क्यों झूठ बोलने लगते हैं बच्चे, जानें कैसे छूटेगी ये गंदी आदत
- दुनिया भर के अभिभावक बच्चों को परवरिश देते वक्त उन्हें झूठ न बोलने की सीख देते हैं। बावजूद इसके हर बच्चा कभी-न-कभी, तो कुछ अकसर झूठ बोलते हैं। आखिर झूठ बोलने का बाल मनोविज्ञान क्या है और कैसे बच्चे की इस आदत को छुड़ाएं, बता रही हैं स्वाति गौड़

बच्चों को सही परवरिश देने की यात्रा आसान नहीं होती। इस दौरान माता-पिता को बहुत-सी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। मनोविज्ञान के अनुसार अकसर हमारा दिल उस काम को करने के लिए विशेष रूप से मचलता है, जिस पर पाबंदी लगी हो। यह बात बच्चों पर भी लागू होती है। ज्यादातर बच्चे वो काम करने का प्रयास जरूर करते हैं, जिसे ना करने की हिदायत उन्हें दी जाती है और पकड़े जाने पर अपनी गलती छिपाने के लिए झूठ बोलने लगते हैं। जैसे बहुत से छोटे बच्चे मिट्टी खाते हैं, लेकिन पूछे जाने पर फौरन मना कर देते हैं। छोटी-छोटी शैतानियों पर बच्चे का झूठ बोलना बचपन का एक सामान्य व्यवहार हो सकता है। लेकिन जब बात-बात पर झूठ बोलना बच्चे की आदत में शामिल हो जाए तो यह चिंता की बात बन जाती है। यदि समय रहते इस आदत को ना सुधारा जाए तो बड़े होने पर यह आदत माता-पिता के लिए गंभीर समस्या बन सकती है। यह बेहद जरूरी है कि बचपन से ही बच्चों के व्यवहार और आदतों पर पूरा ध्यान रखा जाए अन्यथा बालपन की यह आदत किशोरावस्था आने तक बड़ा रूप ले सकती है। पर, सबसे पहले यह समझना जरूरी है कि बच्चों में झूठ बोलने की आदत कैसे आती है:
क्यों झूठ बोलते हैं बच्चे?
मनोविज्ञान के अनुसार बच्चों के आसपास का माहौल उनके व्यक्तित्व और आदतें निर्धारित करने में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। दूसरे शब्दों में कहें तो बच्चे की पहली पाठशाला उसका घर और पहले शिक्षक उसके अभिवाभक होते हैं। जैसे वह उन्हें करते हुए देखता है, खुद भी उन्हीं आदतों को अपना लेता है। हालांकि माता-पिता अपनी तरफ से अच्छी परवरिश देने का पूरा प्रयास करते हैं, लेकिन वे इस बात को भूल जाते हैं कि उनकी छोटी-छोटी आदतें भी जाने-अनजाने में बच्चों को बहुत बड़े स्तर पर प्रभावित करती हैं। यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया, अमेरिका द्वारा किए गए एक शोध में पाया गया कि पांचवी कक्षा तक के जिन बच्चों ने किसी वयस्क को झूठ बोलते अकसर सुना था, उनके अंदर अपनी गलती छिपाने के लिए झूठ बोलने की आदत बढ़ गई थी। यानी बेशक आप अपने बच्चे को हमेशा सच बोलने का पाठ पढ़ाती हैं, लेकिन अगर बच्चे ने आपको किसी बात पर झूठ बोलते देखा है तो संभव है कि उसे भी ऐसा करने की आदत पड़ जाए। इसके अलावा जब बच्चे अपने परिवार या माता-पिता के बीच सुरक्षित महसूस नहीं करते हैं तो नई-नई कहानियां बनानी शुरू कर देते हैं। कई बार बड़े बच्चे अपने माता-पिता को तनाव से बचाने के लिए भी किसी स्थिति को लेकर झूठ बोल देते हैं। इन सबके अलावा टीवी और इंटरनेट पर उपलब्ध सामग्री भी बच्चों की आदतें और व्यवहार को बड़े स्तर पर प्रभावित करती हैं। इनके अलावा भी ऐसे बहुत से अन्य कारण हैं, जिनकी वजह से बच्चे झूठ बोलने लगते हैं। कोई गलती हो जाने पर सजा के डर से बच्चे सच छिपाने की कोशिश करने लगते हैं। कभी-कभी दूसरों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करने के लिए भी बच्चे काल्पनिक कहानियां गढ़ने लगते हैं। किशोरावस्था में सामाजिक दबाव के कारण और अपनी छवि बेहतर दिखाने के लिए भी बच्चे अपने बारे में बढ़ा-चढ़ा कर बताने लगते हैं। कल्पना और वास्तविकता में अंतर ना समझ पाने की वजह से छोटे बच्चे अकसर गलत तथ्य प्रस्तुत करने लगते हैं। पारिवारिक माहौल अच्छा ना होने पर बच्चे तनाव में आ जाते हैं। ऐसा होने पर वो अपनी एक आभासी दुनिया बना लेते हैं और उसी को सच मानने लगते हैं। हालांकि बच्चों में झूठ बोलने की आदत माता-पिता के लिए चिंता का विषय हो सकती है, पर सही रणनीति बनाकर इससे छुटकारा पाया जा सकता है।
बातचीत से निकलेगा हल
