बोले हजारीबाग: मंहगी हुईं किताबें तो कम हो गई पढ़ने की रुचि
हजारीबाग में पढ़ने की आदत में कमी आ रही है, जो चिंता का विषय है। पुस्तक दिवस मनाने के बावजूद, युवाओं का ध्यान किताबों से हट रहा है। महंगी किताबें और ऑनलाइन पढ़ाई की प्रवृत्ति ने पढ़ने की संस्कृति को...
हजारीबाग। हजारीबाग जैसे शिक्षण नगरी में लोगों में पढ़ने की आदत कमजोर हो रही है, जो चिंता का विषय है। 23 अप्रैल को पुस्तक दिवस मना। सिर्फ पुस्तक दिवस मनाना ही काफी नहीं है, विद्यार्थियों और पाठकों को पढ़ने की ओर फिर से मुखातिब करना भी जरूरी है। कहा जा रहा है कि जब से किताबें महंगी हुईं हैं युवाओं का ध्यान किताबों से हट गया है। इस दौरान बोले हजारीबाग कार्यक्रम के माध्यम से पाठकों, पुस्तक विक्रेताओं और विद्यार्थियों ने खुलकर अपने विचार रखे। साथ ही इसमें सुझाव के लिए उपाय भी बताए। पुरानी किताबों का मशहूर बाज़ार अन्नदा चौक भी अब ग्राहकों की कमी झेल रहा है। पुस्तक विक्रेताओं की दुकानों पर सन्नाटा है और व्यापारियों की रोज़ी-रोटी संकट में है। डिजिटल जानकारी जल्दी भूल जाती है, जबकि किताबों से पढ़ा ज्ञान लंबे समय तक टिकता है। पढ़ने की घटती प्रवृत्ति साहित्य, धर्म और प्रतियोगिता सामग्री की मांग पर भी असर डाल रही है। समुदाय और शैक्षणिक संस्थानों को पढ़ने की संस्कृति को पुनर्जीवित करने की ज़िम्मेदारी लेनी चाहिए। अब समय है कि हम युवाओं को किताबों की दुनिया से फिर से जोड़ें और पढ़ने को प्रेरित करें।
हजारीबाग एक ओर एजुकेशन हब के रूप में विकसित हो रहा है, वहीं आजकल युवाओं में किताब पढ़ने की प्रवृत्ति कम होती जा रही है, जो चिंता का विषय है। हालांकि सोशल मीडिया के प्रचलन के बावजूद बच्चों द्वारा पढ़ी जाने वाली किताबों की संख्या में वृद्धि हो रही है। इसका कारण स्कूल में किताब पढ़ने का दबाव है। लेकिन विश्वविद्यालय और कॉलेज में पढ़ी जाने वाली किताबों की संख्या में कमी आ रही है। महंगी किताबें और गरीबी, पुस्तकों को पढ़ने में बड़ी बाधा बनकर सामने आ रही हैं।
सबसे आश्चर्यजनक बात यह है कि अधिकतर वयस्कों को आनंद के लिए किताबें पढ़ना पसंद नहीं है। अब वे अखबार और पत्रिकाएं भी पढ़ना नहीं चाहते हैं। पढ़ने की घटती प्रवृत्ति सभी आयु वर्ग के संभावित पाठकों को प्रभावित कर रही है। इससे पुस्तकालयों का बंद होना भी एक महत्वपूर्ण कारक है। विश्वविद्यालय और कॉलेज में पढ़ाई प्रबंधन भी कम ज़िम्मेदार है। ग्रेजुएट और पीजी पाठ्यक्रम के किसी भी सत्र में नामांकन के तीन महीने बाद ही परीक्षा ले ली जाती है। इससे बच्चों को टेक्स्ट बुक पढ़ने का मौका नहीं मिलता है। नतीजा, बच्चे शॉर्टकट तरीका अपनाते हैं और गेस पेपर से पढ़ाई करते हैं। इससे भी मूल किताबों को पढ़ने की रुचि घटी है।
वहीं सामान्य किताबों की ऑनलाइन बिक्री बढ़ी है, लेकिन सिलेबस और साहित्य की किताबों की मांग घटी है। पुस्तक प्रेमियों के लिए स्वर्ग कहे जाने वाले अन्नदा चौक में अब पहले जैसी चहल-पहल नहीं दिखती है। यह चौक विश्वविद्यालय और कॉलेज के साथ प्रतियोगिता परीक्षा की तैयारी के लिए नये और पुराने किताबों के लिए प्रसिद्ध है। यहां अब पहले की तुलना में ग्राहकों की कुछ कम भीड़ दिखती है। शहर के लोगों में यह चर्चा रहती है कि अगर आपको कुछ किताबें ढूंढने में कठिनाई हो रही है, तो अन्नदा चौक चले जाएं। किताबों का यह मार्केट 20 साल पुराना है। यहां दशकों पुरानी किताबों की दुकानें मिल जाएंगी। यहां किताबों की हर विधा को खरीदा जा सकता है।
