दलमा के जंगल में बाघ, सेंदरा को लेकर ऊहापोह में वन विभाग
दलमा वन्यजीव अभयारण्य में बाघ की मौजूदगी की पुष्टि के बाद, वन विभाग सेंदरा उत्सव को लेकर सतर्क है। आदिवासी समुदाय ने बताया कि वे बाघ का शिकार नहीं करेंगे। सेंदरा पर्व 5 मई को आयोजित होगा। वन विभाग...

दलमा वन्यजीव अभयारण्य में बाघ की मौजूदगी की पुष्टि के बाद, वन विभाग पारंपरिक आदिवासी शिकार उत्सव सेंदरा को लेकर सतर्क है। विभाग ने सेंदरा वीरों को जंगल में बाघ की उपस्थिति की जानकारी दी है। हालांकि, सेंदरा वीरों ने स्पष्ट किया है कि बाघ का शिकार उनकी सदियों पुरानी परंपरा का हिस्सा नहीं है और यदि उन्हें बाघ दिखाई देता है तो वे उसका शिकार नहीं करेंगे।इस बीच दलमा के राजा ने सेंदरा पर्व की तारीख का ऐलान कर दिया है। यह पारंपरिक शिकार उत्सव 5 मई को आयोजित किया जाएगा। बैशाख के महीने में आदिवासी समुदाय जानवरों का शिकार करके यह पर्व मनाता है। बाघ की मौजूदगी के बावजूद सेंदरा की तारीख घोषित होने से वन विभाग की चिंताएं बढ़ गई हैं। अधिकारी इस बात को लेकर सतर्क हैं कि कहीं शिकार के दौरान सेंदरा वीरों और बाघ का आमना-सामना न हो जाए। वन विभाग सेंदरा के दौरान सुरक्षा व्यवस्था कड़ी रखने और सेंदरा वीरों के साथ समन्वय स्थापित करने की योजना बना रहा है।
वन्यजीवों की सुरक्षा का ध्यान रखने की अपील
वन विभाग के अधिकारियों ने सेंदरा समितियों से अपील की है कि वे पारंपरिक शिकार की रस्म को निभाते समय वन्यजीवों की सुरक्षा का ध्यान रखें। खासकर बाघ जैसे संरक्षित जानवरों को किसी भी प्रकार का नुकसान न पहुंचाएं। विभाग का जोर प्रतीकात्मक शिकार पर है।
पारंपरिक हथियार के साथ शिकार पर निकलते हैं लोग
सेंदरा पर्व में आदिवासी समुदाय पारंपरिक हथियारों के साथ जंगल में शिकार के लिए निकलते हैं। यह पर्व उनकी बहादुरी और प्रकृति के साथ उनके गहरे संबंध को दर्शाता है। अब यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि वन विभाग बाघ की उपस्थिति और आदिवासियों की पारंपरिक भावनाओं को ध्यान में रखते हुए सेंदरा पर्व को किस प्रकार सुरक्षित और सुचारू रूप से संपन्न कराता है।
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