अंग्रेजों के घर में बाहरी लोगों का कब्जा? भारत-पाकिस्तान की जंग से क्यों घबराए ब्रिटेन के लोग
यह सड़क, जो कभी ब्रिटेन के औद्योगिक गौरव का हिस्सा थी, अब एक ऐसी जगह है जहां अंग्रेजी कम बोली जाती है। बड़ी संख्या में यहां भारत और पाकिस्तानी मूल के लोग रहते हैं।
पहलगाम हमले के बाद भारत ने पाकिस्तान स्थित आतंकियों को खत्म करने के लिए ऑपरेशन सिंदूर शुरू किया। इस ऑपरेशन के बाद बौखलाए पाकिस्तान ने भारत पर ड्रोन और मिसाइलों से हमले किए जिसका भारतीय सेना ने मुंहतोड़ जवाब दिया। भारतीय सेना की जवाबी कार्रवाई से होती तबाही को देखकर पाकिस्तान ने सीजफायर की गुहार लगाई और पूर्ण युद्ध होते-होते रुक गया। हालांकि जंग का असर इन दोनों देशों के अलावा, विदेशों में भी देखने को मिल रहा है। पूरी दुनिया में, खासतौर से अंग्रेजों के देश ब्रिटेन में भारत-पाकिस्तानी लोगों की एक बड़ी आबादी रहती है। ऐसे में ब्रिटेन की स्थानीय आबादी को डर है कि कहीं भारत-पाकिस्तान की जंग का असर उनकी सड़कों पर देखने को ना मिल जाए।
लीसेस्टर के सेंट मैथ्यूज इलाके में स्थित मॉर्निंगटन स्ट्रीट, बाहर से देखने में ब्रिटेन के मिडलैंड्स या उत्तरी क्षेत्रों की सैकड़ों अन्य सड़कों जैसी दिखती है। यहां की छोटी-छोटी विक्टोरियन टेरेस्ड हाउसेज औद्योगिक युग की याद दिलाती हैं, जब ये इलाके ब्रिटेन की औद्योगिक शक्ति के केंद्र हुआ करते थे। लेकिन, 2021 की जनगणना के आंकड़ों ने इस सड़क को एक अनोखी पहचान दी है: यह ब्रिटेन में वह सड़क है जहां अंग्रेजी बोलने वालों की संख्या सबसे कम है।
43% लोग बहुत कम या बिल्कुल भी अंग्रेजी नहीं बोलते
जनगणना के अनुसार, मॉर्निंगटन स्ट्रीट और इसके आसपास के क्षेत्रों में 16 वर्ष से अधिक आयु के 43% लोग बहुत कम या बिल्कुल भी अंग्रेजी नहीं बोलते। यह आंकड़ा लीसेस्टर के व्यापक सांस्कृतिक परिवर्तन को दर्शाता है, जहां केवल 57% निवासी इंग्लैंड में जन्मे हैं, जो 2011 में 65% था। लेस्टर अब ब्रिटेन के सबसे विविध शहरों में से एक है, जहां 34 जिलों में कम से कम पांचवां हिस्सा अंग्रेजी नहीं बोलता।
डेलीमेल की रिपोर्ट के मुताबिक, मॉर्निंगटन स्ट्रीट को स्थानीय लोग ‘मैशटाउन’, ‘हेल सिटी’ या ‘लिटिल सोमालिया’ जैसे नामों से भी पुकारते हैं। यहां रहने वाले अधिकांश लोग विभिन्न देशों से आए प्रवासी हैं, जिनमें से कई की पहली भाषा अंग्रेजी नहीं है। इस सड़क पर सूएज कैनाल बार्बर्स, आइलैंड डिशेज कैफे और अन्य छोटे-छोटे व्यवसाय हैं, जो इस क्षेत्र की जीवंतता को दर्शाते हैं।
भारत-पाकिस्तान तनाव और ब्रिटेन की चिंताएं
लीसेस्टर शहर दशकों से बांग्लादेशी, भारतीय, पाकिस्तानी और सोमालियाई प्रवासियों के साथ-साथ कई अन्य लोगों के लिए पसंदीदा स्थान रहा है। यहां बड़ी संख्या में बाहरी लोग रहते हैं। ताजा भारत-पाकिस्तान युद्ध के माहौल से यहां के लोगों को भी थोड़ा डर है। क्योंकि इन इलाकों में पहले ऐसा हो चुका है। 2022 में भारत-पाकिस्तान क्रिकेट मैच के बाद यहां हिंदू-मुस्लिम दंगे भड़के थे। इन तनावों ने स्थानीय समुदायों के बीच अविश्वास को बढ़ाया, और कुछ निवासियों को डर है कि ऐसी घटनाएं फिर से हो सकती हैं। ब्रिटेन में बढ़ते आप्रवास और सांस्कृतिक विभाजन ने इस चिंता को और गहरा किया है कि बाहरी देशों के संघर्ष स्थानीय स्तर पर सामाजिक अशांति को जन्म दे सकते हैं।
गुजरात से भारतीय मूल के मुसलमान भी रहते हैं
