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उन्होंने कानून के तहत अपील तक नहीं की, मतदाता सूची में गड़बड़ी के आरोपों पर चुनाव आयोग की दो टूक

  • आयोग पहले ही स्पष्ट कर चुका है कि EPIC नंबरों की डुप्लिकेशन का मतलब फर्जी वोटर नहीं होता, और इस संबंध में डेटा जारी कर अपना पक्ष रखा है।

Amit Kumar एएनआई, नई दिल्लीThu, 17 April 2025 07:51 AM
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उन्होंने कानून के तहत अपील तक नहीं की, मतदाता सूची में गड़बड़ी के आरोपों पर चुनाव आयोग की दो टूक

संसद के शीतकालीन सत्र के दौरान लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने महाराष्ट्र की मतदाता सूची में गड़बड़ियों और EPIC (इलेक्टर फोटो आइडेंटिटी कार्ड) नंबरों के डुप्लिकेशन को लेकर सवाल उठाए थे। अब इन सवालों पर चुनाव आयोग ने कड़ा जवाब दिया है। आयोग के सूत्रों का कहना है कि इन आरोपों का कोई तथ्यात्मक आधार नहीं है और विपक्ष ने चुनावी कानूनों के तहत उपलब्ध प्रक्रियाओं का पालन तक नहीं किया।

राहुल गांधी ने आरोप लगाया था कि 2019 से 2024 के बीच महाराष्ट्र में करीब 30 लाख नए वोटर "बिना ठोस आधार" के जोड़े गए हैं। कांग्रेस और उसके सहयोगी दलों – आम आदमी पार्टी और तृणमूल कांग्रेस – ने भी मतदाता सूची में कथित गड़बड़ियों और EPIC नंबरों की डुप्लिकेशन को लेकर सवाल खड़े किए थे।

SSR प्रक्रिया में केवल 89 अपीलें

चुनाव आयोग के सूत्रों के मुताबिक, जनवरी 6-7, 2025 को प्रकाशित विशेष सारांश संशोधन (SSR) के दौरान पूरे महाराष्ट्र में केवल 89 अपीलें दायर की गईं। जबकि देशभर में कुल 1,38,57,359 बूथ लेवल एजेंट्स (BLAs) तैनात थे। SSR प्रक्रिया के तहत नए मतदाताओं का नाम जोड़ना, मृत या डुप्लिकेट मतदाताओं को हटाना, और पते में बदलाव जैसे सुधार किए जाते हैं। आयोग का कहना है कि SSR के बाद प्रकाशित मतदाता सूची को “निर्विवाद” मानना ही एकमात्र विकल्प है।

चुनाव कानून का हवाला

सूत्रों ने बताया कि जिन लोगों को मतदाता सूची में गड़बड़ी की शिकायत थी, उन्होंने न तो धारा 22 (सुधार), धारा 23 (नाम शामिल करने), और धारा 24 (पहली/दूसरी अपील) के तहत आवेदन किया और न ही SSR प्रक्रिया में भाग लिया। उल्लेखनीय है कि प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1950 की धारा 24 को 20 सितंबर, 1961 को जोड़ा गया था — यानी मौजूदा मुख्य चुनाव आयुक्त के जन्म से भी पहले।

चुनाव आयोग का कहना है कि यदि कोई व्यक्ति यह कहता है कि जिस मतदाता सूची पर चुनाव कराए गए, वह गलत है, तो इसका मतलब है कि उसने उस कानून को कभी पढ़ा ही नहीं, जिसे संसद ने 1961 में पारित किया था।

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विपक्ष कर सकता है और हमले तेज

हालांकि, चुनाव आयोग के इस स्पष्टीकरण के बाद भी संभावना है कि बिहार और अन्य राज्यों में आगामी चुनावों को देखते हुए विपक्ष इस मुद्दे को और अधिक आक्रामकता से उठाए। आयोग पहले ही स्पष्ट कर चुका है कि EPIC नंबरों की डुप्लिकेशन का मतलब फर्जी वोटर नहीं होता, और इस संबंध में डेटा जारी कर अपना पक्ष रखा है। अब यह देखना होगा कि क्या विपक्ष कानूनी प्रक्रिया के तहत अपने आरोपों को मजबूत करता है या चुनाव आयोग के इस जवाब को चुनौती देने के लिए कोई नई रणनीति अपनाता है।