रोजगार के अवसर बढ़ोतरी के लिए लाह की खेती को बढ़वा दे विभाग
गढ़वा में लाह की खेती एक समय में किसानों के लिए अच्छा मुनाफा देती थी। लेकिन अब उत्पादन में गिरावट के कारण किसान इस फसल से दूर हो गए हैं। लाह की खेती को फिर से शुरू करने की जरूरत है ताकि पलायन और गरीबी...

गढ़वा, प्रतिनिधि। कभी पलामू प्रमंडल की पहचान ही पहले बड़े पैमाने पर हो रही लाह की खेती से होती थी। नकदी फसल होने के कारण किसानों को अच्छी आमदनी होती थी। उन्नत किस्म के लाह के उत्पादन के कारण प्रमंडल के गढ़वा जिले के लाह की मांग कभी कनाडा, इंडोनेशिया, जापान, आईलैंड सहित अन्य देशों में होती थी। समय के साथ लाह की चमक फीकी पड़ गई। उत्पादन घटने के कारण किसानों भी लाह की खेती को ले दिलचस्पी कम हो गई। कालांतर में लाह का कारोबार ही बंद हो गया। लाह से हो रही कमाई को लेकर ही गांव घर में कहावत प्रचलित हो गई थी कि लाह जिसे लह गया वह लखपति बन गया।
लाह कारोबार से जुड़े लोग बताते हैं कि तकरीबन तीन दशक पहले तक लाह उत्पादन के क्षेत्र में गढ़वा का दबदबा हुआ करता था। पलामू प्रमंडल में लाह की खेती काफी पुरानी परंपरा रही है। उसका उल्लेख पलामू गजेटियर में भी मिलता है। गजेटियर के मुताबिक 17 लाख 38 हजार 850 पेड़ों पर लाह की खेती होती थी। उनमें 17 लाख एक हजार 10 पलास, 30 हजार 116 बेर, 4176 कुसुम, 1064 पीपल, बर, गुलर और पाकुर के अलावा 2484 अन्य पेड़ों पर लाह की खेती हो रही थी। करीब 41 हजार लोग लाह की खेती से जुड़े थे। लाह की खेती करने वाले किसानों के अलावा लाह के कारोबार से जुड़े लोगों के आमदनी का अच्छा जरिया होता था। बदली स्थिति में जीविकोपार्जन के लिए लोग काम की तलाश में बड़ी आबादी बाहर पलायन करती है। लाह की वैकल्पिक खेती को बढ़ावा देकर पलायन, गरीबी और पिछड़ेपन पर काबू पाया जा सकता था। वर्ष 1995 से 2000 तक लाह की खेती अच्छी होती थी। 2005 के बाद लाह का उत्पादन पूरी तरह से बंद हो गया है। इसे बढ़ावा देकर रोजगार के अवसर सृजित करने के लिए विभाग काम करे। ::बॉक्स::खेती में होनेवाले नफा घाटा को लाह की बिक्री से पूरा कर लेते थे। बैशाखी लाह बेचकर शादी ब्याह और आषाढ़ी से खेती का खर्च निकल जाता था। हमलोगों ने कम से कम 35 साल तक लाह का उत्पादन किया है। अब लाह की खेती बंद होने से आमदनी का जरिया ही खत्म हो गया। सरकार को इसे फिर से शुरू कराना चाहिए। देवनारायण सिंह, किसान ::बॉक्स:: बगैर खास मेहनत और बिना किसी जोखिम के लाह की खेती हम किसानों के लिए वरदान से कम नहीं था। न पटवन की चिंता और न ही जानवर से बचाने का। लाह की खेती से अच्छी कमाई होता है। अब लाह की खेती बंद हो गई। परंपरागत खेती भी लाभदायक नहीं रहा। सरकार फिर से पहल करे। जीतन भुइयां, किसान ::बॉक्स::20 साल पहले तक लाह की खेती से जीवनयापन होता था। रंका से ही रोज कई टन लाह बाहर भेजा जाता था। किसान और मजदूर दोनों को इसका इंतजार रहता था। परंपरागत खेती से कमाई भी नहीं है। घर चलाना मुश्किल होता है। लाह की खेती को फिर से शुरू कराया जाय। शिवपूजन यादव, ::बॉक्स::रंका, रमकंडा और चिनियां प्रखंड लाह उत्पादन का मेन हब होता था। चैनपुर में दर्जन भर सफाई मशीनें लगी थीं। यहां पलाश और बेर के लाह और भंडरिया इलाके में कुसुम पेड़ का लाह मिलता था। सैकड़ों व्यापारी और मजदूर काम में लगे थे। जलवायु में उतार चढ़ाव और पेडों की कटाई, बरसात में कमी होने से कीटों की कमी हो गई है। लाह की खेती को बढ़ावा दिया जाना चाहिए। नागेंद्र चौरसिया, व्यवसायी ::बॉक्स::90 के दशक में अपने दादा के साथ रंका बाजार आना शुरू किया हैं। उन्हीं से लाह के सात आठ किस्मों और उनकी गुणवत्ता को बारीकी से समझा। लाह से किसान के साथ हम जैसे छोटे व्यावसायी भी लाभान्वित होते रहे हैं। लाह के स्टॉक चेक करने बंगाल के व्यापारी हमेशा गढवा आते रहते थे। नई चीजें सीखने का मौका मिलता। लाह के खेती को बढ़ावा मिलना चाहिए। चंदन केसरी, व्यवसायी ::बॉक्स::लाह के कीड़े को खत्म कराने में कृत्रिम मधु बनाने वाले डब्बे वाले जिम्मेवार हैं। समान व्यवहार होने के कारण लाह के कीट भी मधु डब्बे के असमय समाप्त हो गये। तत्काल लाभ के चक्कर में स्थापित व्यवसाय को बर्बाद कर दिया गया। विभाग को फिर से लाह की खेती को बढ़ावा देने का पहल करना चाहिए। गुलजार अंसारी, किसान
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