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क्या होता है रियासत-ए-मदीना, जिसका पाक आर्मी चीफ आसिम मुनीर अलाप रहे राग, इमरान खान भी साथ

  • रियासत-ए-मदीना का इतिहास 622 ईस्वी में पैगंबर मोहम्मद द्वारा स्थापित मदीना राज्य से जुड़ा हुआ है। पाक आर्मी चीफ जिस साहिफा मदीना का जिक्र कर रहे हैं, 2022 में इमरान खान भी इसकी वकालत कर चुके हैं।

Gaurav Kala लाइव हिन्दुस्तानThu, 17 April 2025 12:32 PM
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क्या होता है रियासत-ए-मदीना, जिसका पाक आर्मी चीफ आसिम मुनीर अलाप रहे राग, इमरान खान भी साथ

​पाकिस्तान के आर्मी चीफ जनरल आसिम मुनीर ने हाल ही में इस्लामाबाद में आयोजित ओवरसीज पाकिस्तान कन्वेंशन में रियासत-ए-मदीना की तर्ज पर नया पाकिस्तान बनाने की बात कही। उन्होंने देश को इसी आदर्शों पर आधारित एक इस्लामी कल्याणकारी राष्ट्र बनाने पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि पाकिस्तान एकमात्र ऐसा देश है जो कलमा के आधार पर स्थापित हुआ है और इसे साहिफा मदीना (मदीना का संविधान) के सिद्धांतों के अनुरूप चलाना चाहिए। इसका इतिहास इस्लामी धर्म के संस्थापक पैगम्बर मोहम्मद साहब से जुड़ा हुआ है। रोचक बात यह है कि पूर्व पाक पीएम इमरान खान भी इसकी वकालत कर चुके हैं।

पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान ने 2022 में नया पाकिस्तान बनाने की बात की थी, जो रियासत-ए-मदीना के सिद्धांतों पर आधारित हो। आलोचकों का कहना है कि पहले इमरान खान और अब आसिम मुनीर द्वारा रियासत-ए-मदीना पर जोर देना अपनी खोखली सरकार को आदर्श मॉडल बताना है। इसका इस्तेमाल केवल जनता को भावनात्मक रूप से जोड़ने और धार्मिक कार्ड खेलने के लिए किया गया है।

रियासत-ए-मदीना का इतिहास

रियासत-ए-मदीना की स्थापना पैगंबर मुहम्मद ने 622 ईस्वी में मदीना शहर में की थी। इसे मदीना राज्य या मदीना के संविधान के नाम से भी जाना जाता है। पैगंबर मुहम्मद और उनके अनुयायी मक्का से मदीना 622 ईस्वी में हिजरत कर गए थे। मदीना में उनकी एकजुटता और धार्मिक स्वतंत्रता को देखकर एक नई राजनीतिक व्यवस्था की नींव रखी गई। मदीना में पैगंबर मुहम्मद ने एक संविधान तैयार किया, जिसे "साहिफ़ा मदीना" कहा जाता है। यह विभिन्न समुदायों और विभिन्न धर्मों के अधिकारों और कर्तव्यों की बात करता है, जो मदीना में निवास करते थे- जैसे कि मुसलमान, यहूदी और अन्य जातीय और धार्मिक समूह।

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रियासत-ए-मदीना का मॉडल 7वीं सदी के अरब समाज के लिए उपयुक्त था, लेकिन 21वीं सदी में विविधतापूर्ण, लोकतांत्रिक और मानवाधिकार-आधारित समाज के लिए यह व्यावहारिक नहीं है। आलोचक इसे महिलाओं, अल्पसंख्यक और धर्मनिरपेक्ष सोच रखने वाले वर्गों के लिए व्यक्तिगत स्वतंत्रताओं पर खतरा मानते हैं। धार्मिक व्याख्याओं पर आधारित होने से यह लोकतांत्रिक बहस और नीति निर्माण के लिए बाधित है।

साहिफा मदीना में अधिकार और समानताएं

साहिफा मदीना के तहत हर शख्स के लिए कुछ अधिकार, न्याय प्रणाली और कर्तव्य सुनिश्चत किए गए थे, जिसमें हर व्यक्ति को समान अधिकार और न्याय देना, चाहे वह मुस्लिम हो या गैर-मुस्लिम। विभिन्न धार्मिक समुदायों को एक साथ रहने की स्वतंत्रता देना, जिसमें मुसलमानों के साथ-साथ यहूदियों, ईसाईयों और अन्य समुदायों को भी अपने धर्म का पालन करने की स्वतंत्रता। मदीना में गरीबों और जरूरतमंदों के लिए दान या एक प्रकार के कर की व्यवस्था देना भी शामिल है। इसमें शांति और न्याय की व्यवस्था बनाए रखने के लिए मजबूत प्रशासनिक ढांचे की वकालत की गई है।

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