने लोकसभा चुनाव 2024 में विपक्ष को कुछ खास फायदा नहीं पहुंचाया, ऐसे में अब केंद्र सरकार का हालिया फैसला बिहार विधानसभा चुनाव में ज्यादा प्रभाव नहीं डाल पाएगा।