लेकिन एनसीईआरटी की 11वीं और 12वीं की पुरानी पुस्तकों की अच्छी डिमांड होती है। यहां पुरानी किताबों की खरीद-बिक्री होती है। वहीं अन्नदा चौक पर विश्वविद्यालय और कॉलेज के लिए एक बड़ी दुकान भी है, जहां कुछ प्रसिद्ध पुस्तकों के नए प्रथम संस्करण तक मिल जाते हैं। पुस्तकों के इस मार्केट में दर्जनों दुकानें हैं, जहां प्रतियोगिता परीक्षा के फॉर्म और पुस्तकें मिल जाती हैं। यहां फोटो कॉपी की भी सुविधा है। दुकानें हर सुबह नौ बजे से रात आठ बजे तक खुली रहती हैं। इस बाजार की खासियत यह है कि यहां पुरानी पुस्तकें 20 से 30 प्रतिशत छूट पर मिल जाती हैं। यहां 1000 रुपए की पुस्तक 600-700 रुपए में मिल जाती है। हालांकि शहर में मेडिकल कॉलेज, इंजीनियरिंग कॉलेज और लॉ कॉलेज होने के बावजूद अभी भी मेडिकल, टेक्निकल और लिटरेचर की किताबों की दिक्कत है, लेकिन ऐसी किताबों को खरीदने का तरीका बदल गया है। ऐसी किताबें ऑनलाइन मिल जाती हैं, जिनकी कीमत कम होती है।
युवाओं में तेजी से बढ़ रहा ऑनलाइन पढ़ाई का ट्रेंड
आज के डिजिटल युग में ऑनलाइन पढ़ाई तेजी से बढ़ी है, लेकिन इसके साथ कुछ समस्याएं भी सामने आ रही हैं। धीमी इंटरनेट स्पीड, खराब डिज़ाइन वाली शैक्षिक सामग्री, अप्रासंगिक जानकारी और लगातार आने वाले विज्ञापन छात्रों का ध्यान भटकाते हैं। सोशल मीडिया और मनोरंजन से जुड़े ऐप्स पढ़ाई में बाधा बनते हैं। साथ ही, ऑनलाइन माध्यम से पढ़ाई करने पर जटिल विषयों को समझने में कठिनाई होती है और विषय की गहराई में जाने की क्षमता कम हो जाती है। यह तरीका भावनात्मक रूप से जुड़ी जानकारियों को आत्मसात करने में भी कमजोर साबित होता है।
किताबों से पढ़ने से लंबे समय तक रहता है याद
आजकल विद्यार्थी किताब और कागज आधारित पढ़ाई की बजाय मोबाइल, टैबलेट और कंप्यूटर जैसे डिजिटल उपकरणों पर निर्भर हो रहे हैं। गूगल और अन्य प्लेटफॉर्म पर किताबें आसानी से और सस्ते में मिल जाती हैं, जिससे पारंपरिक पढ़ाई की आदत घटती जा रही है। हालांकि यह तरीका सुविधाजनक है, लेकिन इसके नुकसान भी हैं। डिजिटल माध्यम से पढ़ी गई बातें कम समय में भूल जाती हैं, जबकि किताबों से पढ़ा गया ज्ञान लंबे समय तक स्मृति में बना रहता है। किताबें एकाग्रता बढ़ाती हैं और गहराई से समझने में मदद करती हैं, जो डिजिटल माध्यम में अक्सर संभव नहीं हो पाता।
समझने की क्षमता हो रही प्रभावित
ऑनलाइन पढ़ाई में धीमी इंटरनेट स्पीड, शैक्षिक सामग्री की गुणवत्ता में कमी, खराब डिजाइन, अप्रासंगिक जानकारी और ध्यान भटकाने वाले विज्ञापन जैसी समस्याएं आती रहती हैं। सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म और अन्य मनोरंजन सामग्री भी पढ़ाई से ध्यान भटकाते हैं। ऑनलाइन पढ़ाई से समझने की क्षमता प्रभावित हो सकती है, विशेषकर भावनात्मक रूप से जटिल विषयों को समझने में कठिनाई होती है। कॉलेज और विश्वविद्यालयों में पाठ्यपुस्तकों की जगह शॉर्ट नोट्स और पीडीएफ ने ले ली है। इसके अलावा हाल के दिनों में महंगी किताबें और सीमित संसाधन भी छात्रों को मूल किताबों से दूर कर रहे हैं।
किताबों का उपयोग हो गया कम
आज विद्यार्थी कागज या किताब आधारित पढ़ाई का उपयोग धीरे-धीरे कम कर रहे हैं। इसके स्थान पर कंप्यूटर, टैबलेट, मोबाइल और अन्य डिजिटल उपकरणों पर पढ़ने की प्रवृत्ति बढ़ी है। गूगल पर कम कीमत में किताबें उपलब्ध हैं, लेकिन इसके नुकसान भी हैं। डिजिटल माध्यम से पढ़ी गई जानकारी को लंबे समय तक याद रखना कठिन होता है, जबकि किताबों से पढ़ी गई बातें अधिक समय तक स्मृति में बनी रहती हैं। वर्तमान समय में ऑनलाइन प्लेटफॉर्म्स के बढ़ते प्रचलन ने साहित्यिक किताबों के खुदरा विक्रेताओं को गहरा प्रभावित किया है।
