बोले रामगढ़ : कातिबों को न पीने का पानी ना शौचालय की व्यवस्था
गोला निबंधन कार्यालय 1897 से स्थापित है, लेकिन आज भी यह बुनियादी सुविधाओं से वंचित है। दस्तावेज नवीसों को बैठने की जगह नहीं है, और महिलाओं को पेयजल और शौचालय की कमी का सामना करना पड़ता है। सरकार के...
गोला। सन 1897 ई. में स्थापित गोला निबंधन कार्यालय 128 वर्षों के लंबे सफर के बाद भी आज बुनियादी सुविधाओं से वंचित है। 2015 तक इस कार्यालय में दिन भर लोगों की भीड़ लगी रहती थी। एक दशक से यहां वीरानी छाई रहती है। यहां कार्यरत निबंधित कातिब पीढ़ी दर पीढ़ी सेवा दे रहे हैं, लेकिन उनके लिए आज तक बैठने की व्यवस्था नहीं हो सकी है। घास-फूस के शेड के नीचे बैठकर कातिब काम करते हैं। यहां आने वाले जरूरतमंदों खास कर महिलाओं को पेयजल और शौचालय के लिए परेशानियों का सामना करना पड़ता है। रजिस्ट्री कार्यालय आने वाले लोगों ने अपनी समस्याएं हिन्दुस्तान की बोले रामगढ़ टीम से साझा की।
128 वर्ष पूर्व 1897 में ब्रिटिश शासनकाल में स्थापित गोला निबंधन कार्यालय बुनियादी सुविधाओं से वंचित है। यहां न पानी की व्यवस्था है और न ही शौचालय की सुविधाधा उपलब्ध है। जबकि विवाह, जमीन रजिस्ट्री, बंटवारे समेत इससे संबंधित सभी कार्यों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले दस्तावेज नवीस को भी कई तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। जमीन के क्रेता-विक्रेता के बीच की कड़ी बनने वाले दस्तावेज नवीस कातिब अपने अधिकारों में कटौती से दुखी हैं। जबकि राजस्व वृद्धि में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका होती है। गोला में जब निबंधन कार्यालय की स्थापना हुई, उस समय इसका मुख्यालय पुरुलिया पश्चिम बंगाल था। शुरु में इसके अधिनस्थ गोला, रामगढ़ सहित बोकारो गर्गा पुल तक, गोमिया, पेटरबार व जरीडीह थाना तक का एरिया आता था। यहां पर दिन भर लोगों की भीड़ लगी रहती थी। 2008 में जब रामगढ़ जिला बना तो तत्कालिन मुख्यमंत्री शिबू सोरेन के समय यह जिला अवर निबंधन कार्यालय बना। प्रत्येक वर्ष यहां 12 से 13 हजार जमीन की रजिस्ट्री होती थी। जिससे लाखों का राजस्व प्राप्त होता था। 2015 में जब रघुवर दास मुख्यमंत्री बने तो जिला अवर निबंधन कार्यालय को अस्थाई रुप से जिला मुख्यालय रामगढ़ में स्थानांतरित कर दिया गया। अब यह कार्यालय सिर्फ गोला प्रखंड क्षेत्र के लिए रह गया है। इसके बाद से यहां की दुर्दशा शुरु हुई। कार्यालय तो हर दिन खुलता है, लेकिन सप्ताह में सिर्फ दो दिन काम होता है। वर्तमान में यहां प्रति वर्ष महज एक से डेढ़ सौ रजिस्ट्री होता है। दस्तावेज नवीस संघ के अध्यक्ष सनत कुमार सिन्हा, सुदीप कुमार सिन्हा, अनिल कुमार सिन्हा, बिपीन बिहारी प्रसाद उर्फ बच्चु बाबु, मधु सुदन श्रीवास्तव, मो इजहारउल्लाह ने बताया कि सरकार की रोज रोज बदल रही नीतियों से हमें परेशानी उठानी पड़ रही है। काम करने के लिए जगह भी उपलब्ध नहीं है। सरकारी मापदंड के अनुसार दस्तावेज नवीसों को डिजिटल सिग्नेचर का अधिकार देकर कागजी प्रक्रिया में स्थान दिया जाए। ताकि दस्तावेज नवीस की समस्याओं का समाधान हो सके। सरकारी नीति से दस्तावेज नवीसों के आय में भारी कमी हुई है और महंगाई बेतहाशा बढ़ गई है। कंप्यूटर, कॉपी, पेन, पेपर के दामों में काफी वृद्धि हो गई। लेकिन दस्तावेज लेखकों के पारिश्रमिक में वृद्धि नहीं हुई। आर्थिक तंगी के कारण अपने बच्चों को बेहतर शिक्षा नहीं दे पा रहे हैं। सरकार को निबंधन कार्यालय परिसर में