इतवार को डॉक्टर नहीं, बेड की जगह जमीन पर इलाज
मुजफ्फरपुर के एसकेएमसीएच में इमरजेंसी वार्ड में मरीजों को कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है। डॉक्टरों की अनुपस्थिति, बेड की कमी और आवश्यक सुविधाओं का अभाव है। मरीज दर्द में कराहते रहते हैं, लेकिन कोई...
मुजफ्फरपुर। उत्तर बिहार की आस माने जाने वाले एसकेएमसीएच में मरीज निराश और परिजन हताश हैं। इमरजेंसी में सातों दिन 24 घंटे इलाज के दावे का हाल यह है कि इतवार को डॉक्टर नहीं मिलते। भर्ती मरीजों ने बताया कि दर्द से कराहते रहते हैं, मगर कोई देखने वाला नहीं है। यहां सामान्य और सर्जिकल इमरजेंसी मिलाकर 70 बेड हैं, मगर 100 से अधिक मरीज हमेशा भर्ती रहते हैं। बेड के अभाव में जमीन पर लिटाकर गंभीर मरीजों का भी इलाज किया जाता है। हर दिन 30 से 40 मरीज जमीन पर लेटकर ही इलाज कराते हैं। कई बार मरीजों को स्लाइन की बोतल भी खुद ही पकड़नी पड़ती है।
एसकेएमसीएच की इमरजेंसी में हर दिन 150 से 200 मरीज इलाज के लिए भर्ती होते हैं। मरीजों को इमरजेंसी में भर्ती होने से लेकर इलाज में कई दुश्वारियों का सामना करना पड़ता है। आरोप लगाया कि कभी-कभी तीन-तीन दिन तक डॉक्टर नहीं देखते हैं। इमरजेंसी में जरूरी सुविधाओं का भी अभाव है। एसी नहीं है। पंखा भी कभी-कभी खराब हो जाता है। पानी की समुचित व्यवस्था नहीं होने से गर्मी में काफी परेशानी होती है। इमरजेंसी के एक बेड पर मरीज और उनके परिजन दोनों सोते हैं। हर रोज कई मरीजों को जमीन पर ही इलाज कराना पड़ता है। इमरजेंसी में भर्ती मरीजों के परिजनों का कहना है कि डॉक्टर और नर्स की सुस्ती से मरीज वार्ड में भी समय पर शिफ्ट नहीं किए जाते। वहीं मेडिकल के कर्मियों का कहना है कि वार्ड फुल होने के कारण मरीजों के शिफ्ट होने में समय लगता है। एसकेएमसीएच में पहले एक ही इमरजेंसी का भवन था, जबकि कुछ महीने पहले 20 बेड की सर्जिकल इमरजेंसी भी बनाई गई है। मरीजों ने कहा कि दो-दो इमरजेंसी होने के बाद भी दुश्वारियों में कमी नहीं आई है। जिन मरीजों का इलाज जमीन पर लिटाकर हो रहा है, उनका आरोप था कि सर्जिकल इमरजेंसी में जगह होने के बाद भी हमें वहां बेड नहीं दिया गया है।
जूनियर डॉक्टर के भरोसे इमरजेंसी :
भर्ती मरीजों ने बताया कि इमरजेंसी में जूनियर डॉक्टर ही आते हैं। सीनियर डॉक्टर एक ही बार देखते हैं। रात में भी जूनियर डॉक्टर ही इमरजेंसी में रहते हैं। देर रात अगर किसी मरीज की तबीयत गंभीर हो जाये तो कोई अनहोनी हो सकती है। इमरजेंसी में सीनियर डॉक्टर को भी अनिवार्य रूप से राउंड लगाना चाहिए, खासकर रात में इमरजेंसी में मौजूद रहना ही चाहिए। इमरजेंसी में भर्ती हरि किशोर सहनी ने कहा कि उन्हें रविवार को डॉक्टर ने नहीं देखा। कर्मियों से पूछने पर बताया गया कि रविवार को डॉक्टर नहीं आयेंगे। परिजनों का कहना है कि इमरजेंसी में इतवार को छुट्टी कैसे रह सकती है। इस दिन तो सिर्फ ओपीडी बंद रहती है। कई मरीजों ने बताया कि वे चार-पांच दिन से इमरजेंसी में भर्ती हैं, लेकिन वार्ड में शिफ्ट नहीं किया गया है। किसी से पूछने पर कोई बताता नहीं है। इमरजेंसी की पहली मंजिल पर भर्ती 75 वर्षीय बलगोबी राम ने बताया कि उनका पैर आग से झुलस गया है, लेकिन इमरजेंसी से बर्न वार्ड में नहीं भर्ती किया जा रहा है। चार दिन से यहां पड़े हैं। इलाज के नाम पर सिर्फ पट्टी बांध दी जाती है। बेड के अभाव में इमरजेंसी में हार्ट और किडनी के कई मरीज का भी जमीन पर ही इलाज हो रहा है, जबकि इन्हें सुपर स्पेशियलिटी ब्लॉक में भर्ती किया जाना है।
