गर्मी के कारण सुराही और घड़ा का बढ़ा मांग
गर्मी के कारण सुराही और घड़ा का बढ़ा मांग

लखीसराय, एक प्रतिनिधि। भीषण गर्मी के मौसम में जहां एक ओर विद्युत आपूर्ति की समस्या बनी हुई है, वहीं दूसरी ओर लोग एक बार फिर परंपरागत और प्राकृतिक विकल्पों की ओर लौटते दिख रहे हैं। फ्रिज के जमाने में भी मिट्टी से बनी सुराही, घड़ा और मटके की मांग में ज़बरदस्त बढ़ोतरी देखी जा रही है। स्थानीय हाट-बाजारों में रोजाना बड़ी संख्या में मिट्टी के बर्तन बिक्री के लिए पहुंच रहे हैं, जिन्हें लोग उत्साह के साथ खरीद भी रहे हैं। लोग जमकर सुराही, घड़ा, मटका आदि की खरीदारी कर रहे हैं। विशेषज्ञों के अनुसार, मिट्टी के बर्तन इको फ्रेंडली होते हैं और इनमें रखे खाद्य पदार्थों की गुणवत्ता लंबे समय तक बनी रहती है। गर्मियों में इन बर्तनों में रखा पानी प्राकृतिक रूप से ठंडा रहता है और स्वास्थ्य के लिए भी लाभकारी माना जाता है। स्थानीय हाट में सुराही, जिसमें नल भी लगा होता है, 250 रुपये में बिक रही है जबकि घड़े की कीमत 120 रुपये प्रति पीस तक है। वहीं सुराही 150 रूपए में मिल रहा है। नप के द्वारा भी जितने जगह पियाउ लगाए गए वहां नल वाला घरा लगा दिया गया जिसमें धूप रहने के बाद भी ठंडा पानी लोग पी रहे है। विद्युत कटौती के चलते मध्यमवर्गीय परिवारों के लिए मिट्टी से बने ये देसी फ्रिज घड़ा और सुराही ही सबसे बड़ा सहारा बनकर उभरे हैं। जगह-जगह बर्तन विक्रेताओं द्वारा दुकान लगाकर सुराही और घड़े की बिक्री की जा रही है। मिट्टी के बर्तन विक्रेता कृष्णनंदन पंडित, रंजीत पंडति, मुकेश पंडित, राजकुमार पंडित बताते हैं कि गर्मी बढ़ने के साथ ही घड़ा और सुराही की बिक्री में काफी तेजी आई है। लोग एक साथ दो-तीन घड़े और सुराही खरीदकर ले जा रहे हैं। इस बार सुराही की डिमांड ज्यादा है क्योंकि यह न सिर्फ आकर्षक है बल्कि उपयोग में भी सुविधाजनक है। जिस कारण घडा व सुराही बनाने का कार्य किया जा रहा है। उम्मीद से ज्यादा इस बार घडा की बिक्रेी हो रही है। उन्होंने कहा मिट्टी के बर्तन की कीमतों में भी वृद्धि देखी जा रही है। कुछ वर्ष पहले तक जहां मिट्टी सस्ते में और आसानी से उपलब्ध हो जाती थी, अब बढ़ती आबादी और शहरीकरण के कारण अच्छी मिट्टी मिलना मुश्किल हो गया है। पहले जहां दो से ढाई हजार रुपये में एक ट्रैक्टर मिट्टी मिल जाती थी, अब इसकी कीमत तीन हजार रुपये से अधिक हो गई है। इस कारण बर्तनों की लागत भी बढ़ गई है और इसका असर सीधे बाजार मूल्य पर पड़ा है। बावजूद इसके, लोगों में इन पारंपरिक बर्तनों के प्रति रुझान कम नहीं हुआ है। बाजार में मिलने वाली कच्ची बर्फ या फ्रिज के पानी की तुलना में घड़ा-सुराही का पानी स्वास्थ्यवर्धक माना जाता है। जानकार बताते हैं कि कच्ची बर्फ व फ्रिज के अत्यधिक ठंडे पानी से सर्दी-जुकाम व बुखार की समस्या बढ़ रही है, जबकि सुराही का पानी प्राकृतिक रूप से ठंडा और शरीर के अनुकूल होता है। जैसे जैसे गर्मी बढ़ रही है, मिट्टी के बर्तनों की डिमांड और बिक्री में भी इजाफा हो रहा है। यह न केवल परंपरा और प्रकृति से जुड़ाव का प्रतीक है, बल्कि ग्रामीण कारीगरों की आजीविका को भी मजबूती प्रदान कर रहा है।
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