संयम के पथ पर अडिग रहने वाला व्यक्ति ही कहलाता है देव : आचार्य विश्वदेवानंद
देवघर के आनंद मार्गी विश्व स्तरीय धर्म महासम्मेलन में प्रमुख आचार्य विश्वदेवानंद ने शोकाकुल परिवारों के प्रति संवेदना व्यक्त की। उन्होंने बताया कि भारत की सांस्कृतिक परंपरा केवल रीति-रिवाज नहीं, बल्कि...

देवघर,प्रतिनिधि। जिले से काफी संख्या में आनंद मार्गी विश्व स्तरीय धर्म महासम्मेलन में भाग लेने के लिए शिमला गए हुए हैं। जो इस सम्मेलन में शारीरिक रूप से भाग नहीं ले पा रहे हैं वह वेब टेलीकास्ट के माध्यम से इस सम्मेलन का लाभ उठा रहे हैं। आनंद मार्ग प्रचारक संघ द्वारा चौड़ा मैदान, पीटर हॉफ प्रांगण में दो दिवसीय विश्व स्तरीय धर्म महासम्मेलन के प्रथम दिन पुरोधा प्रमुख आचार्य विश्वदेवानंद अवधूत ने प्रवचन का शुभारंभ किया। जिसमें उन्होंने 22 अप्रैल को पहलगाम में आतंकियों द्वारा निर्दोष लोगों की निर्मम हत्या की कड़े शब्दों में निंदा करते हुए शोकाकुल परिवारों के प्रति गहरी संवेदना व्यक्त की। उन्होंने देव संस्कृति दिव्यता का आचरण मूलक दर्शन विषय पर हजारों साधकों को संबोधित करते हुए कहा कि भारतवर्ष विशेषकर हिमाचल प्रदेश की सांस्कृतिक परंपरा, मात्र रीति-रिवाजों और अनुष्ठानों का संग्रह नहीं है, बल्कि एक गहन जीवन-दृष्टि है, जिसका मूल तत्व है देवत्व। मनुष्य केवल जन्म से नहीं, अपितु आचरण से देव बनता है। उन्होंने कहा कि श्रेष्ठ कार्यों में अनेक बाधाएं आती हैं, परंतु सत्य, करुणा, सेवा और संयम के पथ पर अडिग रहने वाला व्यक्ति ही वास्तव में देव कहलाता है। कहा कि देव वह नहीं जो केवल पूज्य हो, बल्कि वह है जो अपने आचरण से समाज के लिए प्रेरणा स्रोत बनता है। कहा कि भारतीय दर्शन में भगवान सदाशिव और माता पार्वती को आदर्श जीवन के प्रतीक के रूप में स्वीकारा गया है। उनकी जीवन शैली प्रेम, तप, त्याग और लोकमंगल की अद्भुत समन्वययुक्त थी, जो आज भी देव संस्कृति के मूल स्तंभ हैं। माता पार्वती द्वारा पूछे गए प्रश्न निगम शास्त्र हैं, जिज्ञासा और शिष्यत्व का प्रतीक। भगवान शिव द्वारा दिए गए उत्तर आगम शास्त्र हैं,ज्ञान और कृपा का जीवंत प्रवाह। उन्होंने कहा कि देव संस्कृति केवल परंपरा नहीं, बल्कि साधना है। मंदिरों में पूजा करना पर्याप्त नहीं है, आवश्यक है कि हम अपने अंतःकरण को मंदिर बनाएं। देव संस्कृति वह जीवनशैली है, जहां हर कर्म सेवा है, हर विचार करुणा है और हर लक्ष्य लोककल्याण है। आज जब मानवता भौतिकता की अंधी दौड़ में भटक रही है, तब देव संस्कृति का पुनरुद्धार समय की मांग बन गया है। इस बात की जानकारी आनंदमार्ग प्रचारक संघ देवघर के जनसंपर्क सचिव विकाश कुमार ने दी।
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