पढ़ने का रुझान कम नहीं हुआ है। पहले लोग किताब, अखबार और पत्रिकाएं पढ़ते थे, अब डिजिटल प्लेटफॉर्म पर पढ़ रहे हैं। सभी के लिए पढ़ना आवश्यक है। कई लोग शौक से पढ़ते हैं, लेकिन जीवनभर सीखने के लिए पढ़ना जरूरी है। पढ़ने से लोग देश-दुनिया से अपडेट रहते हैं।
-प्रवीण रंजन, जिला शिक्षा अधिकारी, हजारीबाग
करियर में आगे बढ़ना है तो प्रतिदिन किताब पढ़ने की आदत डालें। शुरूआती दौर में दिलचस्प किताबें पढ़ें, इससे जीवन में सकारात्मक बदलाव आएगा। पढ़ने की ललक बढ़ाने के लिए स्कूलों में मजबूत पठन संस्कृति विकसित किए जाने की जरूरत है। छात्रों की भलाई इसी में है।
-राकेश ठाकुर, अध्यक्ष, पुस्तक व्यवसायी संघ, हजारीबाग
पहले जहां रोज दर्जनों ग्राहक आते थे, अब गिनती के लोग ही आते हैं। बच्चों से लेकर बड़े तक सब अब मोबाइल पर किताबें ढूंढ़ते हैं। आजकलपुरानी किताबों की मांग कम है। -दिनेश कुमार
हम दशकों से यहां किताबें बेच रहे हैं, लेकिन पिछले तीन सालों में व्यापार आधा रह गया है। सबसे बड़ी बात की लोग पहले किताबों की अहमियत समझते थे। अब मुश्किल हो गया है। -विजय यादव
पहले हर सीजन में स्कूल और कॉलेज की किताबों की जोरदार बिक्री होती थी, कई बार लोग दुकान आकर बुक का नाम नोट कर लेते हैं और ऑनलाइन खरीद लेते हैं। यह ट्रेंड गलत हो गया है। -मो अजीज
हमारे यहां साहित्य और प्रतियोगिता की किताबें मिलती हैं। पहले अन्नदा चौक पर भीड़ लगी रहती थी, अब सन्नाटा है। बच्चों का पढ़ाई में मन नहीं लगता, शॉर्टकट चाहिए। इसमें सुधार हो। -महेश मंडल
कभी एनसीईआरटी की किताबों के लिए सुबह से लाइन लगती थी, अब वही किताबें लोग पीडीएफ में डाउनलोड कर लेते हैं। पुराने ग्राहकों की बात अलग थी। वे लोग सच में पुस्तक प्रेमी थे। -रितिक वर्मा
ग्राहक कम और पूछताछ ज़्यादा होती है। लोग सिर्फ जानकारी लेने आते हैं कि कौन सी किताब किस क्लास की है, फिर घर जाकर ऑनलाइन मंगा लेते हैं। इससे पूरी तरह व्यवसाय ठप है। -संजीव कुमार
हमारी दुकान पर कभी साहित्य प्रेमी घंटों बिताते थे, अब वही किताबें धूल खा रही हैं। डिजिटल युग ने पढ़ने की आदत ही बदल दी है। यह गलत परंपरा है। युवा अब मोबाइल में सब ढूंढ़ लेते हैं। -विशाल कश्यप
कोरोना काल के बाद से बिक्री का ग्राफ नीचे ही जा रहा है। पढ़ने की संस्कृति खत्म हो रही है। इसके अलावा कॉलेज के बच्चे शॉर्ट नोट्स और कोचिंग मटेरियल से काम चला लेते हैं। -रिंकू कुमार वर्मा
पुराने ग्राहक अब भी लौटकर आते हैं, युवा पीढ़ी सिर्फ इंटरनेट पर भरोसा करती है। किताबों की खुशबू और पन्ने पलटने का सुख अब शायद ही कोई समझे। आजकल देख बड़ा दुख होता है। -राजू रंजन
अन्नदा चौक की पहचान किताबों की वजह से थी, पर अब वो पहचान भी खत्म हो रही है। पहले हर विषय की किताबों की यहां मांग थी। फिलहाल जो ट्रेंड चल रहा है दुकानदारों के लिए बहुत कठिन है। -अशोक मिश्रा
पीडीएफ और फोटोकॉपी मटेरियल ने किताबों की कीमत खत्म कर दी है। अफसोस की बात है कि अब लोग 500 रुपये की किताब की बजाय 50 रुपये का ज़ेरॉक्स लेना पसंद करते हैं। -पवन कुमार
हमने नई किताबों के साथ पुरानी किताबें भी रखना शुरू किया है, ताकि किसी तरह ग्राहक बने रहें। कुछ स्टूडेंट्स अब भी पुरानी किताबें संस्करण सस्ते में लेकर पढ़ना चाहते हैं और पसंद करते हैं। -रंजन कुमार
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