मानदेय बढ़ाना तो दूर, किसान सलाहकार को संविदाकर्मी भी नहीं मान रही सरकार
मुजफ्फरपुर के किसान सलाहकार चुनाव, जनगणना और पशुगणना जैसे कार्यों में लगे हुए हैं। चार घंटे की ड्यूटी को बढ़ाकर छह घंटे कर दिया गया है, लेकिन मानदेय नहीं बढ़ा। किसान सलाहकारों का कहना है कि उन्हें...
मुजफ्फरपुर। किसानों को सलाह देने के लिए बहाल किसान सलाहकारों को आज चुनाव, जनगणना से लेकर पशुगणना तक के काम करने पड़ रहे हैं। चार घंटे की ड्यूटी को छह घंटे कर दिया गया, लेकिन मानदेय नहीं बढ़ा। ऐसे में ये खुद को ठगा हुआ महसूस कर रहे हैं। किसान सलाहकारों का कहना है कि विभाग सेवा शर्तों की अनदेखी कर रहा है। संविदा पर बहाली की गई, लेकिन अब सरकार हमें संविदाकर्मी ही नहीं मान रही है। किसान सलाहकारों का कहना है कि एक ही विज्ञापन से एसएमएस (सब्जेक्ट मैटर स्पेशलिस्ट) को भी संविदा पर नियुक्त किया गया। एसएमएस की सेवा स्थायी कर उन्हें सभी सुविधाएं दी जा रही हैं, लेकिन हमलोगों का भविष्य अंधेरे में है। इतने अहम काम करते हुए विभागीय उपेक्षा का शिकार हैं। न तो मानदेय बढ़ रहा है और न समय पर इसका भुगतान हो रहा है। हमलोगों के सामने भुखमरी की नौबत है। सरकार को सार्थक पहल करनी चाहिए।
जिले की पंचायतों में वर्ष 2010 में किसान सलाहकार के पद पर लोगों की बहाली की गई। जिले में कुल 340 किसान सलाहकार कार्यरत हैं। इस पद पर ऐसे लोगों की नियुक्ति की गई, जो अपनी पंचायत के प्रगतिशील किसान थे और विज्ञान विषय के साथ इंटरमीडिएट तक की न्यूनतम शिक्षा पाई थी। इनका कहना है कि शुरू में हमलोगों का काम केवल किसानों को सलाह देना था। किसान भवनों में चार घंटे कृषि पाठशाला चलाते थे। बाद में सरकार हर वह काम कराने लगी, जो एक पूर्णकालिक सरकारी कर्मचारी करता है। इसके बावजूद सरकार हमलोगों को न तो संविदाकर्मी मान रही है और न स्थायी नियुक्ति की पहल कर रही है।
जिला किसान सलाहकार संघ के जिलाध्यक्ष सह प्रदेश संघ के महासचिव विमलेश कुमार का कहना है कि बहाली के समय सेवा शर्तों में कहा गया था कि उस समय के पूर्णकालिक कर्मचारी जनसेवक के पद पर नये नाम से बहाली की जा रही है, लेकिन यह नियुक्ति संविदा आधारित होगी और किसी भी तरह के अन्य सरकारी कार्य किसान सलाहकारों से नहीं लिए जाएंगे। यही शर्त एसएमएस (सब्जेक्ट मैटर स्पेशलिस्ट) के लिए भी रखी गई थी, क्योंकि एक ही विज्ञापन के आधार पर दोनों की बहाली की गई। एसएमएस की सेवा स्थायी कर सरकारी कर्मियों को दी जाने वाली हर सुविधा का लाभ दिया गया, लेकिन हमलोगों का मानदेय आज भी वही है। काम का घंटा बढ़ाकर चार की जगह छह घंटे कर दिया गया और दायरा बढ़ाकर चुनाव कार्य से लेकर जनगणना, पशुगणना, पेड़-पौधे की गणना के कार्य लिए जा रहे हैं। सेवा शर्तों के विपरीत गृह पंचायत में पदस्थापित नहीं कर दूर-दराज की पंचायतों में भेज दिया गया है। अधिकतर किसान सलाहकारों को औसतन 150 किमी दूरी प्रतिदिन तय करनी होती है। इसमें ही उनके मानदेय का अधिकतर हिस्सा खर्च हो जाता है, जबकि काम सातों दिन चौबीस घंटे का लिया जा रहा है।
15 साल में महज हजार रुपए बढ़े :
