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डेविड हेडली नहीं दिया, तो विकास यादव को किस मुंह से मांगेगा अमेरिका; US की शरण में कई आतंकी

  • अगर अमेरिका जोर देता है, तो भारत भी पलटकर अमेरिका से डेविड कोलमैन हेडली उर्फ ​​दाऊद सईद गिलानी को 2008 के मुंबई आतंकवादी हमलों में उसकी भूमिका के लिए प्रत्यर्पित करने के लिए कह सकता है।

Amit Kumar लाइव हिन्दुस्तान, नई दिल्लीSat, 19 Oct 2024 03:23 PM
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डेविड हेडली नहीं दिया, तो विकास यादव को किस मुंह से मांगेगा अमेरिका; US की शरण में कई आतंकी

अमेरिका ने भारत सरकार के एक पूर्व अधिकारी विकास यादव पर सिख अलगाववादी गुरपतवंत सिंह पन्नून की हत्या की कथित नाकाम साजिश में शामिल होने का आरोप लगाया है। इस मामले को लेकर भारत और अमेरिका के बीच राजनायिक विवाद खड़ा हो सकता है। ऐसा कहा जा रहा है कि अमेरिका विकास यादव के प्रत्यर्पण की मांग कर सकता है। अभी अमेरिका ने विकास यादव के प्रत्यर्पण की मांग नहीं की है।

किसी व्यक्ति के प्रत्यर्पण की प्रक्रिया तभी शुरू हो सकती है जब उसे अदालत द्वारा दोषी ठहराया जाता है। अमेरिकी न्याय विभाग द्वारा अभियोग चलाने का मतलब यह नहीं है कि विकास यादव या कोई और दोषी है। लेकिन अगर अमेरिका जोर देता है, तो भारत भी पलटकर अमेरिका से डेविड कोलमैन हेडली उर्फ ​​दाऊद सईद गिलानी को 2008 के मुंबई आतंकवादी हमलों में उसकी भूमिका के लिए प्रत्यर्पित करने के लिए कह सकता है।

कौन है अमेरिकी आतंकवादी डेविड हेडली?

डेविड हेडली (David Headley) का असली नाम दाऊद सैयद गिलानी था। वह एक पाकिस्तानी-अमेरिकी आतंकवादी है जिसने 26/11 मुंबई आतंकी हमलों की साजिश रचने में अहम भूमिका निभाई थी। वह पाकिस्तान स्थित आतंकवादी संगठन लश्कर-ए-तैयबा (LeT) के साथ जुड़ा हुआ था और भारतीय शहरों पर हमले की योजना बनाने में लश्कर की मदद की थी। 2006-2008 के दौरान, उसने भारत में जाकर हमलों के लिए संभावित ठिकानों की रेकी की और अपने पाकिस्तानी आकाओं को जानकारी दी।

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हेडली का बैकग्राउंड

डेविड हेडली का जन्म 1960 में अमेरिका में हुआ था। उसकी मां अमेरिकी और पिता पाकिस्तानी थे। अपने शुरुआती जीवन में वह पाकिस्तान में रहा, लेकिन बाद में अमेरिका में बस गया। 1990 के दशक में हेडली ड्रग्स की तस्करी के आरोप में पकड़ा गया, जिसके बाद उसने अमेरिकी ड्रग एनफोर्समेंट एजेंसी (DEA) के लिए काम करना शुरू किया। लेकिन इस दौरान वह लश्कर-ए-तैयबा के संपर्क में आया और आतंकी गतिविधियों में शामिल हो गया।

मुंबई हमले में भूमिका

डेविड हेडली ने 2006 से 2008 तक कई बार भारत की यात्रा की और मुंबई में आतंकवादी हमले के संभावित टारगेट की रेकी की। उसने हमले के लिए होटल ताज महल, नरीमन हाउस और अन्य महत्वपूर्ण स्थलों की वीडियो और तस्वीरें लीं, जो बाद में लश्कर के आतंकियों ने इस्तेमाल कीं। हेडली मार्च 2007 और मई 2007 में मुंबई के ताज होटल में रुका था। उसका कनाडाई-पाकिस्तानी सहयोगी तहव्वुर हुसैन राणा 21 नवंबर 2008 तक दक्षिण मुंबई के एक गेस्ट हाउस में रुका था, जो 26/11 हमलों से सिर्फ पांच दिन पहले ही वहां से चला गया था। लश्कर-ए-तैयबा द्वारा प्रायोजित हमलों का सबसे ज्यादा असर ताज होटल पर ही पड़ा। 26 नवंबर 2008 को हुए मुंबई हमलों में 166 लोगों की जान गई और सैकड़ों घायल हुए। हेडली ने 2006 से 2009 के बीच भारत की नौ यात्राएं कीं, जिनमें से एक यात्रा आतंकी हमलों के बाद की भी थी। राणा सिर्फ एक बार भारत आया और यहां एक महीने तक रुका।

अमेरिका ने भारत को प्रत्यर्पित क्यों नहीं किया?

