ट्रेन का डिब्बा बन गया है इस देश में आरक्षण, भावी CJI ने क्यों कही ऐसी तीखी बात
महाराष्ट्र में आखिरी बार स्थानीय निकाय चुनाव 2016-2017 में हुए थे। ओबीसी आरक्षण के लिए कानूनी लड़ाई की वजह से ही चुनाव में देरी हो रही है। 2021 में सुप्रीम कोर्ट ने ओबीसी के लिए 27 फीसदी कोटा लागू करने के महाराष्ट्र सरकार के अध्यादेश को खारिज कर दिया था।

सुप्रीम कोर्ट में आज (मंगलवार, 6 मई को) महाराष्ट्र के स्थानीय निकाय चुनावों में ओबीसी आरक्षण के विवाद से जुड़े मुद्दे की सुनवाई हो रही थी। जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस एन कोटिश्वर सिंह की पीठ इस केस की सुनवाई कर रही थी। इसी दौरान कोर्ट ने कहा कि इस देश में आरक्षण ट्रेन के उस डिब्बे की तरह हो गया है, जिसमें जो घुसता है, वह फिर दूसरे को अंदर नहीं आने देना चाहता है। यह तल्ख टिप्पणी जस्टिस सूर्यकांत ने की, जो इस साल के अंत तक देश के 53वें मुख्य न्यायाधीश पद की शपथ लेंगे। उनसे पहले 14 मई को जस्टिस बीआर गवई 52वें CJI के तौर पर शपथ लेने जा रहे हैं।
लाइव लॉ की एक रिपोर्ट के मुताबिक, सुनवाई के दौरान जस्टिस कांत ने कहा, "इस देश में जाति आधारित आरक्षण रेलगाड़ी के डिब्बे की तरह हो गया है और जो लोग इस डिब्बे में चढ़ते हैं, वे दूसरों को अंदर नहीं आने देना चाहते।" इसके साथ ही पीठ ने कहा कि महाराष्ट्र के स्थानीय निकाय चुनावों में ओबीसी आरक्षण का विवादास्पद मुद्दा 2022 की रिपोर्ट से पहले जैसा ही रहेगा। मामले में कोर्ट ने महाराष्ट्र राज्य निर्वाचन आयोग को राज्य में स्थानीय निकाय चुनाव की अधिसूचना चार सप्ताह के भीतर जारी करने का भी निर्देश दिया है।
पिछड़ेपन का पता लगाए बिना दिया आरक्षण
याचिकाकर्ता की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता गोपाल शंकरनारायणन ने दलील दी कि राज्य के बंठिया आयोग ने स्थानीय निकाय चुनावों में ओबीसी को यह पता लगाए बिना आरक्षण दे दिया कि वे राजनीतिक रूप से पिछड़े हैं या नहीं। उन्होंने दलील दी कि राजनीतिक पिछड़ापन सामाजिक और शैक्षणिक पिछड़ेपन से अलग है। इसलिए ओबीसी को स्वत: राजनीतिक रूप से पिछड़ा नहीं माना जा सकता। इस पर जस्टिस सूर्यकांत ने टिप्पणी की, "बात यह है कि इस देश में आरक्षण का कारोबार रेलवे की तरह हो गया है। जो लोग बोगी में चढ़े हैं, वे नहीं चाहते कि कोई और घुसे। यही पूरा खेल है। याचिकाकर्ता का भी यही खेल है।"
और भी बोगियां जोड़ी जा रही हैं
इस पर शंकरनारायणन ने कहा, "और पीछे भी बोगियां जोड़ी जा रही हैं।" अधिवक्ता की टिप्पणी पर जस्टिस सूर्यकांत ने आगे कहा, “जब आप समावेशिता के सिद्धांत का पालन करते हैं, तो राज्य और अधिक वर्गों की पहचान करने के लिए बाध्य है। सामाजिक रूप से पिछड़े वर्ग, राजनीतिक रूप से पिछड़े वर्ग और आर्थिक रूप से पिछड़े वर्ग भी होंगे तो उन्हें लाभ से वंचित क्यों रखा जाना चाहिए? इसे एक विशेष परिवार या समूह तक ही सीमित क्यों रखा जाना चाहिए?”
चार महीने में संपन्न कराएं चुनाव
इस पर शंकरनारायणन ने कहा कि याचिकाकर्ता भी यही मुद्दा उठा रहे हैं। हालांकि, पीठ ने मौखिक रूप से कहा कि महाराष्ट्र राज्य में स्थानीय निकायों के लंबित चुनावों को ओबीसी आरक्षण के मुद्दे के कारण और विलंबित नहीं किया जा सकता। इसके बाद पीठ ने स्थानीय निकाय चुनाव संपन्न कराने के लिए समयसीमा तय करते हुए राज्य निर्वाचन आयोग से इसे चार महीने में संपन्न करने को कहा। पीठ ने राज्य निर्वाचन आयोग (एसईसी) को उचित मामलों में अधिक समय मांगने की स्वतंत्रता दी।
पीठ ने कहा कि महाराष्ट्र स्थानीय निकाय चुनावों के नतीजे शीर्ष अदालत के समक्ष लंबित याचिकाओं पर फैसलों पर निर्भर करेंगे। शीर्ष अदालत ने 22 अगस्त, 2022 को एसईसी और महाराष्ट्र सरकार को राज्य में स्थानीय निकायों की चुनाव प्रक्रिया के संबंध में यथास्थिति बनाए रखने का निर्देश दिया था।