एलओसी के पास बंकर बनाने लगे कश्मीरी, पहलगाम हमले के बाद तेजी से बदल रहे हालात
2021 में भारत और पाकिस्तान की सेनाओं ने युद्धविराम घोषित किया। इसके बाद बंदूकें खामोश हुई थीं और ग्रामीणों ने शांति का लाभ उठाया। एलओसी के पास के प्रतिबंधित इलाके और गांव पर्यटकों के लिए खोल दिए गए थे।
जम्मू-कश्मीर के सीमावर्ती इलाकों में इन दिनों लोग भूमिगत बंकर साफ करने में जुटे हैं। 55 साल के मोहम्मद सईद कुपवाड़ा के तंगधार में कांदी गांव के रहने वाले हैं। यह इलाका बीते दिनों भारी गोलीबारी का गवाह रहा है। पहलगाम में पिछले हफ्ते हुए आतंकी हमले में 25 पर्यटक और एक स्थानीय घोड़ा सवार मार गया था। इसके बाद भारत और पाकिस्तान के बीच बढ़ते तनाव के कारण नियंत्रण रेखा (LoC) के पास रहने वाले ग्रामीणों को डर है कि उन्हें फिर से अपने परिवार और पड़ोसियों के साथ पुराने बंकरों में शरण लेनी पड़ सकती है।
मोहम्मद सईद ने कहा, 'यहां हर जगह डर का माहौल है। ग्रामीणों को डर है कि अगर तनाव और बढ़ा तो उन्हें गोलीबारी का सामना करना पड़ सकता है। पहले कम से कम बंकर तो थे, लेकिन 2005 के भूकंप में ज्यादातर पुराने बंकर क्षतिग्रस्त हो गए। अब हर पंचायत में एक-दो बंकर ही बचे हैं। पिछले चार-पांच सालों में शांति थी। लोग एलओसी के पास खेतों में बीज बो रहे थे। लेकिन अब लोग बाड़ के पास जाने से डरते हैं।' उन्होंने कहा कि पहलगाम हमले से पहले पर्यटकों से गुलजार रहने वाला आखिरी गांव टीटवाल अब खाली है। हर जगह उदासी छाई है। लोग पुराने दिन नहीं चाहते।
पर्यटकों की संख्या बढ़ी मगर अब...
2021 में भारत और पाकिस्तान की सेनाओं ने युद्धविराम घोषित किया। इसके बाद बंदूकें खामोश हुई थीं और ग्रामीणों ने शांति का लाभ उठाया। एलओसी के पास के प्रतिबंधित इलाके और गांव पर्यटकों के लिए खोल दिए गए। पिछले तीन सालों में उरी का कामन, तंगधार का टीटवाल, कुपवाड़ा के केरन व माचिल और गुरेज में हजारों पर्यटक आए। लेकिन, अब एलओसी पर स्थिति तेजी से बदल रही है। पिछले चार दिनों में भारत और पाकिस्तान की सेनाओं ने कुपवाड़ा और उरी में तीन बार गोलीबारी की, जिससे तनाव बढ़ गया है।
गांव के लोगों का क्या कहना
नामब्ला 1990 के दशक के अंत और 2000 की शुरुआत में उरी के सबसे प्रभावित गांवों में से एक है। यहां के सरपंच ने बताया, 'हमारे इलाकों में शांति लौटी थी। एलओसी के पास खेती हो रही थी। अगर युद्धविराम खत्म हुआ तो हम फिर से अग्रिम मोर्चे पर होंगे। सबसे ज्यादा नुकसान हमें उठाना पड़ेगा।' उन्होंने कहा कि बंकर क्षतिग्रस्त होने के बाद हमें नए बंकर बनाने की जरूरत नहीं लगी, क्योंकि शांति थी। हम बंकरों को अन्य कामों के लिए इस्तेमाल कर रहे थे। हालांकि, अब स्थितियां तेजी से बदल रही हैं।