पड़ोसी को एक बूंद भी पानी नहीं देंगे, पंजाब असेंबली में प्रस्ताव पारित; हरियाणा CM बोले-कांग्रेस न बने AAP
पंजाब और हरियाणा में पानी बंटवारे को लेकर विवाद गहरा गया है। पंजाब विधानसभा ने आज एक प्रस्ताव पारित किया है कि राज्य अपने हिस्से का एक बूंद भी पानी भी पड़ोसी राज्य हरियाणा को नहीं देगा। दूसरी तरफ हरियाणा के सीएम ने पानी छोड़ने की अपील की है।

हरियाणा और पंजाब के बीच जल बंटवारे को लेकर एक बार फिर टकराव की स्थिति बन गई है। इस बार विवाद भाखड़ा ब्यास प्रबंधन बोर्ड (बीबीएमबी) की ओर से हरियाणा के लिए 4,500 क्यूसेक अतिरिक्त पानी छोड़ने के फैसले को लेकर है। पंजाब और भाजपा शासित हरियाणा के बीच रावी-ब्यास नदी के जल बंटवारे को लेकर दशकों से विवाद चल रहा है। दोनों राज्यों के बीच विवाद तब शुरू हुआ, जब 1966 में तत्कालीन संयुक्त पंजाब से हरियाणा को अलग कर दिया गया।
पंजाब में मुख्यमंत्री भगवंत मान के नेतृत्व वाली आम आदमी पार्टी (आप) सरकार ने सोमवार को राज्य विधानसभा का विशेष सत्र बुलाया और एक प्रस्ताव पेश किया, जिसमें संकल्प लिया गया कि वह अपने हिस्से का एक बूंद पानी भी पड़ोसी राज्य को नहीं देगी। हरियाणा अपने हिस्से का 35 लाख एकड़ फुट (एमएएफ) पानी पाने के लिए सतलुज-यमुना लिंक (एसवाईएल) नहर का काम पूरा करने की मांग कर रहा है। उसकी यह भी मांग है कि पंजाब को नहर के काम को पूरा करने के लिए उच्चतम न्यायालय के आदेशों का पालन करना चाहिए।
हरियाणा सीएम की अपील
इस बीच, हरियाणा के मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी ने कहा, "हरियाणा कैबिनेट जल बंटवारे के मुद्दे पर भगवंत मान सरकार और पंजाब के नेताओं द्वारा पारित प्रस्ताव की निंदा करती है। हम पंजाब सरकार से अनुरोध करते हैं कि वह बिना किसी शर्त के हरियाणा के लोगों के लिए पीने का पानी जारी करे। पंजाब के लोग यह सब देख रहे हैं और अगर मान सरकार इसी तरह तुष्टिकरण की राजनीति करती रही तो वह भी कांग्रेस की राह पर खड़ी हो जाएगी।"
पंजाब विधानसभा अध्यक्ष ने क्या कहा
दूसरी तरफ, पंजाब विधानसभा के अध्यक्ष कुलतार सिंह संधवान ने कहा, "यह केवल पंजाब के अधिकार का मामला नहीं है, यह देश के हित में है। पंजाब द्वारा इस्तेमाल किया जाने वाला पानी पूरे देश को खाद्यान्न आपूर्ति करने के लिए इस्तेमाल किया जाता है। अगर आप पंजाब के हिस्से का पानी नहीं देंगे, तो हम देश को गेहूं और अनाज कैसे दे पाएंगे...हम बांध सुरक्षा अधिनियम की निंदा करते हैं। अब नया बीबीएमबी गठित किया जाना चाहिए।"
पंजाब के मंत्री हरपाल सिंह चीमा ने भी कहा, "...हरियाणा सरकार और भाजपा सरकार पंजाब के हिस्से का पानी चुराने की कोशिश कर रही है...हमने केंद्र सरकार से बांध सुरक्षा अधिनियम 2021 को निरस्त करने का अनुरोध किया है। यह अधिनियम पंजाब के अधिकार क्षेत्र में आता है...हम किसी को भी पंजाब के हिस्से का पानी नहीं लेने देंगे।"
214 किलोमीटर लंबी नहर बनाने की परिकल्पना
हालांकि, पंजाब ने बार-बार अपना यह रुख बनाए रखा है कि उसके पास ‘‘साझा करने के लिए कोई अतिरिक्त पानी नहीं है’’। इस नहर की परिकल्पना रावी और ब्यास नदियों से दोनों राज्यों के बीच पानी के प्रभावी बंटवारे के लिए की गई थी। इस परियोजना में 214 किलोमीटर लंबी नहर बनाने की परिकल्पना की गई है, जिसमें से 122 किलोमीटर का हिस्सा पंजाब में और शेष 92 किलोमीटर का हिस्सा हरियाणा में बनाया जाना है।हरियाणा ने अपने क्षेत्र में यह परियोजना पूरी कर ली है, लेकिन 1982 में इस पर काम शुरू करने वाले पंजाब ने इसे स्थगित कर दिया है।
भाखड़ा जल मुद्दे पर मौजूदा विवाद की पृष्ठभूमि:
पंजाब, हरियाणा और राजस्थान साझेदार राज्य हैं, जो सिंचाई सहित विभिन्न उद्देश्यों के लिए अपनी आवश्यकताओं को भाखड़ा और पोंग बांधों से पूरा करते हैं। इनका प्रबंधन बीबीएमबी द्वारा किया जाता है, जिसकी स्थापना 1966 में पंजाब पुनर्गठन अधिनियम के प्रावधानों के तहत की गई थी।बीबीएमबी प्रत्येक वर्ष 21 मई से 21 मई तक के वार्षिक चक्र के लिए पंजाब, हरियाणा और राजस्थान को पानी की आपूर्ति का वार्षिक कोटा तय करता है। बीबीएमबी की तकनीकी समिति ने 23 अप्रैल को हरियाणा को अतिरिक्त पानी छोड़ने का फैसला किया।
पंजाब CM का क्या कहना है?
29 अप्रैल को भगवंत मान ने बीबीएमबी के माध्यम से अधिक पानी की हरियाणा की मांग को खारिज कर दिया और दावा किया कि पड़ोसी राज्य ने पहले ही अपने हिस्से का पानी इस्तेमाल कर लिया है। मान ने भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) पर बीबीएमबी के माध्यम से पंजाब सरकार पर हरियाणा की अतिरिक्त जल आपूर्ति की मांग को पूरा करने के लिए दबाव डालने का भी आरोप लगाया। उन्होंने केंद्र से सिंधु जल संधि के निलंबन के बाद पाकिस्तान की ओर बह रहे पानी को मोड़कर जलाशयों को भरने के लिए भी कहा। पंजाब ने कहा कि राज्य को धान की बुआई के लिए पानी की आवश्यकता है और उसके पास साझा करने के लिए एक भी बूंद अतिरिक्त पानी नहीं है। उसका कहना है कि हरियाणा ने मार्च में अपने हिस्से का पानी इस्तेमाल कर लिया है और अब वे अप्रैल और मई के महीनों के लिए और पानी चाहते हैं।