डेविड हेडली को 2009 में शिकागो में गिरफ्तार किया गया था। उसने अमेरिका के साथ एक समझौता किया जिसमें उसने अपने अपराधों को कबूल किया और अमेरिका को हमलों की योजना और लश्कर-ए-तैयबा के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी दी। इसके बदले में, अमेरिका ने उसे मृत्युदंड नहीं देने का वादा किया और भारत को प्रत्यर्पित न करने का समझौता किया।

अमेरिका ने 2016 में भारतीय अधिकारियों को हेडली से पूछताछ करने की अनुमति दी थी और उसने बताया था कि कैसे पाकिस्तान की इंटर सर्विसेज इंटेलिजेंस (आईएसआई) ने उसे नाव खरीदने के लिए 25 लाख रुपये दिए थे, जिसमें 10 आतंकवादी नवंबर 2008 में कराची से मुंबई पहुंचे थे। हेडली ने अमेरिकी अधिकारियों की मौजूदगी में खुलासा किया था कि आईएसआई ने ही उसे योजना के विभिन्न पहलुओं के बारे में जानकारी दी थी।

अमेरिका द्वारा प्रत्यर्पण न करने के प्रमुख कारण

अमेरिकी नागरिकता: हेडली अमेरिकी नागरिक था, और अमेरिका अक्सर अपने नागरिकों को दूसरे देशों को प्रत्यर्पित करने से बचता है, खासकर जब वे अमेरिकी न्यायिक प्रणाली में सहयोग कर रहे होते हैं।

सहयोग और सौदा: हेडली ने अमेरिकी जांच एजेंसियों को पाकिस्तान स्थित लश्कर-ए-तैयबा और 26/11 हमलों के बारे में विस्तृत जानकारी दी। उसकी इस जानकारी ने अमेरिका को आतंकवाद के खिलाफ अपनी रणनीतियों को मजबूत करने में मदद की।

मृत्युदंड से सुरक्षा: हेडली ने इस शर्त पर अपने अपराध कबूल किए कि उसे मृत्युदंड नहीं दिया जाएगा। चूंकि भारत में आतंकवादियों के खिलाफ मृत्युदंड का प्रावधान है, अमेरिका ने उसे प्रत्यर्पित करने से मना कर दिया।

US की शरण में कई आतंकी

डेविड हेडली के अलावा, US की शरण में कई आतंकी हैं। कैलिफोर्निया की एक अदालत ने इस वर्ष की शुरुआत में कहा था कि 2008 के मुंबई आतंकवादी हमलों में अपनी भूमिका के लिए भारत में वांछित पाकिस्तानी मूल के कनाडाई व्यवसायी तहव्वुर हुसैन राणा को भारत-अमेरिका प्रत्यर्पण संधि के तहत भारत भेजा जा सकता है। फिलहाल राणा अभी भी अमेरिका में ही है। इसके अलावा, रबिंदर सिंह का मामला भी काफी पेंचीदा है।

अमेरिका ने रॉ अधिकारी रबिंदर सिंह को 2002 में सरकारी सहायता प्राप्त यात्रा पर अमेरिका आने के बाद सेंट्रल इंटेलिजेंस एजेंसी (सीआईए) में शामिल होने के लिए प्रोत्साहित किया। 2004 में सिंह जाल में फंस गए और अपनी पत्नी के साथ नेपाल के रास्ते सीआईए में शामिल हो गए। 2006 में रॉ ने दिल्ली की एक अदालत को बताया कि उन्हें न्यू जर्सी में पाया गया है और एजेंसी उन्हें प्रत्यर्पित करने की कोशिश कर रही है। सीआईए ने रॉ के संयुक्त सचिव रबिंदर सिंह को कैसे धोखा दिया और नेपाल के रास्ते उन्हें अमेरिका ले गया, इसका उल्लेख मई 2014 में प्रकाशित पूर्व रॉ अधिकारी आरके यादव की पुस्तक ‘मिशन रॉ’ के एक अलग अध्याय में किया गया है।

इसके अलावा, गुरपतवंत सिंह पन्नू तो अमेरिका का नागरिक बना हुआ है। गुरपतवंत सिंह पन्नू एक प्रमुख खालिस्तान समर्थक और "सिख्स फॉर जस्टिस" (SFJ) नामक संगठन का संस्थापक है। भारत सरकार ने SFJ और पन्नू दोनों को आतंकवाद से संबंधित गतिविधियों में शामिल होने के आरोप में प्रतिबंधित कर रखा है। गुरपतवंत सिंह पन्नू पर भारत सरकार ने कई मुकदमे दर्ज किए हैं और उसे आतंकवादी घोषित कर रखा है। SFJ का कामकाज भारत में अवैध माना जाता है और पन्नू की गतिविधियों को देश की एकता और अखंडता के खिलाफ माना गया है।

भारत का दृष्टिकोण

भारत ने कई बार हेडली की प्रत्यर्पण की मांग की है, ताकि उसे भारतीय अदालतों में भी सजा दी जा सके। हालांकि, अमेरिका के साथ समझौते और हेडली के अमेरिकी नागरिक होने के कारण, अमेरिका ने उसकी प्रत्यर्पण पर कोई सहमति नहीं दी। इसके बजाय, हेडली को 35 साल की सजा सुनाई गई, जिसे वह अमेरिका की जेल में काट रहा है। डेविड हेडली मुंबई हमलों का मुख्य साजिशकर्ता था, जिसने लश्कर-ए-तैयबा को हमलों की योजना बनाने में मदद की। हालांकि भारत उसकी प्रत्यर्पण की मांग कर चुका है, अमेरिका के साथ हुए समझौते और उसके अमेरिकी नागरिक होने के कारण, यह संभव नहीं हो पाया।

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