फादर्स-डे स्पेशल: ऑफिस के साथ बच्चों का टिफिन भी बनाते हैं आजकल के पापा, क्या आपने नोटिस किए ये 7 नए बदलाव
बदलते वक्त के साथ पिता भी बदल रहे हैं। कल और आज के पिता के बीच एक सकारात्मक फर्क नजर आता है, जो पिता और बच्चे के रिश्ते को बेहतर बना रहा है। फादर्स-डे के मौके पर रिश्ते में आए इस बदलाव पर नजर डाल रही हैं दिव्यानी त्रिपाठी

एक दौर था, जब पिता शब्द का जिक्र आते ही हमारे जेहन में एक सख्त, कम बोलने वाले और अनुशासन प्रिय इंसान की छवि उभरती थी। वो जो देर रात तक काम करता था, बच्चों के स्कूल-टीचर से नहीं मिलता था और घर में डर के साथ सम्मान की मूर्ति माना जाता था। पर, बीते कुछ वक्त में इस रिश्ते की छवि में बदलाव नजर आने लगा है। इसे एक नया दौर कहें तो गलत नहीं होगा। आज के पापा की सोच में, अंदाज में और रिश्तों को निभाने के तौर-तरीकों में बदलाव नजर आने लगा है। कल तक सिर्फ परवरिश में आर्थिक भूमिका अदा करने वाले पिता ने बच्चे की देखभाल में हिस्सेदारी निभानी शुरू कर दी है। अब वे डाइपर बदलने लगे हैं और बीच रात में बच्चे संभालने भी लगे हैं। हमेशा चुप रहने वाले पिता अब अपनी भावनाओं को जाहिर करने लगे हैं। उनमें वो तमाम खूबियां हैं, जो नए जमाने के पिता को पुराने दौर के पिता से अलग बनाती हैं।
भावनाएं करते हैं जाहिर
आई लव यू, तुम मेरी जान हो... सरीखे शब्द बच्चों ने शायद ही अपने पिता से सुने हों। ऐसा नहीं है कि पहले उनमें जज्बात नहीं थे। पर, उन्हें भावनाएं जताने में झिझक होती थी। पर, आज की तसवीर बदल चुकी है। आज के पिता अपने जज्बात दिखाने में पीछे नहीं रहते। वो अपने बच्चे को गले लगाते हैं और उसे आई लव यू बेटा कहने में कोई झिझक महसूस नहीं करते। मनोचिकित्सक डॉ. उन्नति कुमार कहते हैं कि आज के पिता को अहसास हो चुका है कि भावनाओं को जाहिर करना कमजोरी नहीं, बल्कि एक खूबसूरत रिश्ता निभाने का जरिया है।
बन रहे हैं साथी
आज के पिता सिर्फ ऑफिस का बोझ नहीं उठाते, वो घर और बच्चों की जिम्मेदारी भी उतनी ही बखूबी निभाते हैं। वो बच्चों का टिफिन बनाते हैं, उन्हें स्कूल छोड़ने जाते हैं, पेरेंट-टीचर मीटिंग में जाते हैं और अगर जरूरत हो तो रात को बच्चे को सुलाने तक की जिम्मेदारी निभाते हैं। वे इस क्रम में सिर्फ अपनी पत्नी की मदद नहीं करते बल्कि सही अर्थों में जिम्मेदारी साझा करना सीख गए हैं।
पापा से अब बातचीत है संभव
पुराने समय में पिताजी का आदेश अंतिम होता था। बच्चे से जुड़ा हर फैसला वही लेते थे। पर, आज के पिता ने बच्चों की बातों को सुनना शुरू कर दिया है। वे बच्चे की बात को भी महत्व देते हैं और उनसे खुलकर संवाद करते हैं। डॉ. उन्नति की मानें तो आज के पिता जानते हैं कि आज के बच्चों की दुनिया अलग है और उसमें कदम से कदम मिलाकर चलने के लिए आदेश नहीं बल्कि बातचीत की जरूरत है।
समझने लगे हैं मेंटल हेल्थ को
पहले पिता के लिए बच्चों को परवरिश देने में डिप्रेशन या एंग्जायटी जैसे शब्द बेमानी होते थे। लेकिन आज के पिता समझते हैं कि बच्चों की मानसिक सेहत भी उतनी ही अहम है, जितनी शारीरिक सेहत। अगर बच्चा चुपचाप है, तो पिता उसके मन को टटोलते हैं और उसे बिना डांटे, बिना टोके अपनी बात कहने का हौसला देते हैं। वे अपने बच्चों के दोस्त बन चुके हैं। बच्चों की दुनिया में दिलचस्पी लेते हैं और अपनी दुनिया के दरवाजे उनके लिए खोलते हैं।
तकनीक में रहते हैं अपडेटेड
आज के बच्चे डिजिटल दुनिया में जीते हैं। पापा को मालूम है कि अगर उन्हें बच्चे से जुड़ना है, तो उसकी दुनिया को समझना होगा। वो गेमिंग कंसोल भी समझते हैं, इंस्टाग्राम की रील्स भी देखते हैं और बच्चों के ऑनलाइन असाइनमेंट में मदद भी करते हैं। वो बच्चे क्या कर रहे हैं? को सिर्फ डांटने का बहाना नहीं, बल्कि बातचीत की शुरुआत मानते हैं।
बढ़ाते हैं हौसला
आज का पिता अपने बच्चे की चाहतों को उड़ान देता है। अगर बेटा म्यूजिक में करियर बनाना चाहता है या बेटी आर्टिस्ट बनना चाहती है, तो वो कहते हैं- कर दिखा, मैं साथ हूं। वो अपने अधूरे सपनों को बच्चों पर नहीं थोपते, बल्कि बच्चों के सपनों को अपना साथ देते हैं।
नहीं करते फर्क
'हम तुम्हारी शादी कर देंगे, फिर जाना अपने पति के साथ तुम घूमने।... टीचिंग ही करो, लड़कियों के लिए सेफ होती है।' नए दौर के पापा इस तरह की बातें करने में विश्वास नहीं रखते। वे तो अपनी बेटी को बेटे जितनी ही आजादी देते हैं। वो बेटी को बाइक चलाना सिखाते हैं, क्रिकेट खेलने भेजते हैं और बेटे को रसोई में आने से नहीं रोकते। वो जानते हैं कि जिम्मेदार नागरिक बनना, जेंडर रोल से ज्यादा जरूरी है।
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