पहले बर्खास्त फिर अनिवार्य सेवानिवृत्ति,CISF जवान के मामले में झारखंड HC ने पलटा फैसला
झारखंड हाईकोर्ट के जस्टिस आनंद सेन की अदालत ने दुर्व्यवहार के मामले में सुनवाई करते हुए केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल (सीआइएसएफ) के एक मृत जवान की बर्खास्तगी को बदलते हुए उसे अनिवार्य सेवानिवृत्ति माना है। कोर्ट ने अपने आदेश में कहा है कि जब सबसे गंभीर आरोप ही साबित नहीं हो पाया।

झारखंड हाईकोर्ट के जस्टिस आनंद सेन की अदालत ने दुर्व्यवहार के मामले में सुनवाई करते हुए केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल (सीआइएसएफ) के एक मृत जवान की बर्खास्तगी को बदलते हुए उसे अनिवार्य सेवानिवृत्ति माना है। कोर्ट ने अपने आदेश में कहा है कि जब सबसे गंभीर आरोप ही साबित नहीं हो पाया, तो बर्खास्तगी जैसी कड़ी सजा देना उचित नहीं है। ऐसे में जब याचिकाकर्ता के पति का निधन हो चुका है,तो फिर से अनुशासनात्मक कार्रवाई नहीं हो सकती है। इसलिए बर्खास्तगी की सजा को अनिवार्य सेवानिवृत्ति में बदला जाता है। जवान की पत्नी जयंती देवी उर्मलिया ने याचिका दाखिल की थी। उन्होंने अपने पति संतोष उर्मलिया को बर्खास्त किए जाने के फैसले को चुनौती देते हुए पेंशन की मांग की थी।
संतोष उर्मलिया धनबाद के बीसीसीएल यूनिट में तैनात थे। वर्ष 1997 में कुछ आरोपों के चलते उन्हें निलंबित कर दिया गया। बाद में विभागीय जांच के आधार पर उन्हें वर्ष 1999 में सेवा से बर्खास्त कर दिया गया।उन पर आरोप था कि वह बिना किसी पूर्व सूचना के ड्यूटी पर नहीं आए। उन्होंने कथित तौर पर 11 पिस्टल चुरायी और 36 दिनों तक बिना छुट्टी के अनुपस्थित रहे। पहले के कदाचार के बावजूद व्यवहार में कोई सुधार नहीं दिखा। हालांकि, पिस्टल चोरी का मामला साबित नहीं हुआ और अदालत से उन्हें 1998 में बरी कर दिया।
हाईकोर्ट में सुनवाई के दौरान जयंती देवी की ओर से बताया गया कि उनके पति के विरुद्ध विभागीय जांच ठीक से नहीं हुई। बिना कारण ही जांच अधिकारी को बदला गया और गवाहों को पेश करने की अनुमति नहीं दी गई। पति की मौत के बाद उन्हें पेंशन और बकाया भी नहीं मिला। सुनवाई के बाद अदालत ने याचिका को आंशिक रूप से स्वीकार कर लिया।