किसान सलाहकार संघ जिला इकाई की कार्यसमिति के सदस्य सत्येन्द्र कुमार, रोहन कुमार, कामता प्रसाद सिंह ने बताया कि 15 साल की नौकरी में महज एक बार 2021 में एक हजार रुपये मानदेय में बढ़ोतरी की गई। वहीं, 2023 से ईपीएफ की कटौती शुरू की गई है। इससे अब कटौती के बाद टेक होम मानदेय महज 11.4 हजार रुपये ही रह गया है। ऐसे में बच्चों को बेहतर शिक्षा देना तो दूर पेट पालना मुश्किल हो रहा है।
ईपीएफ कटौती के बावजूद प्रगतिशील किसान बता रहे :
संतोष कुमार, दीपक कुमार, प्रकाश कुमार ने बताया कि स्थायीकरण की मांग को लेकर कई बार आंदोलन के बाद विभाग की बनाई एक कमेटी ने जनसेवक की सेवाशर्तों में संशोधन कर स्थायी नियुक्ति की अनुशंसा भी की थी, लेकिन विभाग के वरीय अधिकारियों ने प्रगतिशील किसान होने का हवाला देते हुए ऐसा करने में कठिनाई बताई और प्रस्ताव को खारिज कर दिया। हमलोग अधिकारियों से पूछना चाहते हैं कि ईपीएफ कटौती के बावजूद सरकार हमें संविदाकर्मी न मानकर प्रगतिशील किसान कैसे बता रही है। सरकार कमेटी की सिफारिश लागू करे। पांच अंक प्रतिवर्ष के हिसाब से वेटेज देकर जनसेवक पद पर समायोजित करे।
बोला संगठन :
अब निर्णायक आंदोलन का वक्त
वर्तमान मुख्य सचिव पहले कृषि विभाग के प्रधान सचिव थे। तब उनके आदेश पर किसान सलाहकारों की नौकरी स्थायी की जाने की संभावना तलाशने के लिए एक कमेटी गठित की गई थी। इस कमेटी ने किसान सलाहकारों को संविदाकर्मी मानते हुए जनसेवक के पद पर बहाली की जाने की सिफारिश की थी। साथ ही मानदेय में भी सुधार को कहा था। इस सिफारिश के तीन साल हो गए, लेकिन सरकार और विभाग ने इस दिशा में सार्थक पहल नहीं की। 58 दिन के आंदोलन का कोई असर नहीं हुआ। अब निर्णायक आंदोलन का वक्त आ गया है।
-विमलेश कुमार, प्रदेश महासचिव, बिहार प्रदेश किसान सलाहकार संघ
मार्च से ही मानदेय भुगतान लटका
15 साल पहले राज्य सरकार द्वारा निर्धारित सभी नियमों और रोस्टर का पालन करते हुए किसान सलाहकारों को नियुक्त किया गया। अब सरकार द्वारा न तो सरकारी कर्मी और न ही संविदाकर्मी मानना हास्यास्पद है। दूसरी बात मानदेय को लेकर है। इसका भुगतान तभी होता है, जब किसानों के लिए चयनित योजनाओं की सरकार के स्तर से स्वीकृति मिलती है। स्वीकृति मिलने में महीनों लग जाते हैं, तब तक सलाहकारों के मानदेय पर संकट के बादल मंडराते रहते हैं। इस साल भी मार्च से ही मानदेय का भुगतान लटका है।
-सत्येन्द्र कुमार, कार्यसमिति सदस्य जिला किसान सलाहकार संघ
बोले जिम्मेदार :
किसान सलाहकारों के मानदेय भुगतान का किसानों के लिए योजना चयन और उसके लिए फंड की स्वीकृति से कोई लेनादेना नहीं है। उनके मानदेय के लिए अलग से फंड की स्वीकृति विभागीय स्तर से दी जाती है। चूंकि अभी नया वित्तीय वर्ष शुरू हो रहा है, इस कारण थोड़ी देरी हुई है। अगले महीने से नियमित तौर पर भुगतान होगा। हालांकि उनको कम मानदेय मिल रहा है। ऐसे में घर चलाना थोड़ा कठिन है। इसमें वृद्धि होनी चाहिए, ताकि वे भी सम्मानजनक जिंदगी जी सकें। इसके लिए विभाग के वरीय अधिकारी प्रयास कर रहे हैं।
-सुधीर कुमार, संयुक्त कृषि निदेशक, तिरहुत
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