दस्तावेज लेखकों के लिए जमीन उपलब्ध करवा कर उसमें रुम बनाया जाए। साथ ही पेयजल व शौचालय बनाया जाए। ताकि जमीन के क्रेता व विक्रेता को बेहतर सुविधा मिल सके। दस्तावेज नवीस संघ ने विभाग से मिलकर सुविधाओं की मांग रखी है। लेकिन इसका हल नहीं निकल पाया है। संघ के मो एकरामुल हक, निखील कुमार दांगी, दिनेश महतो ने बताया कि लाइसेंसधारी कातिबों को कंप्यूटराइज्ड निबंधन प्रक्रिया में नहीं रखा गया है। उन्होंने आईडी देकर ई निबंधन प्रक्रिया में सहभागिता देने की मांग करते हुए कहा कि इससे दस्तावेज लेखकों को अधिक पारिश्रमिक हासिल होगा। सरकारी सुविधा का लाभ भी हमें नहीं मिलता है। कातिबों को निबंधन विभाग में समायोजित करे सरकार सरकार योग्यता व अनुभव के आधार पर दस्तावेज लेखकों को निबंधन विभाग में समायोजित करने की व्यवस्था होनी चाहिए। सरकार के बदलते नीतियों के कारण लेखक बेरोजगारी होते जा रहे हैं। सुरक्षा की गारंटी मिलने के साथ आरक्षण का भी लाभ मिलना चाहिए। अधिकांश कातिबों को बैठने तक के लिए जगह उपलब्ध नहीं है। जहां तहां घांस फुस की झोपड़ियों में बैठ कर हमें लिखना पड़ता है। जमीन के बारे में जितनी जानकारी दस्तावेज नवीसों को है, शायद ही किसी और को को होगा। इसके बाद भी सरकार हमारे अनुभव को तरजीह नहीं दे रही है। पानी खरीद कर पीते हैं काम करनेवाले लोग गोला रजिस्ट्री ऑफिस में पानी की कोई व्यवस्था नहीं है। जिसके कारण यहां काम करने वाले डीड राइटर अपने बैठक स्थल पर आते समय प्रत्येक दिन सभी पानी की व्यवस्था खुद से करते हैं। डीड राइटरों को हर रोज सिर्फ पानी में 50 से सौ रुपए पानी पर खर्च करना पड़ता है। जमीन रजिस्ट्री कराने वाले लोग भी अपने साथ पानी लेकर आते हैं, या पानी खरीद कर अपनी प्यास बुझाते हैं। हालांकि पानी हर व्यक्ति की जरूरत है। चाहे वह आम हो या फिर खास। हर कोई पानी खरीदकर अपनी प्यास बुझाते हैं। यहां कार्यरत सरकारीकर्मी भी खुद घर से पानी लाते हैं। दाखिल खारिज की भी हो व्यवस्था सरकार के राजस्व वृद्धि में दस्तावेज लेखक अहम भूमिका निभाते हैं। इसके बाद भी सरकार की ओर से दस्तावेज लेखकों को कोई सुविधा नहीं मिलती है। रजिस्ट्री कार्यालय में दाखिल खारिज की व्यवस्था के साथ दस्तावेज नवीसों के रजिस्ट्री में प्रयोग होने वाले लिखने के सभी सामान पर अनुदान मिलना चाहिए। पारिश्रमिक में वृद्धि नहीं होने से महंगाई के इस दौर में महंगे सामानों को खरीदने में उन्हें काफी परेशानी होती है। हमें भी असंगठित क्षेत्र के लोगों की तरह सरकारी सुविधा मिलनी चाहिए। शिक्षा के अधिकार कानून के तहत हमारे बच्चों का प्राइवेट स्कूलों में नामांकन होना चाहिए। साथ ही व्यवसाय करने के लिए बैंकों से लोन मिलना चाहिए। हमारे लिए सरकारी कैंटीन होनी चाहिए। दस्तावेज नवीसों को मिले कार्यालय सभी निबंधित दस्तावेज नवीस को अपना कार्यालय होना चाहिए। इसकी व्यवस्था जिला प्रशासन और सरकार को करनी चाहिए। ताकि दस्तावेज नवीस बेहतर ढंग से कार्य कर सके। सभी कागजातों का डिजिटाइजेशन होना चाहिए। इससे रैयतों की परेशानी कम होगी। जमीन रजिस्ट्री होने के साथ दाखिल खारिज की व्यवस्था सरकार को करनी चाहिए। ताकि जमीन विवाद के मामलों में कमी हो सके। निबंधन कराने के लिए आने वाले लोगो की सुविधाओं का भी ख्याल रखना जरुरी है। दस्तावेज नवीसों के साथ क्रेता-विक्रेता के बैठने के लिए जगह होनी चाहिए। वर्तमान में रजिस्ट्री कार्यालय की स्थिति काफी जर्जर हो गई है। कार्यालय की मरम्मत व रंग रोगन कर दुरुस्त करना जरुरी