बोले धनबाद: अल्पसंख्यक स्कूलों को भी मिले सुविधाएं
धनबाद में 22 अल्पसंख्यक स्कूल हैं, जहां सामान्य और अल्पसंख्यक छात्रों की पढ़ाई होती है। हालांकि, इन स्कूलों को सरकारी स्कूलों जैसी सुविधाएं नहीं मिलती हैं। शिक्षकों ने मांग की है कि अल्पसंख्यक स्कूलों...

जिले में अल्पसंख्यक स्कूल भी हैं। मिडिल तथा हाई दोनों तरह के स्कूल हैं। इन स्कूलों में अल्पसंख्यकों के साथ-साथ सामान्य श्रेणी के बच्चे अध्ययन करते हैं। इन स्कूलों में सामान्य स्कूलों की तरह ही पठन-पाठन होता है। बस एक अंतर यह है कि इसके संचालन के लिए एक अलग कमेटी होती है, हालांकि इस पर सरकार तथा प्रशासन का ही नियंत्रण होता है। ऐसे स्कूलों में शिक्षक नियुक्ति की प्रक्रिया भी कुछ अलग है। धनबाद में 22 अल्पसंख्यक स्कूल है। इसमें नौ हाई तथा 13 मिडिल स्कूल हैं। इन स्कूलों में नामांकन भी सरकारी स्कूलों की ही तरह होता है। शिक्षक तथा शिक्षकेतरकर्मियों को वेतन भी सरकारी स्कूलों की तरह ही मिलता है। हालांकि वेतन भुगतान के लिए राज्य सरकार इन स्कूलों के लिए अलग से आवंटन जारी करती है। सब कुछ सरकारी स्कूलों की तरह होने के बाद भी कई ऐसी सुविधाएं हैं जो अल्पसंख्यक स्कूलों को नहीं मिलती है। इसका मलाल यहां के छात्रों तथा शिक्षकों दोनों को है।
अल्पसंख्यक स्कूल भी अच्छी पढ़ाई के लिए जाने जाते हैं। कहीं न कहीं से ऐसे स्कूल भी सरकार तथा प्रशासन के ही अंग हैं। राज्य सरकार तथा विभाग के नियमों के अधार पर ही इन स्कूलों का भी संचालन होता है। इसके बाद सरकारी स्कूलों की तरह अल्पसंख्यक स्कूलों को पूरी सुविधाएं नहीं मिलती हैं। ऐसे में कई काम स्कूल संचालन समितियों को करना पड़ता है। अल्पसंख्यक स्कूलों के बच्चों को किताबें तो मिलती हैं लेकिन स्कूल किट तथा स्कूल ड्रेस (पोशाक) नहीं मिलता है। शिक्षकों को भी समय पर वेतन नहीं मिलता है। कई बार तो छह-छह माह में एक बार वेतन भुगतान किया जाता है। हमारी मांग है कि अल्पसंख्यक स्कूलों को भी सरकारी स्कूलों को मिलने वाली हर सुविधा दी जाए। इन स्कूलों के छात्रों को भी सरकार की हर योजना का लाभ मिले। उक्त बातें अल्पसंख्यक स्कूलों के शिक्षकों ने आपके अपने अखबार हिन्दुस्तान से कही। हिन्दुस्तान की बोले हिन्दुस्तान की टीम अल्पसंख्यक स्कूलों के शिक्षकों से बातचीत के लिए गई थी। शिक्षकों ने बोले हिन्दुस्तान की टीम से अपनी तथा स्कूल के छात्रों की समस्या खुल कर कही।
शिक्षकों ने कहा कि अनुदानित स्कूल होने के कारण सरकार की ओर से यहां हर सुविधा नहीं मिलती है। अल्पसंख्य स्कूलों में बड़ी संख्या में बच्चे पढ़ते हैं। ऐसे बच्चों को भी सरकार की हर सुविधाएं मिलनी चाहिए। अल्पसंख्यक स्कूलों में भी बच्चों को अच्छी तथा गुणवत्ता पूर्ण शिक्षा दी जाती है। यही कारण है कि इन स्कूलों में छात्रों की संख्या लगातार बढ़ते जा रही है। शिक्षकों ने बातचीत में कहा कि सरकार हमारे स्कूलों स्थापना मद में खर्च करने के लिए कोई राशि नहीं देती है। कोई दूसरा फंड भी नहीं मिलता है। हमारी अपनी कमेटी है। हर माह हमारी कमेटी बैठक करके स्कूलों पर खर्च करने की राशि तय करती है। चाहे वह खर्च बेंच-कुर्सी की खरीद के लिए हो या फिर अन्य किसी भी चीज के लिए। शिक्षकों ने बताया कि स्कूल के कुछ पुराने छात्र- शिक्षक व कुछ संस्थाओं की ओर से सहायता राशि दी जाती है। इसी राशि के स्थापना मद में खर्च होता है। स्कूल के शिक्षकों ने बताया कि शिक्षा विभाग से राजकीय स्कूलों में आठवीं के छात्रों को साइकिल दी जाती है। अल्पसंख्यक स्कूलों में पढ़ने वालों को भी साइकिल मिलनी चाहिए। अल्पसंख्यक छात्रों को बैग, पेंसिल (स्कूल किट) जैसे चीजें नहीं मिलती है। सामान्य सरकारी स्कूलों के बच्चों को इस तरह की सुविधा मिलती है। शिक्षकों ने बताया कि जिले में कई स्कूल भाषीय अल्पसंख्यक स्कूल हैं। इसमें बांग्ला और ऊर्दूं मुख्य है। शिक्षकों ने कहा कि बांग्ला तथा उर्दू भाषा में छात्रों को किताबें मिलनी चाहिए।
शिकायतें
1. छात्रों को भी कॉपी, पेंसिल व साइकिल नहीं मिलती है।
2. अल्पसंख्यक विद्यालय के सभी शिक्षकों को ग्रेड फॉर्मल पदोन्नति का लाभ नहीं मिलता है।
3. अल्पसंख्यक विद्यालय शहरी क्षेत्र में है, फिर भी शिक्षकों को यात्रा भत्ता नहीं मिलती है।
4. वर्ष 2019 के बाद से बच्चों को स्कूल ड्रेस नहीं मिली है। इससे उनके पढ़ाई के उत्साह को काम करता है।
5. भाषीय किताबें बच्चों को नहीं मिलती है। इससे सिलेबस पूरा नहीं हो जाता है।
सुझाव
1. अल्पसंख्यक स्कूल के बच्चों को साइकिल दी जाए।
2. 24 वर्ष सेवा पूरी करने वाले अल्पसंख्यक उच्च विद्यालय के शिक्षकों को प्रवर वेतनमान का लाभ दिया जाए।
3. अल्पसंख्यक विद्यालय के बच्चों को भाषायी किताबें उपलब्ध करायी जाए।
4. एससी-एसटी, ओबीसी, मुस्लिम परिवार के छात्रों को भी स्कूल ड्रेस दी जाए।
5. अल्पसंख्यक विद्यालय के नौवीं और दसवीं के छात्र-छात्रों को भी किताबें मिलनी चाहिए।
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