बेल में समानता के सिद्धांत को यंत्रवत लागू नहीं किया जा सकता : हाईकोर्ट
समानता के सिद्धांत लागू करने के पूर्व तथ्यात्मक पहलू की जांच की जानी चाहिए, हाईकोर्ट ने एनआईए कोर्ट के आदेश में हस्तक्षेप करने से इनकार किया

रांची। विशेष संवाददाता झारखंड हाईकोर्ट ने एक आदेश में स्पष्ट किया है कि जमानत में समानता के सिद्धांत को यंत्रवत लागू नहीं किया जा सकता, बल्कि तथ्यात्मक स्थितियों और आरोपी की भूमिका पर विचार किया जाना चाहिए। इस बात पर कोई विवाद नहीं है कि समानता के सिद्धांत को जमानत के मामले में भी लागू किया जाता है, लेकिन समानता के सिद्धांत को लागू करते समय आरोप के तथ्यात्मक पहलू और प्रकृति की जांच की जानी चाहिए, जिससे समानता मांगी जा रही है। जस्टिस सुजीत नारायण प्रसाद की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने इसके साथ ही अदालत ने मानव तस्करी के आरोपी मनोज जायसवाल की अपील याचिका खारिज कर दी और एनआईए कोर्ट के जमानत खारिज किए जाने के आदेश को बरकरार रखा।
प्रार्थी मनोज जायसवाल ने एनआईए कोर्ट के आदेश को हाईकोर्ट में चुनौती दी थी। प्रार्थी की ओर से कहा गया था कि वह 20 मई 2023 से न्यायिक हिरासत में है और मुकदमे के निपटारे में अनुचित देरी हो रही है। इस कारण उसे जमानत मिलनी चाहिए। इस मामले में हाईकोर्ट ने दो अन्य आरोपियों को पहले ही जमानत दी है, इस कारण वह भी जमानत का हकदार है।
एनआईए की ओर से इसका विरोध करते हुए तर्क दिया गया कि अपीलकर्ता की भूमिका सह आरोपियों से अलग थी। सह आरोपी पर केवल पीड़ितों की सेवाएं लेने का आरोप था। अपीलकर्ता दो नाबालिग पीड़ितों की तस्करी में सीधे तौर पर शामिल था, जिनमें से एक का पता नहीं चल पाया है।
अदालत ने कहा कि न्यायालय अपनी शक्तियों का मनमाने तरीके से प्रयोग नहीं कर सकता। उसे जमानत देने से पहले परिस्थितियों की समग्रता पर विचार करना होगा। केवल यह कहना कि किसी अन्य आरोपी को जमानत दी गई, यह निर्धारित करने के लिए पर्याप्त नहीं है कि समानता के आधार पर जमानत देने का मामला स्थापित हुआ है या नहीं। न्यायालय ने समानता के सिद्धांत को लागू करने का कोई आधार नहीं पाया और जमानत से इनकार करने के पहले के आदेश में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया। साथ ही आपराधिक अपील खारिज कर दी।
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