अडानी का 100 अरब डॉलर खर्च करने का नया प्लान, कहां से आएगा इतना पैसा
अडानी ग्रुप ने एक बहुत बड़ा ऐलान किया है। गौतम अडानी की कंपनी अगले छह सालों में करीब 100 अरब डॉलर (यानी लगभग 8.3 लाख करोड़ रुपए) खर्च करने की तैयारी कर रही है।

अडानी ग्रुप ने एक बहुत बड़ा ऐलान किया है। गौतम अडानी की कंपनी अगले छह सालों में करीब 100 अरब डॉलर (यानी लगभग 8.3 लाख करोड़ रुपए) खर्च करने की तैयारी कर रही है। ये पैसा नई फैक्ट्रियां, प्लांट्स और प्रोजेक्ट्स बनाने पर लगेगा। ग्रुप के मुख्य वित्तीय अधिकारी (CFO) जगशिंदर सिंह उर्फ रॉबी सिंह ने बताया कि यह भारत के किसी भी निजी समूह का अब तक का सबसे बड़ा निवेश प्लान है।
रॉबी सिंह ने एनडीटीवी प्रॉफिट से खास बातचीत में कहा, "ये पैसा दूसरी कंपनियां खरीदने में नहीं लगेगा। सारा पैसा जमीन पर नई चीजें बनाने (ग्रीनफील्ड प्रोजेक्ट्स) में लगेगा।"
कितना पैसा सालाना लगेगा?
पिछले साल अडानी ग्रुप ने करीब 1.1 से 1.2 लाख करोड़ रुपए खर्च किए थे। अब वो इस सालाना खर्च को बढ़ाकर 1.5 से 1.6 लाख करोड़ रुपए तक पहुंचाना चाहते हैं। इसके लिए ग्रुप अपने कर्मचारियों और ऑर्गनाइजेशन को भी बहुत बड़ा करेगा।
सेक्टर के हिसाब से पैसा कहां लगेगा?
1. एनर्जी बिजनेस: सबसे ज्यादा, यानी 83% से 85% पैसा बिजली के कारोबार में जाएगा।
2. कंस्ट्रक्शन मटीरियल : करीब 10% पैसा इस सेक्टर में लगेगा।
3. माइनिंग और मेटल : बाकी बचा 6% से 7% पैसा इस काम में लगेगा।
डानी
एनर्जी में पैसा कहां लगेगा?
एनर्जी के निवेश का ज्यादातर हिस्सा नवीकरणीय ऊर्जा (सोलर, विंड आदि) और एनर्जी स्टोरेज (बैटरी आदि) बढ़ाने में जाएगा। इस निवेश से ग्रुप की रिन्यूएबल एनर्जी क्षमता और स्टोरेज सात गुना बढ़ जाएगी!साथ ही, पारंपरिक (कोयले आदि से चलने वाले) बिजली प्लांट्स की क्षमता भी दोगुनी हो जाएगी। मार्च 2025 तक अडानी ग्रीन एनर्जी की क्षमता 14.2 गीगावॉट और अडानी पावर की 16.54 गीगावॉट थी।
इतना पैसा आएगा कहां से?
हर साल के 1.5-1.6 लाख करोड़ रुपए खर्च के लिए पैसे का इंतजाम ऐसे होगा। करीब 80,000 करोड़ रुपए: कंपनी के अपने कैश फ्लो (मुनाफे और अंदरूनी कमाई) से आएगा। करीब 15,000 करोड़ रुपए: सेटलमेंट पेमेंट्स (शायद पुराने डील्स से मिलने वाली रकम) से आएगा।
करीब 12,000-14,000 करोड़ रुपए: ग्रुप की EPC कंपनियों के मुनाफे (प्रोजेक्ट बनाने का काम करके कमाई) से आएगा। बाकी बचे 40,000-50,000 करोड़ रुपए: बाहर से लोन लेकर पूरे किए जाएंगे।
कर्ज का क्या होगा?
रॉबी सिंह ने बताया कि हर साल औसतन 24,000 करोड़ रुपए का पुराना कर्ज चुकाया जाएगा। इस हिसाब से हर साल सिर्फ करीब 25,000 करोड़ रुपए का नया नेट कर्ज (कुल कर्ज में बढ़ोतरी) ही होगा।
उन्होंने कहा, "हमारा कर्ज हमारी ग्रोथ के मुकाबले बहुत कम दर से बढ़ रहा है।" कर्ज लेने के स्रोत हर प्रोजेक्ट के हिसाब से अलग होंगे, लेकिन कुल मिलाकर 40% कर्ज भारतीय बैंकों से लिया जाएगा। 40% कर्ज अंतरराष्ट्रीय बैंकों और वित्तीय संस्थानों से आएगा। 20% कर्ज भारतीय पूंजी बाजार (बॉन्ड्स आदि जारी करके) से जुटाया जाएगा।
कर्ज पर कंट्रोल कैसे रखेंगे?
सिंह ने बताया कि 'नेट डेट टू ईबीटीडीए रेश्यो' (कुल कर्ज घटा नकदी का ऑपरेटिंग मुनाफे से अनुपात) 2.5 से 3 के बीच रहेगा, ये इस बात पर निर्भर करेगा कि निवेश का कौन सा चल रहा है। उन्होंने कहा, "हमारा सबसे ज्यादा निवेश (कैपेक्स पीक) साल 2028 के आसपास होगा।" इस पीक के बाद ये रेश्यो धीरे-धीरे घटकर 2.5 गुना से नीचे आ जाएगा। इसकी वजह ये है कि जो प्रोजेक्ट्स अभी और अगले साल बनेंगे, वो 2028 के बाद खुद पैसा कमाना शुरू कर देंगे और आगे के निवेश में मदद करेंगे।
क्या फायदा होगा?
इस पूरे 100 अरब डॉलर के निवेश के दौरान ग्रुप को करीब 16 अरब डॉलर (करीब 1.33 लाख करोड़ रुपए) का रिटर्न ऑन कैपिटल (निवेश पर वापसी) मिलने की उम्मीद है।
आखिरी मकसद क्या है?
1. कंपनी की ताकत बढ़ाना: ऑर्गनाइजेशन को बहुत बड़ा और मजबूत बनाना।
2. टेक्नोलॉजी में सुधार: नई और बेहतर तकनीक अपनाना।
3. वेंडर इकोसिस्टम बनाना: अपने सप्लायर्स और पार्टनर्स का नेटवर्क मजबूत करना और बढ़ाना।