सुजनी व टिकुली कला पर असर, पापड़ का जायका बिगाड़ सकता है ट्रंप टैरिफ
मुजफ्फरपुर की हस्तकला और पापड़ अमेरिका में लोकप्रिय हो रहे हैं, लेकिन वहां टैरिफ बढ़ने से महिलाओं की चिंता बढ़ गई है। इससे उत्पादन और रोजगार पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है। उद्यमियों का कहना है कि...
मुजफ्फरपुर। लहठी, लीची और शहद के अलावा हस्तकला और चटपटे पापड़ भी विदेशों में मुजफ्फरपुर की पहचान बन रहे हैं। यहां की सुजनी और टिकुली कला से बनी चीजों की मांग अमेरिकी बाजारों में बढ़ रही है। जिले की दो हजार से अधिक महिलाएं इसके निर्माण से जुड़ी हैं। बड़ी संख्या में पापड़ उद्योग से भी महिलाएं जुड़ी हैं। अमेरिका की ओर से टैरिफ बढ़ाए जाने से इनके निर्माण और व्यापार से जुड़े महिला-पुरुषों की चिंता बढ़ गई है। इनकी आशंका है कि अमेरिकी बाजार में इन चीजों के दाम बढ़ने से मांग घट सकती है। उत्पादन से लेकर रोजगार तक प्रभावित होने का अंदेशा है। सुजनी समेत मुजफ्फरपुर में निर्मित होने वाली हस्तकला सामग्री अमेरिका में भी मंगाई जाती है। ये सामान उद्यमी खुद नहीं भेजते, बल्कि थर्ड पार्टी के माध्यम से अमेरिका भेजे जाते हैं। उद्यमियों का कहना है कि अब तक टैरिफ कम था तो हमें कम लागत में भी मुनाफा मिल जाता था, मगर चीजें बाहर भेजने में महंगी होंगी तो जाहिर सी बात है कि हमारा मुनाफा भी कम होगा। जिले में सैकड़ों छोटे-बड़े उद्योग हैं, जिनसे हजारों महिला-पुरुष कर्मचारी प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से जुड़े हैं। इनका कहना कि निर्यात घटने के साथ ही उत्पादन में भी कमी आ सकती है।
उद्यमी रेखा का कहना है कि जो लघु उद्यमी थर्ड पार्टी के जरिए उत्पादों को अमेरिका भेजते हैं, उनका उद्योग चल पाना कठिन हो जाएगा। इससे बड़ी संख्या में कर्मचारी और कारीगर बेरोजगार हो सकते हैं। ट्रैरिफ शुल्क का उद्यमी विरोध करते हैं। सरकार को इसका हल निकालना चाहिए। अगर ऐसा नहीं हुआ तो कई उद्योग बंद भी हो सकते हैं। ऐसे उद्यमियों के सामने इस टैरिफ से व्यापार का संकट खड़ा हो जाएगा।
जिले में बनाया हुआ पापड़ भी अमेरिका के स्टोर में :
जिले में बनाया हुआ पापड़ भी अमेरिका के स्टोर में मिलता है। पापड़ के कारोबार से दशकों से सैकड़ों महिलाएं जुड़ी हैं। खास बात यह है कि इस व्यवसाय की सभी तरह की चीजें महिलाएं ही संभाल रही हैं। टैरिफ बढ़ने से इन सारी चीजों पर असर पड़ेगा। व्यवसायी कहते हैं कि केंद्र सरकार इस पर ध्यान देकर उद्यमियों और कर्मचारियों की परेशानियों को देखते हुए टैरिफ का शुल्क कम कराए। आयात और निर्यात पर शुल्क बढ़ाकर अमेरिका ने अपने देश के कारोबार को मजबूती देने का काम किया है, मगर इससे हमारे यहां से जाने वाले उत्पाद के दाम काफी बढ़ जाएंगे। इससे वहां के लोग माल कम लेंगे।
रोजगार पर पड़ सकता है इसका असर :
राजीव केजरीवाल, वरुण अग्रवाल आदि व्यवसायियों का कहना है कि टैरिफ से भले ही सभी उद्योगों पर असर न पड़े, लेकिन अगर मंदी आती है तो इसका व्यापक असर सभी पर पड़ेगा। अब क्वालिटी आधारित सामान की डिमांड ज्यादा होगी। ऑर्डर घटेंगे तो उत्पादन में भी गिरावट आएगी। उत्पादन में गिरावट आती है तो जाहिर सी बात है कि हमारे यहां से जाने वाले सामान ही नहीं, बल्कि यहां काम करने वाले उद्यमी से लेकर कर्मचारियों के रोजगार पर भी असर पड़ेगा। हालांकि इन लोगों का यह भी कहना है कि भारत पर चीन से कम टैरिफ है। ऐसे में हल्की राहत तो मिली है, लेकिन भारत सरकार को इसका हल निकालना ही होगा। पुरुषोत्तम पोद्दार, मोती लाल छापड़िया आदि का भी कहना है कि अमेरिका द्वारा टैरिफ बढ़ाने से भारतीय बाजार और रोजगार पर नकारात्मक प्रभाव पड़ने की संभावना है। वहां भारतीय वस्तुओं की कीमतों में वृद्धि होगी तो निर्यात में कमी आ सकती है। इससे कुछ उद्योगों और नौकरियों पर भी असर पड़ने की आशंका है। निर्यातकों को अधिक लागत का सामना करना पड़ सकता है।
प्रवासियों की चिंता :
टैरिफ में वृद्धि से महंगे हो जाएंगे भारतीय सामान :
अमेरिका के जॉर्जिया में रह रहे भइर्द निवासी मनोज कुमार के पुत्र प्रशांत कुमार होटल व्यवसाय से जुड़े हैं। उन्होंने फोन पर बताया कि अमेरिका के हर प्रमुख स्टोर में भारतीय वस्तुएं धड़ल्ले से मिलती हैं। हमारे बिहार का मखाना, शहद से लेकर चटपटे पापड़ तक यहां बिकते हैं। टैरिफ में वृद्धि से ये सामान अब अधिक महंगे हो जाएंगे। अमेरिका में ही ये वस्तुएं महंगी नहीं होंगी, बल्कि जो थर्ड पार्टी इस व्यवसाय से जुड़ी है, वह अब कम मुनाफे पर इन सामानों को बनाने वाले लोगों से लेंगे। ऐसे में जो इसे बनाने में सीधे तौर पर जुड़े हैं, उनका मुनाफा कहीं न कहीं कम हो जाएगा। प्रशांत कहते हैं कि कई ऐसे देश हैं, जो पहले से ही सस्ती दरों पर भारत की अपेक्षा सामान उपलब्ध कराते रहे हैं। भारत से आने वाले सामान क्वालिटी को लेकर हमेशा से आगे रहते हैं। ऐसे में अब उन्हें भी गुणवत्ता सहित कई प्रतिस्पर्धाओं का सामना करना पड़ेगा। अन्य देशों में विकल्प तलाशने से इस नुकसान की भरपाई संभव है।
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