लीसेस्टर का यह हिस्सा मुख्य रूप से पश्चिमी राज्य गुजरात से भारतीय मूल के मुसलमानों से भरा हुआ है। सिर्फ एक दर्जन सड़कों और लगभग 2,000 लोगों से बना नॉर्थ इविंगटन का इलाका दो मस्जिदों और एक हिंदू मंदिर का घर है। सीढ़ीदार मॉर्निंगटन स्ट्रीट समुदाय का मुख्य मार्ग है, जो शहर के केंद्र से सिर्फ एक मील पश्चिम में स्थित है। सड़कों पर घूमते हुए, यहां फिलिस्तीनी और भारतीय झंडे दिख जाएंगे। यहां इस्लामाबाद कैश एंड कैरी नाम की शॉप है। जहां देखो वहां बुर्का पहनी महिलाएं हैं।
रिपोर्ट में कहा गया है कि इस बात का शुक्र है कि भारत और पाकिस्तान के बीच हाल ही में हुई गोलीबारी लीसेस्टर की सड़कों पर नहीं दोहराई गई, लेकिन कोई नहीं जानता कि दोनों देशों के बीच एक व्यापक युद्ध लीसेस्टर में क्या कहर बरपा सकता है। हालांकि समुदाय के नेता मंसूर मुगल बी.ई. कई वर्षों तक लीसेस्टरशायर रेस रिलेशंस कमेटी के अध्यक्ष रहे हैं और उनका मानना है कि शहर के विभिन्न गुटों के बीच शांति बनी रहेगी। उन्होंने कहा, "भारत और पाकिस्तान के बीच इस युद्ध ने लीसेस्टर के लोगों को सीधे तौर पर प्रभावित नहीं किया है, और मुझे नहीं लगता कि ऐसा होगा। उन्होंने 2022 में हुए दंगों से सबक सीखा है। इसे आसानी से रोका जा सकता था, लेकिन पुलिस ने समय रहते कार्रवाई नहीं की और चीजें हाथ से निकल गईं।"
स्थानीय निवासियों की राय: एकीकरण और भाषा की चुनौतियां
हालांकि मॉर्निंगटन स्ट्रीट पर रहने वाले लोगों के विचार इस क्षेत्र की जटिल सामाजिक ताने-बाने को दर्शाते हैं। कुछ निवासियों का मानना है कि भाषा की कमी के कारण दैनिक जीवन में बातचीत संबंधी समस्याएं उत्पन्न होती हैं, विशेष रूप से शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं के क्षेत्र में।
रुकी (62 वर्ष, मलावी मूल की निवासी): मलावी से 1974 में ब्रिटेन आईं रुकी फर्राटेदार अंग्रेजी बोलती हैं। उन्होंने कहा कि कुछ लोग अंग्रेजी सीखने का प्रयास नहीं करते, जो गलत है। उनके अनुसार, भाषा की कमी के कारण पड़ोसियों के बीच संचार में बाधा आती है, और यह बच्चों की शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं के उपयोग में भी रुकावट पैदा करता है।
रोहिक कुमार (35 वर्ष, अमेजॉन कर्मचारी): 2020 में भारत से ब्रिटेन आए रोहिक, उनकी पत्नी रीतादेवी और उनकी तीन साल की बेटी जैकलीन के साथ मॉर्निंगटन स्ट्रीट के पास ग्रीन लेन रोड पर रहते हैं। रोहिक ने बताया कि वे कुछ अंग्रेजी बोलते थे, लेकिन समय के साथ उनकी भाषा में सुधार हुआ है।
कुछ स्थानीय लोगों ने बताया कि क्षेत्र में कई भाषाएं बोली जाती हैं, जैसे गुजराती, पंजाबी, और सोमाली। हालांकि, कुछ का मानना है कि अंग्रेजी न बोलने वाले नए प्रवासियों के कारण सामुदायिक एकता प्रभावित हुई है।
मॉर्निंगटन स्ट्रीट और इसके आसपास का क्षेत्र न केवल भाषाई रूप से विविध है, बल्कि धार्मिक और सांस्कृतिक रूप से भी समृद्ध है। यहां मस्जिदें, मंदिर और गुरुद्वारे एक साथ मौजूद हैं, जो लीसेस्टर की बहुसंस्कृतिक पहचान को दर्शाते हैं। लेकिन इस विविधता के साथ कुछ चुनौतियां भी हैं। डेली मेल की एक अन्य रिपोर्ट में इस शहर को "ब्रिटेन का सबसे अलग-थलग शहर" कहा गया, जहां कुछ इलाकों में धार्मिक और सांस्कृतिक तनाव देखे गए हैं। उदाहरण के लिए, कुछ निवासियों ने आप्रवासियों में एकता की कमी और कट्टरपंथी विचारों के प्रसार पर चिंता जताई।
प्रधानमंत्री कीर स्टार्मर की सरकार ने हाल ही में आप्रवास नीतियों को कड़ा करने की घोषणा की है, जिसमें प्रवासियों के लिए अंग्रेजी भाषा की उच्च स्तर की आवश्यकता शामिल है। नई नीतियों के तहत प्रवासियों को ए-लेवल के बराबर अंग्रेजी बोलने और लिखने की क्षमता दिखानी होगी। स्टार्मर ने इसे "सामान्य समझ" की बात बताते हुए कहा कि ब्रिटेन में रहने वालों को अंग्रेजी सीखनी चाहिए ताकि वे समाज में जुड़ सकें।
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