पेट दर्द हमेशा नहीं होता बहाना, जानें क्या है 'ADHD' और इसके लक्षण stomach ache is not always an excuse know what is ADHD and its symptoms, हेल्थ टिप्स - Hindustan
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पेट दर्द हमेशा नहीं होता बहाना, जानें क्या है 'ADHD' और इसके लक्षण

हमारी दुनिया में हम से जुड़ी क्या खबरें हैं? हमारे लिए उपयोगी कौन-सी खबर है? किसने अपनी उपलब्धि से हमारा सिर गर्व से ऊंचा उठा दिया? ऐसी तमाम जानकारियां हर सप्ताह आपसे यहां साझा करेंगी, जयंती रंगनाथन

Manju Mamgain हिन्दुस्तानFri, 13 June 2025 02:19 PM
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पेट दर्द हमेशा नहीं होता बहाना, जानें क्या है 'ADHD' और इसके लक्षण

साइंटिफिक रिपोर्ट जर्नल में प्रकाशित खबर के अनुसार जो लड़कियां एडीएचडी (अटेंशन डेफिसिट हाइपरएक्टिविटी डिसऑर्डर) से पीड़ित होती हैं, उन्हें पेट से संबंधित दिक्कतों से अधिक जूझना पड़ता है। अकसर वे कब्ज की शिकायत करती हैं और उन्हें पाचन की भी दिक्कत रहती है। एडीएचडी की समस्या से पीड़ित 7 प्रतिशत किशोरियों में यह आशंका होती है कि युवावस्था गुजरने के बाद भी उनकी दिक्कतें बनी रहें। इस अध्ययन के अनुसार तनाव, अवसाद, मोटापा और पढ़ाई में मन ना लगना जैसी और भी दिक्कतें इस दर्द के लिए जिम्मेदार हो सकती हैं। समय रहते इस बीमारी को कम या दूर भी किया जा सकता है। लेकिन जरूरी है कि इस बीमारी की जद में आई किशोरियों के साथ सहानुभूतिपूर्ण व्यवहार किया जाए।

इस देश में औरतें प्रेग्नेंट होने से क्यों डरती हैं?

बीबीसी में प्रकाशित एक खबर के अनुसार विश्व में नाइजीरिया ऐसा देश है, जहां औसतन हर सात मिनट में एक औरत गर्भावस्था में या बच्चे को जन्म देते समय मर जाती है। बीबीसी के साथ इंटरव्यू में चौबीस साल की नफीसा सलाहू कहती हैं, ‘मुझे मां बनना तो था, पर मैं बहुत डरी हुई थी। हमारे देश में अधिकांश युवतियां बच्चे को जन्म देते हुए मौत का शिकार हो जाती हैं।’ खुद उसे बच्चे को जन्म देने में दिक्कत आई। इसकी क्या वजह है? जाहिर है चिकित्सीय सेवाओं की लचर व्यवस्था। पिछले साल वहां लगभग 75 हजार महिलाओं की मौत बच्चे को जन्म देने के दौरान हुई। इस भयानक आंकड़े को देखते हुए संयुक्त राष्ट्र संघ और विश्व स्वास्थ्य संगठन सतर्क हुए हैं और नाइजीरिया में बेहतर चिकित्सा सेवा मुहैया करवाने का काम शुरू किया जा रहा है। हमारे देश में पचास साल पहले तक गर्भवती महिलाओं में मृत्यु दर काफी ऊंची थी, जो अब घट कर मात्र 3 प्रतिशत रह गयी है।

महिलाएं मुश्किल वक्त के लिए बचत करके नहीं चलतीं

यह बात तो सच है कि हमारे घरों में आड़े वक्त पर हमारी अम्मा और घर की दूसरी बुजुर्ग महिलाएं ही अपने बचाए पैसे से काम चलाती थीं। ये पैसे वो कभी आटे के मर्तबान में छिपा कर रखतीं, तो कभी अटारी में। लेकिन जब महिलाएं व्यवसाय करने निकलती हैं, तो बचत को लेकर दूरदर्शी नहीं होतीं। हाल ही में हुए अध्ययन में यह बात सामने आई है। माइक्रोसेव कंसल्टेंसी की नई रिपोर्ट के मुताबिक लघु और मध्यम स्तर पर उद्योग करने वाली 45 प्रतिशत महिलाएं मुश्किल वक्त के लिए बचत या निवेश करके नहीं चलतीं। लगभग डेढ़ हजार महिला उद्यमियों से बातचीत के बाद निकले इस निष्कर्ष के अनुसार महिलाएं अपने उद्यम को लेकर जितनी भी गंभीर क्यों ना हों, वो आगे की नहीं सोचतीं। भविष्य में कभी मुसीबत आए, तो उन्हें पैसों के लिए जूझना पड़ता है। इस अध्ययन का मकसद यह जानना था कि महिला उद्यमियों को काम करने में कैसी दिक्कतें आती हैं और उन्हें किस तरह दूर किया जा सकता है। जेपी माॅर्गन के सहयोग से किए गए इस अध्ययन के बाद यह नतीजा निकाला गया है कि देश के प्रमुख दस शहरों में जल्द ही महिला उद्यमियों के लिए वर्कशॉप आयोजित की जाएगी, जिसमें उन्हें निवेश, बचत और भविष्य के रोडमैप को लेकर प्रशिक्षित किया जाएगा।

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