कौन थे 10 हजार की सेना रखने वाले मिर्जा अली खान, उठाई थी पाक से अलग पश्तूनिस्तान की मांग
मिर्जा अली खान वजीर एक जनजाति नेता थे। वह ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ खैबर पख्तूनख्वा के जनजातीय इलाके में बिगुल फूंकने वाली शख्सियत थे। उनकी जनजाति के करीब 10 हजार सशस्त्र जवान थे। पहाड़ों में उनके साथियों ने सालों तक ब्रिटिश सेना के साथ गुरिल्ला वॉर लड़ी और अंग्रेजों को काफी नुकसान पहुंचाया।

भारत विभाजन के दौरान कई ऐसे मुस्लिम नेता थे, जो इस्लाम के नाम पर एक अलग मुल्क बनाने के खिलाफ थे। इनमें सीमा के इस पार अब्दुल कलाम आजाद जैसे लीडर थे तो दूसरी तरफ खान अब्दुल गफ्फार खान थे। वह खैबर पख्तूनख्वा के रहने वाले थे, जो अविभाजित भारत का सीमांत प्रांत था। इसी के चलते अब्दुल गफ्फार को सीमांत गांधी कहा गया था। सीमांत गांधी तो चर्चित थे, लेकिन एक और नाम है, जिनका इतिहास में बहुत कम जिक्र हुआ है। यह नाम है- मिर्जा अली खान का, जिन्हें इपी का फकीर भी कहा जाता है। इपी एक गांव था, जो खैबर पख्तूनख्वा के उत्तरी वजीरिस्तान में स्थित था।
मिर्जा अली खान वजीर एक जनजाति नेता थे। वह ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ खैबर पख्तूनख्वा के जनजातीय इलाके में बिगुल फूंकने वाली दमदार शख्सियत थे। उनकी अपनी जनजाति के करीब 10 हजार सशस्त्र जवान थे, जो हमेशा उनके साथ थे। पहाड़ों में उनके साथियों ने सालों तक ब्रिटिश सेना के साथ गुरिल्ला वॉर लड़ी और अंग्रेजों को काफी नुकसान पहुंचाया। मिर्जा अली खान हज कर आए थे और वे हाजी मिर्जा अली के नाम से जाने जाते थे। खैबर पख्तूनख्वा को तब उत्तर पश्चिम सीमांत प्रांत (NWFP) के नाम से जाना जाता था। उन्होंने अंग्रेजों से खूब जंग लड़ी और कई सालों तक अपना बेस अफगानिस्तान में बनाए रखा ताकि अंग्रेज सेना की पकड़ में ना आ सकें।
History That India Ignored में प्रेम प्रकाश लिखते हैं, '14 अप्रैल 1936 को मिर्जा अली खान ने अपनी जनजातीय सेना के साथ मिलकर ब्रिटिशर्स के खिलाफ जिहाद का ऐलान किया था। ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि अंग्रेजी सरकार के कई फैसलों को इस्लाम और पश्तून विरोधी माना गया था। उनकी सेना में करीब 10000 लोग थे। उनकी सेना ने कई बार अंग्रेजी सेना पर हमले किए, रास्ते बंद किए और गुरिल्ला युद्ध लड़े। अंग्रेजी सेना उनसे जमीनी लड़ाई में नाकाम रही तो अंत में हवाई हमले शुरू किए, जिसमें पश्तून ट्राइब के इन लोगों को बड़ा नुकसान उठाना पड़ा।'
क्या थी मिर्जा अली खान की पश्तूनिस्तान वाली मांग
इस संघर्ष के बीच ही 1945 आ गया। दूसरा विश्व युद्ध समाप्त हो गया और अंग्रेज भारत छोड़कर जाने का विचार करने लगे। इसी बीच भारत विभाजन की योजना भी सामने आई, जिसका सीमांत गांधी अब्दुल गफ्फार खान और मिर्जा अली खान ने विरोध किया। उन्होंने पाकिस्तान के निर्माण का विरोध किया और कहा कि यदि भारत का विभाजन ही होना है तो पश्तूनिस्तान के नाम से हमें अलग मुल्क मिले। अंग्रेजों ने ऐसा नहीं किया और तब से आज तक अलग पश्तून राष्ट्र की मांग के साथ संघर्ष जारी है। मिर्जा अली खान और अब्दुल गफ्फार की मांग थी कि पश्तूनिस्तान बने, जिसमें उस हिस्से को भी दिया जाए, जो महाराजा रणजीत सिंह ने जीतकर सिख साम्राज्य में मिला लिया था। खैबर पख्तूनिस्तान को अलग राष्ट्र बनाने की मांग पाकिस्तान में 1947 से ही जारी है। बता दें कि इसी संघर्ष के चलते कई साल खान अब्दुल गफ्फार खान को पाकिस्तान की जेलों में गुजारने पड़े।
History That India Ignored पुस्तक की क्या है थीम
यह पूरा वाकया हमने प्रेम प्रकाश की पुस्तक History That India Ignored से लिया है। इस पुस्तक में उन्होंने इतिहास के उन पहलुओं को समेटने की कोशिश की है, जिन्हें नजरअंदाज किया गया है या फिर जरूरी चर्चा नहीं की गई। उन्होंने अपनी पुस्तक में सिकंदर के भारत आगमन से लेकर भारत की आजादी, विभाजन और फिर गोवा के विलय तक के घटनाक्रम को सारगर्भित तरीके से समेटने का प्रयास किया है। यही नहीं मदन लील धींगरा, वीर सावरकर, अजित सिंह जैसे आंदोलनकारियों का जिक्र भी उन्होंने अपनी पुस्तक में किया है। इस पुस्तक में उन्होंने हर प्रकरण से जुड़े कुछ रोचक वाकयों को शामिल किया है, जिससे यह पुस्तक पठनीय हो जाती है।