यदि भारत और चीन साथ नहीं आए तो... सिंगापुर के टॉप एक्सपर्ट ने दी बड़ी चेतावनी
महबूबानी ने कहा कि भारत को चीन के साथ 1962 के सीमा युद्ध के बारे में डिटेल में पता है, लेकिन अधिकांश चीनी इससे अनजान हैं।

Kishore Mahbubani on India china relation: सिंगापुर के पूर्व राजनयिक और पब्लिक बुद्धिजीवी किशोर महबूबानी ने कहा है कि एशिया की भविष्य की स्थिरता इस बात पर निर्भर करती है कि भारत और चीन अपने जटिल संबंधों को कैसे संभालते हैं। एक कार्यक्रम में बोलते हुए महबूबानी ने कहा कि भारत को चीन के साथ 1962 के सीमा युद्ध के बारे में डिटेल में पता है, लेकिन अधिकांश चीनी इससे अनजान हैं। उन्होंने दोनों देशों के युवाओं से हाल के तनावों से परे देखने और क्षेत्र के शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व के लंबे इतिहास पर फोकस करने का भी आग्रह किया।
क्या है डिटेल
उन्होंने कहा, "चीन और भारत के बारे में सवालों का जवाब देना बहुत मुश्किल है क्योंकि मुझे नहीं पता कि आप में से कितने लोग यह जानते हैं लेकिन चीन और भारत के बीच संबंध वास्तव में काफी जटिल हैं। अधिकतर चीनी इस बात से अवगत नहीं हैं कि 1962 में चीन और भारत के बीच सीमा युद्ध हुआ था। अधिकतर भारतीय इस बात से अवगत हैं। इसलिए भारत में चीन को लेकर एक खास जुनून है लेकिन चीन में भारत को लेकर जुनून नहीं है। यह एक विषम संबंध है। लेकिन साथ ही, पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कहा है कि दुनिया इतनी बड़ी है कि चीन और भारत दोनों बढ़ सकते हैं। एशिया का भविष्य एक बड़े सवाल पर निर्भर करेगा - क्या चीन और भारत साथ-साथ रह सकते हैं? क्योंकि ये दो सबसे बड़े समाज हैं। चीन 1.4 बिलियन, भारत 1.3 बिलियन। 2050 तक भारत की आबादी और भी बड़ी हो जाएगी। इसलिए दो सबसे ज़्यादा आबादी वाले देश, चीन और भारत, साथ-साथ नहीं रहते हैं, तो एशिया मुश्किल में पड़ जाएगा।" बता दें कि महबूबानी 'क्या चीन जीता है?' समेत कई किताबें लिखी हैं।
वे आगे कहते हैं, " यह बहुत महत्वपूर्ण है कि भारत और चीन के युवा हाल के अशांत इतिहास से उबरने के लिए बहुत प्रयास करें और याद रखें कि पश्चिमी औपनिवेशिक शासन के दौर से पहले जब एशियाई देश एक-दूसरे के साथ रहते थे, तो चीन और भारत के बीच 2,000 साल तक शांति थी। चीन और भारत ने 2,000 साल तक कभी युद्ध नहीं लड़ा। इसलिए जब आप आगे देखते हैं तो वह लंबा इतिहास कहीं अधिक महत्वपूर्ण है और हमें पिछले 50 वर्षों में जो कुछ हुआ, उसके बारे में परेशान नहीं होना चाहिए।" महबूबानी ने कहा, "भारत में चीन को लेकर एक खास तरह का जुनून है, लेकिन हमें याद रखना चाहिए कि 2,000 वर्षों तक ये देश शांतिपूर्वक सह-अस्तित्व में रहे। यही वह विरासत है जिस पर हमें ध्यान केंद्रित करना चाहिए।" महबूबानी की यह टिप्पणी दो एशियाई दिग्गजों के बीच कूटनीतिक जुड़ाव को पुनर्जीवित करने के नए प्रयासों के बीच आई है। रूसी विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव ने हाल ही में कहा कि मास्को रूस-भारत-चीन (आरआईसी) वार्ता को फिर से शुरू करने का इच्छुक है, जो 2020 में गलवान झड़पों के बाद से रुकी हुई थी। लावरोव ने कहा कि "भारत और चीन के बीच सीमा पर स्थिति को कैसे आसान बनाया जाए, इस पर एक समझ बन गई है" और कहा कि "इस आरआईसी तिकड़ी को फिर से शुरू करने का समय आ गया है।"
2024 के ब्रिक्स शिखर सम्मेलन में प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी और राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच द्विपक्षीय बैठक सहित अस्थायी कूटनीतिक पिघलना के बावजूद - रणनीतिक विश्वास कम बना हुआ है। इसका एक प्रमुख कारण पाकिस्तान के साथ चीन की गहरी होती साझेदारी है।