तो बिहार में अकेले चुनाव लड़ेगी हेमंत सोरेन की पार्टी! महागठबंधन से अलग क्यों तेज हुए सुर?
बिहार विधानसभा चुनाव को लेकर नेता प्रतिपक्ष राजद नेता तेजस्वी यादव की अगुवाई में महागठबंधन की तीन बैठकों में झामुमो को आमंत्रित नहीं किया गया और ना ही 21 सदस्यीय समन्वय समिति में उसे जगह दी गई है। इससे झामुमो खुद को उपेक्षित महसूस कर रहा है।

बिहार विधानसभा चुनाव से पहले झारखंड की सत्तारूढ़ पार्टी झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) ने महागठबंधन से नाराज होकर अपने कार्यकर्ताओं के दम पर चुनाव लड़ने के संकेत दिए हैं। पार्टी महासचिव विनोद कुमार पांडेय ने स्पष्ट कहा है कि यदि महागठबंधन में सम्मानजनक भागीदारी नहीं मिली, तो झामुमो 15 सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारेगा।
बिहार विधानसभा चुनाव को लेकर नेता प्रतिपक्ष राजद नेता तेजस्वी यादव की अगुवाई में महागठबंधन की तीन बैठकों में झामुमो को आमंत्रित नहीं किया गया और ना ही 21 सदस्यीय समन्वय समिति में उसे जगह दी गई है। इससे झामुमो खुद को उपेक्षित महसूस कर रहा है। पार्टी का कहना है कि उसने 2019 में झारखंड विधानसभा चुनाव के दौरान मात्र एक सीट जीतने के बावजूद मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने अपनी सरकार में राजद को मंत्री पद देकर गठबंधन धर्म का पालन किया था। इसके बावजूद बिहार में झामुमो को नजरअंदाज किया जा रहा है। पिछली सरकार में कई चुनौतीपूर्ण समय आए,लेकिन हेमंत के नेतृत्व में महागठबंधन पर आंच तक नहीं आई।
झामुमो नेताओं का कहना है कि 2024 झारखंड विधानसभा चुनाव के दौरान सीट बंटवारे से पहले तेजस्वी यादव और सांसद मनोज झा रांची में पांच से छह दिन प्रवास पर रहे थे। राजद को महागठबंधन में 6 सीट दी गई और सरकार में एक मंत्री पद देकर हेमंत ने गठबंधन धर्म की मिसाल पेश की। झामुमो भी बिहार चुनाव में सम्मान चाहता है, सीमावर्ती सीटों पर झामुमो के प्रभाव को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। 2010 में चकाई सीट से झामुमो के टिकट पर सुमित कुमार सिंह विधायक बने थे, जो वर्तमान में विज्ञान,प्रौद्योगिकी एवं तकनीकी शिक्षा मंत्री हैं।
झामुमो महासचिव विनोद कुमार पांडेय के अनुसार महाधिवेशन में पारित राजनीतिक प्रस्ताव के अनुसार झामुमो को राष्ट्रीय पार्टी के रूप में स्थापित करना है और इस लक्ष्य को पूरा करने के लिए झारखंड के बाद झामुमो बिहार,पश्चिम बंगाल,उत्तर प्रदेश,असम,ओडिशा और छत्तीसगढ़ में भी संगठनात्मक विस्तार की दिशा में कदम बढ़ा चुका है। पूर्व में झामुमो का बिहार में एक विधायक,ओडिशा में छह विधायक और एक सांसद निर्वाचित हो चुके हैं। उत्तर प्रदेश के विदर्भ क्षेत्र,तमिलनाडु,अंडमान,पुडुचेरी, महाराष्ट्र में जिन सीटों पर चुनाव लड़ा,वहां अच्छी स्थिति में रहा।
झामुमो बिहार-झारखंड सीमावर्ती क्षेत्रों जैसे चकाई, झाझा, तारापुर, कटोरिया, बांका,मनिहारी, रूपौली,बनमनखी,जमालपुर और धमदाहा सीटों पर अपनी दावेदारी ठोक रहा है। पार्टी का दावा है कि इन क्षेत्रों में झारखंडी संस्कृति,भाषा और आदिवासी अस्मिता की मजबूत पकड़ है। सीमावर्ती इलाकों में पार्टी का प्रभाव है,जिसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। झामुमो की सक्रियता और आक्रामक रणनीति यह संकेत दे रही है कि पार्टी बिहार में अपना जनाधार बढ़ाने को लेकर पूरी तरह गंभीर है। ऐसे में आगामी चुनाव में झामुमो की भूमिका एक अहम फैक्टर बन सकती है,खासकर सीमावर्ती क्षेत्रों में जहां पार्टी की जमीनी पकड़ बताई जा रही है।