है। रजिस्ट्री ऑफिस में पानी के लिए आम व खास सभी त्रस्त हैं। कार्यालय आने वाले लोग पानी खरीदकर या फिर दूषित पानी पीने को मजबूर हैं। यहां शुद्ध पेयजल की व्यवस्था अविलंब हो। -संतोष चौधरी रजिस्ट्री कार्यालय में डीड राइटरों के लिए न बैठने की सुविधा है और न पेयजल व शौचालय की। खुद के पैसे से पानी मंगाना पड़ता है। डीड राइटर 10 बजे सुबह ऑफिस पहुंचने लगते हैं। -रमाशंकर महतो बिजली की कोई व्यवस्था नहीं है। सर्वर हमेशा डाउन रहता है। बिजली कटने पर गर्मी में बिना पंखे के काम करना पड़ता है। बड़ी समस्या कातिबों के लिए कमरे की व्यवस्था नहीं होना है। -मो एकरामुल हक सरकारी कर्मियों का हाल बेहाल है तो फिर यहां आने वाले लोगों की स्थिति का अंदाजा लगाया जा सकता है। लोग पानी के लिए तरस जाते हैं। विभाग को इसका समाधान करना चाहिए। -बसंत कुशवाहा शुक्रवार को जमीन रजिस्ट्री कराने ऑफिस पहुंचे दर्जनों महिला पुरुष को नहीं पता था कि यहां पीने के पानी की व्यवस्था नहीं है। पूछा तो सभी ने कहा कि बाहर होटल है, वहां पानी मिलेगा। -रमेश महतो रजिस्ट्री ऑफिस से अच्छा प्रखंड सह अंचल कार्यालय है। जहां आरओ का पानी और कई जगह बोरिंग की पानी की व्यवस्था है। दुर्भाग्य है कि यहां लाखों राजस्व वसूल होता है। लेकिन पानी नहीं है। -देवब्रत घोष स्टाम्प-रजिस्ट्रेशन कार्यालय मुख्यरूप से जनता से संबंधित है। सभी अधिकारियों और कर्मचारियों का बायोमेट्रिक उपस्थिति अनिवार्य रुप से होना चाहिए। -अनुप पोद्दार निबंधन कार्यालय परिसर में एसबेस्टस व पुआल डाल कर उसमें काम करते हैं। गर्मी और बरसात में काफी परेशानी झेलनी पड़ती है। डीडराइटरों के लिए कमरे की व्यवस्था जरुरी है। -आशीष घोष कार्यालय में शौचालय की व्यवस्था नहीं रहने से महिलाओं को परेशानियों का सामना करना पड़ता है। खरीदकर पानी तो पी लेती हैं। लेकिन शौचालय के लिए उन्हें काफी दिक्कत होती है। -नागेश्वर महतो निबंधन कार्यालय में स्टांप पेपर सरकारी कीमत से अधिक लिए जाते हैं। इस पर कार्रवाई होनी चाहिए। साथ ही कार्यालय परिसर की साफ सफाई पर विभाग को ध्यान देना चाहिए। -शुभम सरोगी इस निबंधन कार्यालय की स्थापना अंग्रेजों के जमाने में हुआ है। यहां से सरकार को लाखों रुपए का राजस्व प्राप्त होता है। विभाग को यहां आने वाले लोगों के समस्याओं पर ध्यान देना चाहिए। -भरत कुमार वर्षों से दस्तावेज लेखक प्रशासनिक उदासीनता के शिकार हैं। विभाग को सिर्फ सरकारी राजस्व उगाही में ध्यान रहता है। दस्तावेज लेखकों की समस्या दूर करने में विभाग को काई रुचि नहीं है। -मंजु महतो राजस्व की प्राप्ति में कातिबों का महत्वपूर्ण योगदान होता है। हर वित्तीय वर्ष में राजस्व के टार्गेट को पूरा करने में कातिबों की सहायता ली जाती है। इसके बाद भी कातिब उपेक्षा के शिकार हो रहे हैं। दस्तावेज लेखकों को व्यवस्थित रूप से दस्तावेज लेखन के लिए विभाग की ओर से बेहतर सुविधा नहीं दी गई। इस ओर विभाग ने कभी गंभीरता से विचार नहीं किया। -जलेश्वर महतो, जिप सदस्य,गोला गर्मी में बिना पंखे के काम करना कतिबो की विवशता बन गई है। कातिबों के लिए कमरे की व्यवस्था नहीं होना समस्या है। दूसरे जगहों में कातिबों के लिए बकायदा कमरे बने हुए हैं। लेकिन 128 वर्ष पुराने इस निबंधन कार्यालय में आज तक बैठने तक की व्यवस्था नहीं हो सकी है। मैं सरकार के पास सारी समस्याओं को रखूंगी और समुचित व्यवस्था उपलब्ध कराने का प्रयास करुंगी। - ममता देवी,विधायक,रामगढ़
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