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कश्मीर छोड़ो, काम की बात करो; बेलारूस के राष्ट्रपति ने कर दी शहबाज शरीफ की फजीहत

  • पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ की मुलाकात बेलारूस के राष्ट्रपति अलेक्जेंडर लुकाशेंको के साथ उस समय चर्चा का विषय बन गई जब कश्मीर मुद्दे पर शरीफ को साफ जवाब मिला।

Himanshu Tiwari लाइव हिन्दुस्तानWed, 27 Nov 2024 10:09 PM
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कश्मीर छोड़ो, काम की बात करो; बेलारूस के राष्ट्रपति ने कर दी शहबाज शरीफ की फजीहत

इस्लामाबाद में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ की मुलाकात बेलारूस के राष्ट्रपति अलेक्जेंडर लुकाशेंको के साथ उस समय चर्चा का विषय बन गई जब कश्मीर मुद्दे पर शरीफ को साफ जवाब मिला। तीन दिवसीय दौरे पर पाकिस्तान आए लुकाशेंको ने स्पष्ट कर दिया कि वह किसी भी राजनैतिक मुद्दे पर चर्चा करने नहीं आए हैं। जब शहबाज शरीफ ने कश्मीर का मुद्दा उठाया तो लुकाशेंको ने कहा, "मैं यहां केवल व्यवसाय और द्विपक्षीय सहयोग पर बात करने आया हूं।"

इस परिस्तिथि ने न सिर्फ शरीफ की स्थिति असहज कर दी बल्कि बेलारूस के राष्ट्रपति के स्पष्ट रुख ने पाकिस्तान के कूटनीतिक प्रयासों पर भी सवाल खड़े कर दिए। बेलारूस के राष्ट्रपति का यह बयान पाकिस्तान के लिए शर्मिंदगी का कारण बन गया, खासकर तब जब शरीफ ने प्रोटोकॉल तोड़कर उनका स्वागत करने के लिए खुद एयरपोर्ट पर पहुंचकर अपनी गर्मजोशी दिखाई थी।

पाकिस्तानी पत्रकार आरजू काजमी ने इसे लेकर अपने यूट्यूब चैनल पर टिप्पणी की। उन्होंने कहा कि कश्मीर का हर मंच पर मुद्दा उठाना पाकिस्तान की राजनीति और कूटनीति का हिस्सा बन गया है, लेकिन लुकाशेंको का जवाब यह दर्शाता है कि सभी देश इस मुद्दे पर पाकिस्तान का समर्थन नहीं कर सकते।

इससे पहले, पाकिस्तान के गृहमंत्री मोहसिन नकवी ने भी विवादित बयान देकर पाकिस्तान को और मुश्किल में डाल दिया था। जब उनसे पूछा गया कि क्या कश्मीर के लोग इमरान खान की गिरफ्तारी के विरोध में प्रदर्शन कर रहे हैं, तो उन्होंने जवाब दिया कि कश्मीर 'विदेशी भूमि' है। इस बयान ने पाकिस्तानी सियासत में हलचल मचा दी और विपक्षी दलों ने इसे राष्ट्रीय नीति के खिलाफ बताया।

लुकाशेंको का यह दौरा पाक-बेलारूस संबंधों को मजबूती देने के लिए अहम माना जा रहा था, लेकिन कश्मीर पर उनकी स्पष्ट नीति ने शरीफ सरकार की कूटनीतिक स्थिति को कमजोर कर दिया। जानकारों का कहना है कि यह घटना पाकिस्तान के नेतृत्व के लिए एक सीख होनी चाहिए कि अंतरराष्ट्रीय मंचों पर जरूरत से ज्यादा राजनीतिक एजेंडा थोपने का प्रयास उल्टा पड़ सकता है।

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