बालपन से ही बच्चों के साथ खुला और सहज संवाद स्थापित करें ताकि वह आपके साथ अपनी हर समस्या और बात बिना किसी भय के साझा कर सके। उदाहरण के लिए, बच्चे के स्कूल से आने पर मुस्कुराकर उसका स्वागत करें और पूरी दिलचस्पी के साथ उसके दिन का ब्यौरा लें। इससे बच्चे को महसूस होगा कि आप उसके जीवन में कितनी दिलचस्पी रखती हैं। जो अच्छी आदतें आप उसे सिखाना चाहती हैं, उन्हें निर्देश के रूप में समझाने की बजाय आसपास के उदाहरण देकर बातों में समझाएं।
संयम से लें काम
बच्चों का मन बहुत चंचल होता है, इसलिए जरूरी नहीं कि कोई बात उन्हें एक ही बार में समझ आ जाए। बालपन से लेकर किशोरावस्था तक बच्चे अपने आसपास के माहौल से रोज कुछ नया अनुभव लेते हैं, जो उनके अंदर कौतूहल और जिज्ञासा भरे रखता है। ऐसे में धैर्य से काम आपको ही लेना होगा। अपने बच्चे की किसी बात पर फौरन प्रतिक्रिया देना उन्हें आपसे दूर कर सकता है। बेहतर यही होगा कि आप शांत होकर उनकी बात सुनें और यदि उससे सहमत ना हों तो भी आराम से ही उन्हें अपना नजरिया समझाने का प्रयास करें।
बनें सकारात्मक रोल मॉडल
छोटे बच्चे अकसर अपने माता-पिता और बड़ों की नकल करते हैं, जो समय के साथ उनकी आदत का हिस्सा बन जाता है। बच्चों के सामने एक आदर्श और सकारात्मक व्यक्तित्व वाली अपनी छवि प्रस्तुत करें ताकि वह आपसे अच्छी आदतें सीखें। जो नियम आप उनके लिए बनाएं, स्वयं भी उन पर अमल करें। जब बच्चे आपको सच बोलते देखेंगे तो खुद भी ऐसा करने के लिए प्रेरित होंगे।
नाहक दबाव ना बनाएं
हरेक बच्चा दूसरे बच्चे से अलग होता है। लेकिन अकसर माता-पिता समाज के सामने अपने बच्चे को सर्वश्रेष्ठ दिखाने के लिए उससे गैरवाजिब अपेक्षाएं रखने लगते हैं। जिसके परिणामस्वरूप बच्चा बहुत भारी दबाव में आ जाता है और उस स्थिति से बचने के लिए झूठ बोलने लगता है। यह दबाव उसकी मानसिक सेहत को पूरी तरह खोखला कर सकता है। बेहतर यही होगा कि आप बच्चे पर अपने सपने पूरे करने का बोझ लादने की बजाय उसे अपनी क्षमताओं के अनुसार सहज होकर आगे बढ़ने दें। याद रखिए, बच्चे में झूठ बोलने की आदत अकारण नहीं आ सकती। यदि वह बार-बार झूठ बोल रहा हो तो गुस्सा करने की बजाय उसके पीछे का कारण जानने का प्रयास करें और धैर्य से काम लें। जब बच्चा देखेगा कि सच बोलने पर उसे सजा की बजाय प्यार और समर्थन मिल रहा है, तो वह झूठ बोलने की आदत धीरे-धीरे खुद ही छोड़ने लगेगा।
गलतियां स्वीकारने की आदत
बचपन में गलतियां होना बहुत स्वभाविक-सी बात है। पर, बहुत से माता-पिता अपने बच्चों को अनुशासन में रखने के लिए हर छोटी-छोटी गलती पर उन्हें सजा देने लगते हैं, जो ठीक नहीं है। इससे बच्चे के मन में सजा का डर बैठ जाता है और वो अपनी गलती छिपाने के लिए झूठ का सहारा लेने लगता है। इसकी बजाय बच्चे को भरोसा दिलाएं कि अपनी गलती मान लेने पर आप उसे सजा देने की बजाय उसका समाधान खोजने में उसकी मदद करेंगे। इससे बच्चे में आपके प्रति भरोसा बढ़ेगा।
नियम और अपेक्षाएं स्पष्ट रखें
सभी माता-पिता अपने बच्चों को पूरे लाड़-प्यार से पालते हैं और उनकी जरूरतों का ध्यान रखते हैं। लेकिन इन सबके बीच नियमों की अनदेखी नहीं होनी चाहिए। घर में खुला और सहज माहौल बनाकर रखें, जहां बच्चे किसी बात के प्रति अपनी असहमति खुलकर व्यक्त कर सकें। पर, साथ ही उन्हें ईमानदारी का महत्व भी समझाएं ताकि अपनी बात मनवाने के लिए वह झूठ का सहारा ना लें। उन्हें पारिवारिक मूल्यों से अवगत करवाएं और अनुशासन का महत्व भी सिखाएं।
प्रेरक उदाहरणों का इस्तेमाल
कुछ शोधों में पाया गया है कि बच्चों को अच्छी बातें सिखाने में सकारात्मक और प्रेरक कहानियां बहुत काम आते हैं। जैसे सिर्फ ये कहना कि, ‘झूठ बोलना एक बुरी आदत है’ की बजाय ईमानदारी के फायदे वाली कोई कहानी उन्हें ज्यादा आकर्षित करेगी। सिर्फ शब्दों से समझाने की बजाय उन्हें ऐसी घटनाओं या किताबों से अवगत करवाएं, जिनमें ईमानदारी और सच्चाई की जीत जैसी बातें शामिल हों।
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