हम क्या अमीरों के लिए ही बैठे हैं? सुप्रीम कोर्ट ने कंपनी को लगाई फटकार; अर्जेंट सुनवाई से इनकार
प्राइवेट रीयल्टी और रिजोर्ट कंपनी की अर्जेंट सुनवाई की याचिका को खारिज करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि क्या अब अदालत केवल अमीरों के लिए ही बची है। कोर्ट ने मामले को अगस्त के लिए लिस्ट कर दिया है।

गुजरात की एक रीयल एस्टेट और प्राइवेट रिजोर्ट मैनेजमेंट कंपनी को झटका देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने अहम टिप्पणी की है। सुप्रीम कोर्ट ने अर्जेंट सुनवाई की याचिका को खारिज करते हुए कहा कि क्या सुप्रीम कोर्ट अब केवल अमीरों के लिए रह गया है? जस्टिस दीपांकर दत्ता और मनमोहन ने इस मामले को अगस्त 2025 के लिए लिस्ट कर दिया है। वाइल्डवूड्स रिजोर्ट ऐंड रियल्टीज की तरफ से पेश हुए सीनियर वकील मुकुल रोहतगी से कोर्ट ने कहा कि क्या इस मामले की सुनवाई की कोई जल्दी है।
बेंच ने कहा कि गुजरात हाई कोर्ट ने दिसंबर 2024 में ही इस मामले में अपना फैसला सुना दिया था। वहीं कंपनी ने पिछले महीने ही सुप्रीम कोर्ट में याचिका फाइल की है। इसके बाद भी वह अर्जेंट सुनवाई की मांग कर रही है। यह मुद्दा उतना अहम नहीं है जितना दिखाने की कोशिश की जा रही है। जस्टिस दत्ता ने कहा, आपने सीजेआई के सामने जिस अर्जेंसी की बात की थी वह क्या थी? 11 दिसंबर को ही हाई कोर्ट ने फैसला सुनाया था और आपने अप्रैल में एसएलपी फाइल की। याचिका में यह भी नहीं बताया गया कि सुनवाई की जल्दी क्यों है। ऐसे मेंलगता है कि जैसे सुप्रीम कोर्ट अमीरों के लिए ही बचा है? आखिर इतनी जल्दी क्यो है? आपका केस तो जनवरी 2026 में लिस्ट होना चाहिए।
रोहतगी ने कोर्ट से कहा कि जुलाई में ही मामले की सुनवाई कर ली जाए हालांकि बेंच ने उनके इस निवेदन को भी अस्वीकार कर दिया। बाद में बेंच ने मामले की सुनवाई अगस्त 2025 में करने का फैसला किया। दरअसल वाइल्डवूड्स नेशनल पार्क के पास में एक रिजॉर्ट बनाना चाहता है। स्टेट बोर्ड ऑफ वाइल्डलाइफ ने यहां रिजॉर्ट बनाने की इजाजत देने से इनकार कर दिया था। इसके बाद कंपनी हाई कोर्ट पहुंच गई।
कंपनी ने हाई कोर्ट में कहा कि 2009 में ही उसने सरकार के साथ MoU पर साइन किए थे। सरकार ने उसे इस प्रोजेक्ट के लिए मदद देने का आश्वासन दिया था। ऐसे में कंपनी ने हाई कोर्ट से मांग की थी कि राज्य के बोर्ड को प्रोजेक्ट में मदद करने का निर्देश दिया जाए। वहीं राज्य सरकार ने कंपनी का विरोध किया। राज्य सरकार कहना है कि प्रस्तावित प्रोजेक्ट की लोकेशन वाइल्डलाइफ सैंक्चुअरी के बेहद करीब है। किसी भी प्रोजेक्ट की दूरी कम से कम एक किलोमीटर तो होनी ही चाहिए।
हाई कोर्ट ने राज्य सरकार का तर्क स्वीकार किया और इस मामले में दखल देने से ही इनकार कर दिया। कोर्ट ने कहा कि एमओयू में भी कहा गया था कि इस प्रोजेक्ट के लिए आगे भी मंजूरी लेनी होगी 2016 में भी इस मामले को लेकर विवाद हुआ था। आरोप लगाया गया था कि राजनीतिक पक्षपात की वजह से ही कंपनी ने इस इलाके में भूमि पर कब्जा किया है। हालांकि राज्य सरकार और कंपनी दोनों ने ऐसे आरोपों को खारिज किया था। उस समय आनंदीबेन पटेल मुख्यमंत्री थीं।