समस्याएं ये भी :
मरीज के परिजन को हाथ में पकड़े रहना पड़ता है स्लाइन :
मरीजों की शिकायत है कि एसकेएमसीएच में कई बार उनके परिजनों को ही हाथ में स्लाइन पकड़ना पड़ता है। नर्स नहीं मिलने के कारण मरीज के परिजन खुद ही स्लाइन लेकर खड़े रहते हैं। रविवार को अपने चार साल के बेटे आयुष का इलाज कराने आई अमिता देवी हाथ में स्लाइन की बोतल लेकर अस्पताल में भटकती रही। अमिता देवी ने बताया कि उसका बेटा पेड़ से गिर गया है। इमरजेंसी में इलाज के लिए ले गये तो हाथ में स्लाइन लगाकर बाहर जाने को कहा दिया। हमें बताया गया कि पेड़ के पास एक कमरा है, वहीं जाकर बैठ जाओ। हमलोग गायघाट से आये हैं। पेड़ के नीचे कौन-सा वार्ड है, उसे खोज रहे हैं। इधर, उसका चार साल का बच्चा दर्द से कराह रहा था। उसके पैर में सूजन भी बढ़ता जा रहा था। उसके साथ एक और रिश्तेदार था, लेकिन अनजान होने के कारण वह भी कुछ नहीं कर पा रहा था। इसी बीच एसकेएमसीएच में तैनात एक पुलिस कर्मी ने उसे फिर से इमरजेंसी में जाने को कहा। इसके बाद वह अपने बच्चे को गोद में लेकर फिर इमरजेंसी गई और वहां जमीन पर बच्चे को लेकर बैठ गई।
पर्चा कटाने के बाद मरीज की जांच के लिए भटकते हैं परिजन :
मरीजों के परिजनों ने कहा कि एसकेएमसीएच की इमरजेंसी में प्रवेश के साथ ही अफराफरी शुरू हो जाती है। पर्चा कटाने से लेकर स्ट्रेचर लेने तक कई चुनौतियों को पार करना पड़ता है। सबसे ज्यादा दिक्कत रात में होती है। रात में कई बार इमरजेंसी में डॉक्टर और मरीजों के बीच हंगामा हो चुका है। बताया कि पर्चा कटाने के बाद जांच के लिए मरीज को लेकर इधर-उधर भटकते रहते हैं। हमलोगों को कोई बताने वाला नहीं होता है कि मरीज को कहां लेकर जायें। मरीजों के परिजनों ने बताया कि अस्पताल में आने वाले दूसरे मरीज और सुरक्षा गार्ड से जांच और डॉक्टर का पता पूछते हैं। मरीजों के परिजनों का कहना है कि इमरजेंसी में पर्चा कटाने वाले काउंटर के पास ही एक हेल्प डेस्क स्थापित कर दि जाये, ताकि मरीजों को कोई परेशानी नहीं हो। सबसे ज्यादा परेशानी दूसरे जिले के ग्रामीण क्षेत्रों से आये मरीजों और उनके परिजनों को होती है। भागदौड़ में कभी-कभी मरीज की तबीयत काफी गंभीर हो जाती है। मरीजों के परिजनों का कहना है कि दूर-दराज से हमलोग बड़ी उम्मीद लेकर एसकेएमसीएच आते हैं, इसलिए व्यवस्था दुरुस्त रहनी चाहिए।
बोले जिम्मेदार :
इमरजेंसी वार्ड में जूनियर और सीनियर दोनों डॉक्टर ड्यूटी पर रहते हैं। रविवार को डॉक्टर क्यों नहीं आये, इसके बारे में जानकारी ली जायेगी। वैसे मरीजों के इलाज में किसी तरह की शिथिलता नहीं बरती जाती है। डॉक्टर पूरी तत्परता से मरीजों का इलाज करते हैं। एसकेएमसीएच में एक नई इमरजेंसी बनने वाली है। इससे सुविधा बढ़ेगी।
-डॉ. कुमारी विभा, अधीक्षक, एसकेएमसीएच
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